स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अर्थ तथा प्रकार
- स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रणो से मुक्ति , अथवा उनका आभाव। किसी व्यक्ति को मुक्त अथवा कुछ करने में स्वतंत्र माना जा सकता है , जब उसके कार्य अथवा विकल्प दूसरे के कार्यो अथवा विकल्पों द्वारा बाधित अथवा अवरुद्ध न हो।
- हर समाज के पास स्वतंत्रता विषयक प्रतिबंधो को एक श्रंखला होगी , जो की इस आधार पर न्यायसंगत है की लोग इन प्रतिबंधो को यह मानकर स्वीकार करते है की स्वतंत्रता का अधिकतम विकास ये सर्वश्रेष्ठ परिस्थितिया है।
- 'नियंत्रण - आभाव ' अथवा 'बाह्र्य अवरोधों का आभाव ' के स्वतंत्रता - बोध का आमतौर पर निषेधामत्क के रूप में वर्णन किया जाता है।
- स्वतंत्रता का 'नकारत्मक ' प्रभाव दो भिन्न अर्थो में दिखाई पड़ता है।
2.दूसरा दृश्टिकोण स्वतंत्रता को 'विकल्प की स्वतंत्रता ' के रूप में देखता है। मिलटन फ्रीडमैन , उदाहरण के
लिए , अपनी पुस्तक ' कैप्टिलालिस्म एंड फ्रीडम (1962 ) में कहते है की 'आर्थिक स्ववतंत्रता ' शामिल है बाजार - व्यवस्था में चुनने की आजादी - उपभोक्ता को यह चुनने की आजादी की वह क्या खरीदे , कर्मचारी को यह आजादी की वह अपनी नौकरी अथवा पेशे को चुने और उत्पादक को यह आजादी की वह क्या उतपादन करे और किसे रोजगार दे। चुनने का अर्थ है की विभिन्न विकल्पों में से बेरोटोक और स्वैच्छिक चुनाव कर सके।
- स्वतंत्रता के विषय में बात करते हुए प्राय: उसकी नकारत्मकता व सकारात्मक धरणाओ के बिच भेद किया जाता है , यथा 'बाहय अवरोधों का आभाव ' तथा 'समर्थ करने वाली अथवा मदद करने वाली दशाओ ही विघमानता ' के बिच।
- स्वतंत्रता संबंधी नकारात्मक संकल्पना अंग्रेजी , राजनितिक विचार - सूत्र का लक्षण है , जिसका प्रतिनिधित्व जैरेमी बैन्थम , जेम्स मिल , जोह स्टुअर्ट मिल , हेनरी सिगवक , हर्बर्ट स्पैंसर एवं उन सैद्धांतिक अर्थशास्त्रो ने किया।
- नकारात्मक स्वतंत्रता का मुख्य स्वंय सिद्ध सत्य था की 'हर व्यक्ति अपने हित को सबसे अच्छी तरह जनता है ' और राज्य कोलोगो के साधन व प्रयोजन तय नहीं करने चाहिए।
- नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा स्वतंत्रता कके एक अर्थ विषयक सिद्धंत के रूप में सबसे अच्छी तरह समझी जाती है।
- स्वतंत्रता संबंधी नकारात्मक धरना की आलोचना आधुनिक उदारवादियों , सामाजिक प्रजातंत्रवादियो एवं समाजवादियों कि ओर से हुई है। उन्नीसवीं सदी में उदारवादियों मुख्यत: टी एच मिल. में नकारात्मक स्वतंत्रता संबंधी कुछ सबसे पहली आलोचनाएँ प्रस्तुत की।
- स्वतंत्रतासंबंधी सकारात्मक धरना को अपनाने वाले प्रथम उदारवादियों में एक थे टी एच ग्रीन (1836 -82 ), जिन्होंने स्वतंत्रता को लोगो की ' स्वयं द्वारा सबसे अधिक और सबसे अच्छा किए जाने ' संबंधी योग्तया के रूप में परिभाषित किया।
- सकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा कल्याणकारी राज्य का आदर रही है। इस धारणा ने राज्यों द्वारा रखे गए सामाजिक कल्याणकारी प्रावधानों के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में काम किया है , जिसके द्वारा सकारात्मक समानता से जुड़ गयी।
स्वतंत्रता पर जे.एस मिल की धारणा
- जे. एस. मिल की पुस्तक ऑन लिबर्टी 1960 के दशक में अकादमिक बहसों में प्रभावशाली रही। मिल की पुस्तक को स्वतंत्रता-संबंधी नकारात्मकअवधारणा की एक व्याख्या के रूप में देखा जाता है.
