जेंडर
जेंडर का अर्थ
- जेंडर शब्द समाजशास्त्रीय रूप से अथवा एक संकल्पन आत्मक श्रेणी के रूप में प्रयोग किया जाता है और इसका अर्थ बहुत ही विशिष्ट है। अपने नए रूप में जेंडर शब्द का पुरुष और महिलाओं की सामाजिक संस्कृतिक परिभाषा के रूप में प्रयोग नया जन्म किया जाता है।
- समाज इनको पुरुषों और महिलाओं के नाम से अलग करता है और इसी आधार पर इनको सामाजिक भूमिका निभाने का कार्य प्रदत्त करता है।
- सभी सामाजिक और सांस्कृतिक पैकेजिंग जो कि बालिकाओं और बालिकाओं के जन्म से ही आरंभ हो जाती है उसे जेंडर संबध्द कहते है।
- अनारकली जो कि प्रथम कुछ एक नारीवादी विद्वानों में से एक हैं जिन्होंने इस संकल्पना का पहली बार प्रयोग किया था, कहलाती कहती है कि जेंडर एक संस्कृति का मामला है , कि पुरुष और महिलाओं के सामाजिक वर्गीकरण को पुरुषत्व और नागरिक के रूप में संदर्भित करता है।
- लोग सामान्य था दैनिक साक्ष्यों के आधार पर निर्धारित करते हैं कि कौन पुरुष या महिला है।
- जेंडर की उत्पत्ति जैविक नहीं होती है और लिंग तथा जेंडर के बीच संबंध प्रकृतिक भी नहीं होता।
- जेंडर की संकल्पना को एक क्रॉस कटिंग संस्कृतिक कारक के रूप में समझने की आवश्यकता है वह ओवर आर किंग कारक है इसका इस अर्थ में कि जेंडर का प्रयोग अन्य क्रॉस कटिंग कार को जैसे की नस्ल कोमा वर्ग , अवस्था को मंदिर जातीय समूहों के संदर्भ में भी किया जा सकता है।
- जेंडर की संकल्पना महिलाओं के साथ अंतर परिवर्तनीय नहीं है।
- जेंडर का अर्थ दोनों महिला और पुरुष है और उनके संबंध जेंडर समानता को उन्नत करने के संबंध में पुरुषों के साथ महिलाओं को भी संबद्ध करना चाहिए।
- परसों पर प्रकाश डालने में वृद्धि करने की दिशा में तीन प्रमुख दृष्टिकोणो को अपनाया गया है।
- प्रथमतः पुरुषों की पहचान जेंडर समानता के अर्थ समर्थको के रूप में और इस कार्य में उसकी और अधिक सक्रियता।
- द्वितीय, यह मान्यता की जेंडर समानता तब तक संभव नहीं है जब तक पुरुष अनेक क्षेत्रों में अपनी प्रवृत्तियों और व्यवहारों में परिवर्तन नहीं करते हैं।
- द्वितीय, यह है कि जेंडर व्यवस्था अनेक स्थानों, अनेक संदर्भ में पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए नकारात्मक मानी गई है पुरुषों पर अप्रासंगिक मांगो और संकुचित परिभाषित तारीको से व्यवहार करने का दबाव होता है।
- समानता का अर्थ आजीविका के संसाधनों, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में पहुंच के लिए समान अवसरों की उपलब्धि, और इसी प्रकार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में बिना भेदभाव के भागीदारी को निश्चित करना है।
- जेडर की समानता शक्ति और प्राधिकारिता, वर्ग-जाति, पदानुक्रम तथा समाजिक-संस्कृतिक परंपराओं, रिवाजों और मान को से उपजाती है।
जेंडर और राजनीति
- अधिकतर आधुनिक लोकतांत्रिक देशों में पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता का मुद्रा मुख्यधारा के राजनीतिक आख्यानों में प्रमुख आदर्श बन गया है।
- पुरुषों और महिलाओं को प्राकृतिक रूप से समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए और किसी को भी राजनीतिक जीवन से अलग या वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
जेंडर और राजनीति से संबंधित विषयों के संबंध में दृष्टिकोणो की विवधताएं इसमें सम्मिलित हैं:
