BPSC -131

                            समानता 



परिचय 

  • समानता अर्थात बराबरी  की धारणा  आधुनिक राजनितिक एवं चिंतन का मुख्य विषय प्रतीत होता है।  
  • 1789 में फ्रांसीसी क्रंति व  तदोपरांत अमेरिकी गृह  - युद्ध - लोकतंत्र , समानता व स्वतंत्रता के विचार को व्यक्त करने में ये दो ऐतिहासिक रूप से बड़ी महत्वपूर्ण घटनाए है। 
  • एक ने मध्यकालीन क्रम  - परपम्पराओ को चुनौती दी , तो दूसरी ने नस्ल - आधारित असमानताओं की ओर  ध्यान आकृष्ट किया। 
  • 1931 में लेखन करते हुए आर. एच. टॉनी  ने ब्रिटिश समाज में ' असमानता का धर्म ' पर अफ़सोस ज़ाहिर  किया। जिस बात ने उन्हें परेशान किया था।  वह  मात्र समाज में असमानताओं की विद्यमानता नहीं थी , वरन  उसको नैसगरिक  और अपरिहार्य के रूप में स्वीकार किया जाना था। 
  • आज के संदर्भ में हम कह सकते है की समानता को मानव जीवन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में स्वीकार  किया गया है। 

समानता के विभिन्न प्रकार 

औपचारिक समानता 

  • अंग्रजी दार्शनिक जॉन लॉक  मनुष्य की नैसर्गिक समानता पर आधारित समानता - संबंधी विचार के सर्वाधिक वाकपटु  समर्थको में से एक है। 
  • औपचारिक समानता का अर्थ है - सामान्य मानवता के आधार पर सभी व्यक्तियों से समान रूप व्यवहार किया जाए। 
  • इस विचार की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है - विधि संगत समानता अथवा कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत। 
  • कानून के द्वारा सभी लोगो से समान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए , बेशक उनकी जाति , नस्ल , वर्ण , लिंग , धर्म , सामाजिक पृष्ठ्भूमि , इत्यादि कुछ भी हो।  जबकि नस्ल, लिंग , समाजिक पृष्ठभूमि व  इसी प्रकार के अन्य मानदंडों पर आधारित विशेषाधिकारों के खिलाफ संघर्ष में एक स्वागत योग्य कदम था , अपने आप में यह एक बहुत सिमित धारणा  है। 
  • औपचरिक समानता का मार्गदर्शन करने वाला बुनियादी सिद्धांत यह है की चूँकि सभी मनुष्य समान बनाए गए है , उनके साथ समान व्यवहार होना  चाहिए। 

अवसर की समानता 

  • सरल समझ में , अवसर  का अर्थ है उन सभी अवरोधों को दूर करना जो व्यक्तिगत आत्म - विकास में बाधा  डालते है। 
  • अवसर की समानता एक अत्यंत आकर्षक धारणा  है , जो उस बात से संबंधित  न्याय जीवन के आरम्भ बिंदु रूप में वर्णन  किया जाता है।  
  • निहितार्थ यह है की समानता यह अपेक्षा रखती है की सभी व्यक्ति एक समान बिंदु से जीवन शुरू करे। 
  • यह धारणा  स्वंय को प्रकृति और परम्परा के बीच  भिन्नता  आधारित करती है।  तर्क यह है की वे भिन्नताएँ  जो प्रतिभाओ , कौशलों , कठोर श्रम  इत्यादि जैसे विभिन्न प्रकृतिक गुणों के आधार पर प्रकट ,  नैतिक रूप से समर्थनीय है। 
  • अवसर की समानता को प्रतिशाली व्यक्तियों के  लिए पेशे या व्यवसाय खुले रखना।, निष्पक्ष समान अवसर उपलब्ध कराना  और सकारात्मक - भेदभाव सिद्धांत में बदलाव के माध्यम से संस्थापित किया जाता है। ये सब  प्रकार काम करते है की असमानता की व्यवस्था तर्कसंगत और स्वीकार्य लगे। 
  • यह सिर्फ एक ऐसे समुदाय को जन्म दे सकती है जो एक ओर  तो सफल व्यक्तियों का समुदाय होगा , और दूसरी ओर  असफल व्यक्तियों का ऐसा समुदाय जो अपनी तथाकथिक विफलता के  स्वम् को ही दोषी देगा।
  •  समानता पर उदारवादी विचार अवसर की समानता पर आधारित है।  यह वकालत , समानता संबंधी भी यथेष्ट धारणा  के विरुद्ध है क्योकि वो अवसर है जो असमान  परिणामों  की ओर  ले जाते है। यह सिद्धांत , इस प्रकार , परिणामो  से असंबन्ध है और सिर्फ प्रक्रिया में रूचि रखता है। 
  • एक समतावादी समाज कुछ लोगो को अपनी क्षमताएँ  विकसित करने हेतु  वास्तविक करने हेतु वास्तविक अवसर प्रदान करने से इंकार करगा।   इस अवसर का निष्कपट समतावादी प्रयोग एक सार्थक जीवन  की ओर प्रवृत करेगा। 
  • चूँकि यह सुनिश्चित करना सम्भव नहीं है की हर व्यक्ति एक सार्थक जीवन बिताए , समतावादी इसका प्रयास करेंगे की ऐसी सामाजिक परिस्थितियों हो जो सभी  सार्थक जीवन व्यतीत करने का अवसर प्रदान करे। 

