Class 10 भारत में राष्ट्रवाद
साइमन कमीशन :
साइमन कमीशन : ब्रिटैन की टोरी सरकार ने राष्ट्रवादी आंदोलन के जवाब में एक वैधानिक आयोग का गठन किया था। इस गठन का नेतृत्व सर जॉन साइमन कर रहे थे। इस आयोग को भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्यन करना था और उसके बारे में सुझाव देने थे। लेकिन कमाल की बात ये की इस आयोग में सारे अंग्रेज थे और एक भी भारतीय नहीं था।
इस वजह से जब ये कमीशन भारत पहुंचा 1928 में तो इसका स्वागत " साइमन वापस जाओ " के नारे से हुआ। कांग्रेस और मुस्लिम लीग सभी दलों ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। हालांकि ये विरोध प्रदर्शन शान्ति पूर्ण था पर फिर भी पुलिस वालो ने इस प्रदर्शन को रोकने के लिए बल का प्रयोग किया। और इस दौरान लाला लाजपत राय को पुलिस की लाठियों से जख्म आये और उन्होंने दम तोड़ दिया।
लाला लाजपत राय की मृत्यु के पश्चात लोगो में गुस्सा फूटा और अंग्रेज सरकार के खिलाफ विरोध और तेज हो गया। इस विरोध को शांत करने के लिए उस समय के वायसराय लार्ड इरविन ने भारत के लिए " डोमिनियन स्टेटस " का गोलमाल सा ऐलान कर दिया परन्तु इसकी कोई समय सीमा नहीं बताई हां बस इतना कहा की भारत के भावी संविधान की चर्चा के करने के लिए गोलमेज सम्मलेन आयोजित किया जाएगा।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930 में आयोजित किया गया था, जो कि ब्रिटिश सरकार द्वारा ब्रिटिश भारत में संवैधानिक सुधारों पर विचार करने के लिए आयोजित तीन सम्मेलनों में से पहला था। इस सम्मेलन में मुख्य रूप से भारतीय रियासतों, अल्पसंख्यकों और ब्रिटिश सरकार के समर्थकों ने भाग लिया, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने पूर्ण स्वराज की कांग्रेस की मांग पर विचार करने से इनकार कर दिया था। डोमिनियन स्टेटस का मतलब है ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर स्वायत्त, अर्ध-स्वतंत्र शासित राज्य। इसका मतलब है कि ये राज्य ब्रिटिश क्राउन के अधीन थे, लेकिन उन्हें अपने आंतरिक मामलों में स्वायत्तता प्राप्त थी.
दिसंबर 1929 कांग्रेस पार्टी का लाहौर में अधिवेशन हुआ। इसका नेतृत्व जवाहर लाल नेहरू कर रहे थे। इस बैठक में पूर्ण स्वराज के मांग को औपचारिक रूप से मान लिया गया था। ये तय किया गया की 26 जनवरी 1930 को स्वंतंत्रता दिवस मनाया जाएगा और लोग इस दिन पूर्ण स्वराज के संघर्ष के लिए शपथ लेंगे।
कांग्रेस पार्टी ने तो पूर्ण स्वराज की घोषणा कर दी थी पर इस विचार को आम जनता के भीतर बैठने के लिए इस विचार को रोजमर्रा के मुद्दे से जोड़ना था और ये काम किया गाँधी जी ने।
देश को एक जूट करने के लिए महात्मा गाँधी ने जो एक शक्तिशाली प्रतीक का प्रयोग किया वो था नमक।
यहाँ जिस समय की हम बात कर रहे है उस समय ब्रिटिश सरकार ने नमक पर कर ( tax ) लगा रखा था और साथ ही नमक बनाने का भी एकलौता अधिकार ब्रिटिश सरकार के पास ही था।
क्यूंकि नमक का उपयोग अमीर -गरीब सभी लोग ही करते है और साथ ही ये दैनिक जीवन के भोजन का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए अंग्रेज सरकार के इस नियम को गाँधी जी ने सबसे दमनकारी बताया।
दांडी यात्रा का आरम्भ
कहानी की शुरुआत कुछ इस तरिके से होती है :
- 31 जनवरी 1930 को गाँधी जी ने उस समय के वाइसराय लार्ड इरविन को पत्र लिखा जिसमे कूल 11 मांगो का उल्लेख किया था।
- इनमे से कुछ मांग सामान्य थी और सबसे महत्वपूर्ण मांग थी की अंग्रेज सरकार नमक से कर ( tax ) हटाए।
- गाँधी जी का ये पत्र एक चेतावनी की तरह था जिसमे उन्होंने साफ़ किया था की अंग्रेज सरकार 11 मार्च तक उनकी मांगे मान ले वर्ना कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ कर देगी।
- इरविन ने मांगे नहीं मानी जिसके बाद गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 से अपनी दांडी यात्रा आरम्भ की।
- ये यात्रा गाँधी जी ने अपने 78 सहायक के साथ साबरमती आश्रम से शुरू की। इस यात्रा को गुजरात के ही दांडी नामक कस्बे पर पूरी होनी थी।
- कूल यात्रा 240 माइल्स की थी जिसमे 24 दिनों तक हर रोज 10 माइल्स की यात्रा पूरी की गयी।
- जगह जगह गाँधी जी रुकते और भाषण देते और स्वराज का आह्वान देते।
- इन सभाओ और भाषण में गाँधी जी ने लोगो से कहा की अंग्रेज सरकार की शांतिपूर्ण तरीके से अवज्ञा करे। उनका कहना न माने
- गाँधी जी 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचे और उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानून तोडा। और यही से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई
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Class 10 sst
Good one..
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