- प्रथम, महिलाएं विदित है राजनीति विज्ञान की श्रेणियों और विश्लेषण में और इस कारण विश्लेषण की क्लासिकी इकाइयों में जैसे कि नागरिक, मतदाता, विधायक, पार्टियों, विधायक, राज्य और राष्ट्रों का जेंडकरण होता है।
- द्वितीय, महिलाओं के संदर्भ में उन राजनीतिक गतिविधियों का परीक्षण किया गया है जोकि परम्परागत राजनीतिक विज्ञान से बाहर रही है।
- तृतीय जेंडर को समाजिक संगठन की रचना के रूप में देखा गया।
- अंतिम, व्यापक नारीवादी आंदोलन, वाली महिलाएं विकासशील विश्व में महिलाएं औपनिवेशक शासन के बाद ही नारीवादी तथा एल.जी.बी.टी.क्यू. विद्वान जो जेंडर राजनीति के अध्ययन में स्थान प्राप्त करने के लिए दबाव बनाने के प्रयास में रत रहे, कभी-कभी उन्हें सहमति प्राप्त हुई और कभी कुंठा।
- राजनीति और जेंडर के बीच विशम और विरोधाभासी संबंध है।
- एक ओर, जेंडर संबंधी मुद्दे स्पष्ट रूप से राजनीति की समझ के केंद्र में स्थित होते हैं।
- दूसरी ओर जेंडर के मुद्दे को राजनीतिक के लिए सामान्यतः अप्रासंगिक माना गया है।
- यदि जेंडर को महिलाओं के साथ समानाथृक समझ आ जाता है तो महिलाओं की राजनीतिक क्षेत्र में अनुपस्थिति के चलते हम यह कह सकते हैं कि जेंडर का मुद्रा राजनीति में प्रासंगिक नहीं है।
एक लक्ष्यय के रूप में जेंडर समानता, सामरक के रूप में मुख्यधारा में जेंडर
- जेंडर समानता की शब्दावली को संयुक्त राष्ट्र में प्रमुखता दी गई है।
- जेंडर समानता सामाजिक न्याय से संबंध रखती है और जो कि प्रायः परंपरा, रिवाज, धर्म या संस्कृति पर आधारित होता है और प्रायः महिलाओं के विरोध में होता है।
- सन 1995 में बीजिंग में आयोजित महिला सम्मेलन में सबकी सहमति बन गई थी कि समानता के शब्द का प्रयोग किया जाएगा।
- समानता का अर्थ यह है कि व्यक्ति के अधिकार, जिम्मेदारियां, और अवसरों की उपलब्धता इस विषय पर निर्भर नहीं करेगी कि क्या वे महिला या पुरुष पैदा हुए हैं।
- महिला और पुरुषों के बीच जो समानता है यह गुणात्मक और मात्रात्मक दो पक्षों पर आधारित है।
- मात्रात्मक पक्ष का अर्थ है महिलाओं का सम्मानतापूर्ण प्रतिनिधित्व प्राप्त करने की आकांक्षा प्रदर्शित करना जिसमें संतुलन और समानता शामिल है।
- गुणात्मक पक्ष का अर्थ है महिलाओं और पुरुषों के लिए विकास की प्राथमिकताओं और परिणामों पर समानतापूर्ण प्रभावों को स्थापित करना।
जेंडर समानता को उन्नत करनेेे के लिए दो तर्क है। यह निम्न प्रकार है:
- प्रथम, महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता-समान अधिकार, अवसर और जिम्मेदारियां यह मामला मानव अधिकारों और सामाजिक न्याय का है।
- द्वितीय, महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता, एक पूर्व शर्त और प्रभावी संकेतक एक महत्वपूर्ण भी है।सतत जन-केंद्रित विकास के लिए महिलाओं और पुरुषों.,श, दोनों की प्रत्यक्ष स्वीकार्यता, हितों, आवश्यकताओं और प्रथमिकताओं को न केवल सामाजिक न्याय के मामले के तौर पर देखना चाहिए, अपितु य विकास की प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए भी नितांत आवश्यकता है।
- जेंडर समानता एक लक्ष्य है जिसको की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने एकमत से स्वीकार किया है।