परिणामो की समानता   

  • परिणाम की समानताए के समर्थको  का मानना है सभी दूसरी समानताए अधूरी रहेगी यदि परिणाम की समानता सुनिश्चित  नहीं की जाती। 
  • परिणाम - संबंधी समानता के आलोचक यह बात रखते है की इस प्रकार  का काम निष्क्रियता , अन्याय और तानाशाही का रास्ता दिखलायेगा. 
  • हयेक ने उदाहरण के लिए , तर्क दिया है की लोग चूँकि बहुत भिन्न होते है , उनकी अभिलासए  व  लक्ष्य भिन्न होते तथा कोई भी व्यवस्था जो उनसे समान रूप से सुलूक करती है , वस्तुत: असमानता में परिणत  होती है 

समानता के कुछ मूल सिद्धांत 

  • समतावादी जन यह नहीं मानते  व्यक्ति एक -सा है  अथवा होना चाहिए। हम हमको कुछ ऐसे मर्म सिद्धांत प्रस्तुत करने में मदद करेगी , जिनके प्रति समतावादी वजनबंद्ध होंगे। 
  • पहला वचन इस धारणा  के प्रति है की हर व्यक्ति अपनी मौलिक आवश्यकताओ को पूरा करने का अधिकार रखता / रखती है और जीवन स्तर में व्यापक असंगतियों वाले लक्षण रखने वाला कोई भी समाज उन्हें स्वीकार नहीं है। वे एक ऐसे समाज प्रति वचनबन्ध   जंहा - जीवन दशाए  सहनीय  ही नहीं , बल्कि सभी के लिए एक संतोषजनक एवं पालन योग्य जीवन प्रदान करने में सक्षम भी हो। 
  • एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत समान आदर संबंधी , जिसका निहितार्थ है - किसी भी प्रकार के अपमानजनक व्यवहार अथवा परिस्तिथियो  का विरोध ; आदर्श रूप में , सहानुभूतिपर  आदरित एक समाज। 
  • एक समतावादी विचार न सिर्फ व्यक्तियों बीच  , बल्कि राष्ट्रों के बीच भी , आय व् धन - सम्पति म बड़े अन्तरो  का विरोध करता है। 
  • लैंगिक , प्रजातीय , संजातीय व  धार्मिक समानता  समानता -संबंधी जटिल धारणा  के कुछ अन्य  घटक है। 