- असमानता का जोकि महिलाओं के प्रति हिंसा, महिलाओं की राजनीति में भागीदारी तथा निर्णय निर्धारण ढांचों में उनके प्रतिनिधित्व में प्रदर्शित होता है।
- महिलाओं के लिए भिन्न और विभेदकारी आर्थिक अवसर होते हैं, उनका क्रय विक्रय और देह व्यापार होता है। इन मुद्रा के उत्तर में यही हो सकता है कि जेंडर समानता को उन्नत करने के प्रयासों की अत्यंत आवश्यकता है
- सन 1970 के दशक में महिलाओं के विकास के लिए महिला एकीकृत कार्य नीति बनाई गई थी।
- इसमें महिलाओं की एक अलग से इकाई या कार्यक्रमों की स्थापना की थी जो राज्य के अंतर्गत विकास संस्थानों की स्थापना करने योजना थी। जिसकी सन 1980 के दशक तक गति बहुत ही धीमी रही
- आर्थिक और सामाजिक परिषद सहमत निष्कर्ष (1997/2) में जेंडर मुख्यधारा करण को विकसित करने के लिए आह्वान किया था
- यह सम्मेलन में यह सहमति बनी कि संयुक्त राष्ट्र में जेंडर संतुलन की वृद्धि करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि जेंडर परिपेक्ष पर और संयुक्त राष्ट्रीय के कार्यों में जेंडर समानता के लक्ष्य को पूरा करने पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है
- यह अत्यंत आवश्यक है कि सभी कार्यक्रमों में जेंडर परिपेक्ष्य को एक एकीकृत शिक्षा मानकर उनकी भागीदारी सुनिश्चित किया जाए इसमें सहमति है जेंडर परिपेक्षयो - महिला और पुरुष क्या करते हैं और संसाधनों तथा निर्णय निर्धारण प्रक्रिया में उनकी कहां तक पहुंच है -को सभी नीतियों के विकास अनुसाधन ,सलाह मशविरा ,विकास, कार्यन्वयन और मानकों की निगरानी ,स्तर व नियोजन, कार्यान्वयन और परियोजना को केंद्र में लाना।
- जेंडर मुख्यधारा करण की स्थापना एक अन्य सरकारी आदेश के रूप में सन 1995 में बीजिंग घोषणा और प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन में निर्धारित की गई थी और फिर इसके बाद सन् 1997 में आर्थिक और सामाजिक परिषद सहमत निष्कर्ष में इसी विषय को सार रूप में सहमति मिली ।
- जेंडर मुख्य धारणा करण के अभी देश को ताकत मिली थी बेरिंग सम्मेलन जून 2000 के पश्चात संयुक्त राष्ट्र की महासभा के विशेष सत्र में।
- महत्वपूर्ण है वर्तमान असमानता को कम करने में और जेंडर समानता को उन्नत करने के लिए उत्प्रेरक के रूप में उन को अपनाना है और मुख्यधारा के परिवर्तन के लिए एक क्षेत्र का निर्माण करना है।
- पुरुष पर केंद्रित पहले जेंडर क्षमता को उन्नत करती है पुरुषों के सहयोगी यों को पैदा कर। इसकी निम्नलिखित दो कार्य नीतियां है:- जेंडर मुख्य धारा करण और महिला सशक्तिकरण -ये एक दूसरे से प्रतियोगिता में नहीं है ।
- किसी एक संगठन के अंदर जेंडर मुख्य धारा करण को जोड़ने का अर्थ यह नहीं है कि लक्षित क्रियाकलापों की अधिक समय तक आवश्यकता नहीं होगी।
- ये दोनों कार्य नीतियां वास्तव में एक दूसरे के पूरक है और जेंडर मुख्यधारा करण को महिलाओं को सशक्त करने का प्रयोग ऐसी होना चाहिए कि महिलाएं सक्षम हो।
जेंडर संबंधी मुद्दे और प्रवृतियां
- जेंडर एक मुद्दा है क्योंकि महिलाओं और पुरुषों के बीच मूल रूप से अंतर और समानताएं हैं ।
- यह अंतर और समानता है विभिन्न तरीकों से अपने आप में कार्यरत हो सकते हैं, विशिष्ट क्षेत्रों में परंतु कुछ व्यापक था जो में प्रश्न के बिंदु है जिनको हमेशा ही निर्धारित किए जाने की आवश्यकता है।
- कुछ महत्वपूर्ण बिंदु है जो कि कैसे और क्यों जेंडर विभेद है और विशिष्ट अतिथियों में असमानता क्यों संकेत हो सकती है ,यह दर्शाते हैं:-
- राजनीतिक शक्ति में असमानता ।
- परिवार के अंदर असमानताएं।
- कानूनी स्तर और सको में विभिन्नते।
- अर्थव्यवस्था के अंदर का विभाजन ।
- घरेलू /बिना भुगतान के क्षेत्र में असमानताएं ।
- महिलाओं के विरूद्ध हिंसा ।
- विदेशकारी प्रवृतियां।
पितृसत्ता :जेंडर असमानता की समझ
- पितृसत्ता व व्यवस्था सामाजिक संरचना आए हैं क्योंकि पुरुषवादी भौतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्तियों को महिलाओं के ऊपर लागू करती है।
- पितृसत्ता की संकल्पना का जेंडर और विकास सिद्धांतिकरण मे प्रयोग किया गया है।
- यह इसलिए ताकि ना केवल आज सामान जेंडर संबंधित वर्तमान पूंजीवादी संबंधों को चुनौती दी जा सके क्योंकि यह संबंध पितृसत्ता को सहारा देने या उसकी नींव को मजबूत करने का कार्य करते हुए दिखाई देते हैं उनको भी चुनौती देने का कार्य है।
- कुछ विचारों के तहत महिलाएं पुरुष के साथ पितृसत्ता लेने देने के समझौतों द्वारा विपरीत सकता व्यवस्था के अंतर्गत कुशल कार्य साधन युक्ति के रूप में इस्तेमाल करती है इसमें चयनित है महिलाओं की स्वायत्तता तथा पुरुषों की अपनी पत्नियो और बच्चों को पालने पोषण की जिम्मेदारी के मध्य एक समझौता।
- जेंडर और समानता अन्य सामाजिक असमानता ओं के आर-पार बनी हुई है जैसे कि वर्ग, जाति, नृजातीयता और नस्ल, और कुछ संदर्भों में जेंडर कि प्राथमिकताओं में या ऊपर हो सकती है।
- एक गहन विश्लेषण करने की आवश्यकता है जो विभिन्न ता और जटिलताओं को ध्यान में रखकर अध्ययन कार्य करें तथा एक महिलाओं के अभिकरण की स्थापना की मांग करती है।
पितृसत्ता की उत्पत्ति के सिद्धांत
- पितृसत्ता की उत्पत्ति का प्रमुख सिद्धांत जाए विक्की और समाजिक कार्यों को एक साथ मिश्रित करता है या व्याख्या करने के लिए कि किस प्रकार से पितृसत्ता ने जेंडर विभिनता को प्रतिपादित किया है।
परंपरावादी विचारधारा
- परंपरा वादियों का विचार है कि पितृसत्ता व्यवस्था एक जैविक निर्धारण है पुरुष और महिलाएं विभिन्न तरह से उत्पन्न हुए हैं तथा इसी के परिणाम स्वरुप उनकी अलग-अलग भूमिकाएं और कार्य निर्धारित किए गए हैं।
- परंपरा वादियों के तर्कों के अनुसार महिलाएं बच्चों को जन्म देती है इसलिए उनका मुख्य लक्ष्य जीवन में मां बनना है और उनका मुख्य कार्य बच्चों को रखना और उनको पालना है। व्याख्यान के जैविक रूप से पुरुष को श्रेष्ठ मानती है ऐसे समाजों में पुरुषों और महिलाओं के मध्य समुचित मात्रा में एक दूसरे की पूरकता थी।
- अनेक आदिवासी समाजों में हमें पता लगता है कि यहां पर समतावादी विचारधारा का चलन था जिसने महिलाओं की कमान को आदर से देखा जाता था और उनका सम्मान स्तर था।
- पुरुष की श्रेष्ठ होने के परंपरावादी सिद्धांत को अनेकों ने चुनौती दी है क्योंकि इसका कोई ऐतिहासिक और ना ही वैज्ञानिक साक्ष्य है। यह जैविक निर्धारण पुरुष की श्रेष्ठता का आधार नहीं बनाया जा सकता है।
- अभी आज सिद्ध हो गया है कि पितृसत्ता सिद्धांत पुरुष ने बनाया है और इसको ऐतिहासिक प्रक्रिया होने की है।