समानता के विरुद्ध कुछ तर्क 

  • यह तर्क दिया जाता है की समानता एक ऐसी अवधारणा है जो की वास्तव  की स्वीकार करने योग्य नहीं है क्योकि समाज और समाजिक प्रक्रियाए एक पर्तिस्पर्धा से जुडी , है जिसमे हर एक व्यक्ति विजेता नहीं नहीं हो सकता। 
  • आज के युग में हयेक , फ्रीडमैन एवं ननोज़िक के नाम उस विचार  है जो समतावाद को आजादी लिए एक ख़तरा  मनता है। 
  • नोज़िक  विशेष रूप से जॉन रॉल्स  व ड्वॉर्किन जैसे उदारवादियों के आलोचक है ,  इस बात के  लिए की वे अवसर की  समानता को बढ़ाने  कल्याणकारी विधानों के प्रति वचनबन्ध  थे।
  •  जो की   यह कहते है  समाज में असमानता आत्म - सम्मान  को गुप्त रूप से क्षति पहुँचती है , इसके विपरीत नोज़िक  जैसे मुक्तिवादी का तर्क है यह समतावाद  ही है जो  लोगो से उनका आत्म - सम्मान  छीन  लेता है। 
  • नोज़िक  का दावा  हिअ की असमतवादी समाज व्यक्तियों की विशिष्टता एवं उनके बिच भेद  को स्वीकार के प्रति अधिक सम्मान  दर्शाते है। 
  • एक बड़ी सख्त आपत्ति वे लोग करते है हो यह मानते है की समानता लागु करने का कोई  राज्य को मजबूती प्रदान  करने में परिणत    होता है और इसकी वजह से वैयक्तिक स्वतंत्रता कमजोरी पड़ती है। 

असमानता के पक्ष में उदारवादी तर्कसंगतता 

  • उदारवादी लोगो से भिन्न व्यवहार किय जाने हेतु अनुकूल  मानदंडों के रूप में लिंग , नस्ल ,अथवा वर्ग  को अस्वीकार करते है , परन्तु वे यह जरूर मानते है की यदि असमानताए उनके भिन्न गुण  -अवगुण अथवा योग्तयता के आधार पर अर्जित एवं यथोचित ,है तो यह बात न्यायसंगत और उचित है।    
  • आज के युग में , रॉल्स  एवं ड्वॉर्किन जैसे आधुनिक उदारवादियों ने असमानता को सही ठहराने  के लिए मानदंडों के रूप में योग्यता एवं गुण  को नहीं माना  है।  वे इस समानता को इस धारणा पर आधारित सम्मान की समानता की विकल्प चुनने एवं जीवन - योजना तैयार करने की योग्यता से समान रूप से सम्पन्न  है।
  • 'भेद सिद्धांत ' जो की रॉल्स  स्पष्टता व्यक्त करते है , वह  उनकी समझ में सर्वोत्तम सिद्धांत है  यह असुनिश्चित करने के लिए की प्राकृतिक गुण  अनुचित ; लाभों की ओर  प्रवृत न करे।  
  • यह सिद्धांत अपेक्षा रखता है की सामाजिक व  आर्थिक असमानताए इस प्रकार व्यस्थित हो की ये दोनो शर्ते  पूरी हो : 
  1. ये न्युनतम लाभन्वितो के अधिकतम लाभार्थ हो 
  2. ये अवसर की उचित समान्ता संबंधी शर्तो के तहत सभी के लिए खुले उच्च पद व स्थानों से जुडी हो। 
  • डवोर्किन  समानता संबंधी परम्परागत उदारवादी विचारो से भ्ही सधमती जताते है और कुछ पुनर्वितरण एवं कल्याणकारी नीतियों की आवश्यकता को स्वीकार करते है। 
  •  मैक्फरसन ने रॉल्सवादी समानता की इस आधार पर  आलोचना की है यह वर्गो के बीच  संस्थगत असमानताओं की अपरिहार्यता को मानती है। 
  • ऐसा करते , हुए रोल्स इस तथ्य से करते है की वर्गाधरित असमानताए विभिन्न वर्गो के व्यक्तियों के बिच असमानता  शक्ति - संबंधो को जन्म देती है और इस प्रकार , समानता के अन्य पहलुओं पर असर पड़ता है।