- एंजेला का कहना है कि महिलाओं की अधीनता का आरंभ निजी संपत्ति के साथ आरंभ निजी संपत्ति के साथ आरंभ हुआ जब विश्व में महिला जेंडर की ऐतिहासिक रूप से मात हुई ।वर्गों का विभाजन और महिलाओं के अधीनता , दोनों ही ऐतिहासिक रूप से हुए हैं।
परिवर्तनकारी नारीवादी विचारधारा
- परिवर्तनकारी नारीवादी विचारों के अनुसार पितृसत्ता निजी संपत्ति से पूर्व आई यह विश्वास करते हैं कि मूल विरोधाभास लिंगों के बीच है, ना कि वर्गों के।
- परिवर्तनकारी नारीवादी या मानते हैं कि सभी महिलाएं एक वर्ग है और यह विश्वास नहीं करते हैं कि पितृसत्ता व्यवस्था प्रकृतिक है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि जेंडर समानता को पुरुष और महिलाओं के मध्य जे विकी अथवा मनोवैज्ञानिक भेदों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं।
- शिमला मिर्च फायरस्टोन का विश्वास है कि महिलाओं के दमन का मूलाधार महिलाओं की जनन क्षमता के आधार पर है अभी तक पुरुष इस पर नियंत्रण बनाए हुए हैं।
- कुछ परिवर्तनकारी नारीवादी विद्वानों के अनुसार, सामाजिक वर्गों की व्यवस्था दो प्रकार की है जो निम्नलिखित है:
- आर्थिक वर्ग व्यवस्था जो कि उत्पादन ओं के संबंधों पर आधारित है।
- यौनिक वर्ग व्यवस्था जोगी जनन प्रक्रिया पर आधारित है।
- यह नारीवादी यह भी कहते हैं कि यह अपने आप में महिलाओं की जानी की नहीं है, बल्कि पुरुष की जो मूल्य इन पर लागू है और जो शक्ति उनको एक जे विकी पर नियंत्रण से प्राप्त होती है कोमा दमनकारी है।
समाजवादी विचारधारा
- समाजवादी नारीवादी मार्क्सवादी और परिवर्तनकारी नारीवादी मत को एक साथ जोड़ते हैं यह ऐसा महसूस करते हैं कि दोनों उठाए गए बिंदुओं एक दूसरे को कुछ योगदान करते हैं, परंतु दोनों में से कोई स्वयं में समुचित नहीं है ।
- पितृसत्ता व्यवस्था उनके लिए सार्वभौमिक नहीं और ना ही अपरिवर्तनीय है।
- इनका विचार है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच जो संघर्ष है या उत्पादन की प्रणालियों में परिवर्तन के साथ ऐतिहासिक रूप में परिवर्तित हो जाएंगे। उनके अनुसार पितृसत्ता आर्थिक व्यवस्था के साथ संबंधित है जिसका चंबल उत्पादन की प्रक्रिया या प्रकृति से जुड़ा है, परंतु या आकस्मिक रूप से संबंधित नहीं है।
- मार्क्सवादी विद्वान जनन प्रक्रिया, परिवार तथा घरेलू श्रम के सभी क्षेत्रों को नकारते हैं। समाजवादी महिला वादियों मैं प्रमुख विद्वान है हाईडी हॉटमैन ,मारिया माईस और जेरडा हारनर शामिल है।
जेंडर : संकल्पना और सिद्धांत
- जेंडर की संकल्पना सन 1970 के दशक के आरंभ में सामान्य बोलचाल भाषा में हमारे सामने आई इसका प्रयोग एक विश्लेषणात्मक श्रेणी के तौर पर हुआ था जो कि जैविक की योन और वह तरीके जिनसे या व्यवहार तथा विभिन्न योग्यताएं को निर्धारित करती है, उनके मध्य विभाजन की रेखा खींचती है।
- लिंग /जेंडर में अंतर करने के लिए यह तर्क दिया जाता था कि जैविक अंतर का शारीरिक या मानसिक प्रभाव बढ़ा- चढ़ा कर पेश किया गया था पितृसत्ता व्यवस्था को बनाए रखने के लिए महिलाओं में या भावना जागृत करने के लिए कि यह घरेलू भूमिका को निभाने के लिए प्राकृतिक रूप से उपयुक्त है।
- एरोप्लेन की पुस्तक ट शर्ट कोमा 10 कोमा जेंडर एंड सोसायटी (1972) ने उन्होंने जेंडर के निर्माण के आगे विस्तार के लिए आधारशिला रखी थी उन्होंने टिप्पणी की है कि पश्चिमी संस्कृति या जनरल विविधताओं को अतिशयोक्ति पूर्ण उजागर करती है तथा तर्क रखती है कि हमारी वर्तमान जेंडर भूमिका की सामाजिक दक्षता महिलाओं की घरेलू महिला और मां के रूप में केंद्रित है।
नारीवादी सिद्धांत
- नारीवादी सिद्धांत का उद्देश्य जेंडर समानता को समझना और जेंडर राजनीति को मां शक्ति संबंध तथा यूनिकता पर प्रकाश डालान है।
- नारीवादी पुरुष और महिलाओं की सामाजिक समानता का समर्थन करता है तथा एवं वाद और पितृसत्ता वद के विरुद्ध है। नारीवादी शब्द का प्रयोग एक ऐसे राजनीतिक, सांस्कृतिक या आर्थिक आंदोलन के लिए किया जा सकता है जिसका उद्देश्य महिलाओं के लिए समान अधिकार और कानूनी संरक्षण करना है।
- नारीवादी में राजनीतिक और सामाजिक शास्त्रीय सिद्धांत सम्मिलित है और वह दर्शन जो कि जेंडर विभेद और एक ऐसे आंदोलन इसी प्रकार स आंदोलन से संबंधित है जो कि महिलाओं के लिए जेंडर समानता का समर्थन करते हैं और महिलाओं के अधिकारों और उनके हितों के लिए अभियानों का आयोजन करते हैं।
- नारीवाद तथा नारीवादी शब्दों का सन 1970 के दशक तक विस्तृत प्रयोग नहीं हुआ था । सन 1840 के दशक में पहली बार नारीवाद के चिन्ह नजर आए थे जब महिलाओं की पीड़ा का विरोध हुआ और अफ्रीका स्रोत अमेरिकियों के लोग इन विरोधियों के अंत में सन 1920 में वह मताधिकार प्राप्त करने में विजई हुए, परंतु समाज में जेंडर समानता में अभी तक दोषपूर्ण स्थितियां बनी हुई है।
- नारीवादी समाज में अनेक मुद्दों के विरुद्ध है, हालांकि वे मुख्य /पांच विषयों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। यह निम्न प्रकार है:-
- समाज में समानता की वृद्धि करने के लिए कार्य करना
- समाज में लोगों के विकल्पों के लिए व्यापक क्षेत्रों का निर्माण करना, उनका सुझाव है कि मानवता का पुनः एकीकरण किया जाए
- जेंडर स्तर विन्यास को नष्ट करना
- यौनिक हिंसा को समाप्त करना
- यौनिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करना।
- नारीवादी कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के कानूनी अधिकारों के लिए अभियानों का संचालन कर रहे थे। महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता और अस्मिता का अधिकार, गर्भपात करने का अधिकार तथा प्रजनन संबंधित अधिकारी इत्यादि।
उदारवादी नारीवाद
- उदारवादी नारीवाद राजनीतिक और कानूनी सुधारों के माध्यम से पुरुषों और महिलाओं की समानता के अधिकारों को जलाने के लिए प्रयास करता है।
- यह नारीवाद का जो कि महिलाओं की अपने कार्यों और विकल्पों के माध्यम से एक समानता हासिल करने की क्षमता पर ध्यान देता है।
- उदारवादी नारीवादयों के अनुसार सभी महिलाएं ,समानता को प्राप्त करने की योग्यता रखती है और वह इसके लिए पूरी तरह से सक्षम है, इसलिए समाज की संरचना को बदलने की आवश्यकता नहीं है।
- उदारवादी नारीवाद यों के लिए कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन में प्रजनन और गर्भपात अधिकार, योन संबंधी उत्पीड़न, मतदान, शिक्षा, समान कार्यों के लिए समान वेतन, सामर्थ्य अनुसार स्वास्थ्य देखभाल और महिलाओं के विरुद्ध होने वाली यूनिक और घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिलाओं को लगातार लोगों के सामने लाने के प्रयासरत रहना है।
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