समानता एवं नारीवादी 

  • नारीवादी समानता के मुद्दे को लिंग -भेद के नजरिए से देखते है।  इस संबंध में एक महत्वपूर्ण पुस्तक है सूजन ओके कृत जस्टिस , जेंडर एंड द  फैमिली (1989 ) . 
  • यह तर्क प्रस्तुत किया गया है की समान अवसर संबंधी कानून अथवा विभिन्न क्षेत्रों  हेतु समानता सिंद्धातो के प्रसार द्वारा पुनर्वितरणकारी न्याय , सारत: , समानता पैदा नहीं कर सकते क्योकि ये नियम व सिद्धानत एक ऐसे वातावरण में संचालित होता है जो कि पहले से ही लिंगो के बीच असमानता से दूषित हैं, ऐसी असमानता जो सामाजिक प्रथाओं से जन्मी हैं। 
  • तदनुसार , यद्यपि कानून औपचारिक रूप से लिंगो के बीच  भेद नहीं क्र सकता , हालत यह है की विशिस्ट व्यवसायों में महिलाओ को अलग रखने की प्रवृति  पायी जातीहै और विवाहित महिलाए जो व्यवसायरत है , एक लिंगभेद के पर्वाग्रह से ग्रसित समाज में खास तौर  पर हानि है। 
  • लिंग समानता का उपचार ढूंढ़ना मुश्किल है , जब तक की महिलाए एवं अपनी असमानता , परिवार में अपनी अधीनस्थान भूमिका के प्रति जागरूक नहीं होती , और सामाजिक ढांचों को पुनः अनुकूलित करने के लिए सामने नहीं आती  , लिंगभेद समानता के संबंध में ठोस कुछ नहीं किया जा सकता। 

समानता और स्वतंत्रता 

  • अक्सर यह दावा किया जाता है की एक तो स्वतंत्रता  व समानता विरोधात्मक है ,और दूसरे यह विवाद इसी कारण समझौते के योग्य नहीं है। 
  • डी  टोकविल  ने समानता को स्वतंत्रता के समाने खड़े एक संभावित खतरे एवं बहुमत की निरंकुशता के रूप में देखा , जैसे की वह  व्यापक सानुरूकपता  भय  से देखते थे , फ्रीडमैन , नोजिक  एवं हयेक इस विचार से जुड़े कुछ अभी हाल  के नाम है। 
  • यह सुझाते हुए की समानता लागु करने के प्रयासों का तत्काल अर्थ होता है - बलप्रयोग और स्वतंत्रता की समांप्ति। 
  • यँहा  समानता की तुलना एकरूपता से करने का सुविचारित प्रयास किया जाता है , समतावादी समाज कोई समरूप समाज नहीं होता। 
  • वे लोग जो यह दवा करते है की समानता एवं स्वतंत्रता असमाधेय है , अपनी बात स्वंत्रता की एक विशिष्ट समझ से शुरू करते है ; जिसका वर्णन स्वंत्रता की 'नकारात्मक संकल्पना ' के रूप में किया जाता है। 
  • संतवादियो का कहना है की सामाजिक प्रभाव , आर्थिक धन - सम्पत्ति  एवं शिक्षा के लिहाज से समानता यह सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है की हर व्यक्ति एक सार्थक एवं यथेष्ट जीवन व्यतीत करे। 
  • समतावादी यह तर्क देता हैं की मनुष्य महज अकेले छोड़ दिए जाने से स्वतंत्र नहीं हो जाता। उसका कहना हैं की अधिकार, धन-सम्पति व शिक्षा स्वतंत्रता के मूल स्रोत हैं और वह समाज जो उन पहलुओं में समानता सुनिश्चित नहीं कर सकता , स्वंत्रत समाज नहीं हो सकता। 
  • बीसवीं सदी का अधिकांश समय ऐसा था , झ समानता की तर्कसंगतता  देने की जरूरत नहीं थी। इसको ऐसे केंद्रीय के रूप में देखा जाता था  जिसके इर्द -गिर्द  राष्ट्रों व  समाजो को स्वंय को संगठित करना होता था। 
  • सम्पति के अधिकार की अपरिहार्य प्रवृत्ति  एवं समाज की अनिवार्यत: बहुवादी  प्रवृत्ति  के चलते समतावाद - विरोधी दावे को समानता के अनुशीलन  द्वारा गंभीर से ख़तरा  रहेगा। 
  



  
 


















 

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