- मिल के अनुसार कोई भी स्वतंत्रत कार्य , चाहे वः कितना भी अनैतिक हो , अपने में स्द्फ़न का कुछ तत्व रखता है , क्योकि वह स्वतंत्रतापूर्वक किया गया है।
- मिल के अनुसार , स्वतंत्रता का उद्देश्य था ' व्यक्तित्व ' हासिल करने को बढ़ावा।
- के तानेबाने में स्वतंत्रता इसीलिए मात्र नियंत्रण - आभाव के रूप में नहीं , बल्कि कुछ वंछित प्रवृतियो की सुविवेचित वृद्धि में नजर आती है। यही बात है जिसके कारण मिल को अक्सर स्वतंत्रता की सकारात्मक संकल्पना की ओर आकर्षित होते देखा जाता है।
- अपने व्यक्तित्व को स्पस्ष्टया अनुभव करने के लिए , और उसके द्वारा स्वतंत्रता की स्थिति प्राप्त करने के लिए , यह आवश्यक था की व्यक्तिजन दवाबो अथवा मानदंडों व प्रथाओं का विरोध करे जो आत्म - निश्चय में बाधक थे।
- मिल का , तथापि , यह विचार भी था की विरोध करने व स्वतंत्रत विकल्प चुनने वाली विषयवस्तु है , जिसके द्वारा वे परतंत्रता की दशा में रहते। है
- स्वतंत्रता -संबंधी मिल का अवधारणा को इसी कारण संभ्रांतवादी के रूप में देखा जा सकता है , क्योकि व्यक्तित्व का उपभोग मात्र एक अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा ही किया जा सकता है , न की व्यापक रूप से जन - साधारण द्वारा।
- मिल के विचार से व्यक्तित्व यदि समाज के बिच सीमांकन कठोर नहीं है क्योकि सभी कार्य दुसरो को किसी न किसी तरीके से प्रभावित करते ही है।
- मिल का मानना यह भी था की उसका सिद्धांत दुसरो के आत्म -संबंधी व्यवहार की तरफ किसी नैतिक उदासीनता का धर्मोपदेश नहीं करता।
- मिल ने महसूस किया की खुली चर्चा पर से सभी प्रतिबन्ध हटा लिए जाने चाहिए , क्योकि विचारो की खुली प्रतिस्पर्धा से सच्चाई उजागर होगी।
- यह उल्लेख किया जा सकता है की स्वतंत्रताओ संबंधी सूची में ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को शायद एक लोकतान्त्रिक आदर्श के रूप में आर्थिक स्वतंत्रता की जगह अधिक महत्व दिया जाता है।
ईसाइया बर्लिन तथा ' टू कॉन्सेप्ट्स ऑफ़ लिबर्टी '
- अपनी सहितित्य रचना ' टू कॉन्सेप्ट्स ऑफ़ लिबर्टी ( प्रथम प्रकाशित : 1958 ) में ईसाइया बर्लिन स्वतंत्रता संबंधी नकारत्मक व सकारात्मक धारणाओं के बीच सामंजस्य स्थापित प्रयास करते है।
- बर्लिन के अनुसार ,स्वतंत्रता संबंधी 'नकरात्मक ' धारणा को इस प्रश्न का जबाब देकर समझा जा सकता है :वह कोन सा क्षेत्र है जिसमे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह को बिना दुसरो के हस्तक्षेप की छूट दे दी जनि चाहिए।
- दूसरओर 'सकारत्मक ' अर्थ इस प्रश्न के उत्तर से संबंधित है : ' नियंत्रण अथवा हस्तक्षेप का स्रोत , क्या अथवा कोण है , जो किसी व्यक्ति को उस की बजाय यह करने , अथवा बनने , को निश्चित कर सकता है?
- इस अवधारणा का मुख्य लक्ष्ण है , इसका खुले रूप से मुल्यांकनकरी स्वाभाव , इसका प्रयोग वंछित माने जाने वाली जीवन - रीती से विशेष रूप से जुड़ा है। सकरात्मक स्वतंत्रता संबंधी धारणा में व्यक्तित्व का एक विशेष अर्थ शामिल है और वह सिर्फ यह मानकर नहीं चलती की गतिविधि का एक कार्यक्षेत्र होता है , जिसकी ओर ही व्यक्ति स्वयं को लक्ष्य - निर्देशित करे।
- उक्त धारणा यह सूझती है की जब व्यक्ति लक्ष्य -निर्देशित होता है , तो वह स्वतंत्रत किया जा रहा होता है।
- यह धारणा की व्यक्ति के उच्च संकल्प समष्टियों , जैसे की वर्ग , राष्ट्र व प्रजाति के संकल्पो के अनुरूप ही होते है , सत्तावादी विचारधाराओ की ओर प्रवृत कर सकते है।
मार्क्सवादी समालोचना तथा स्वतंत्रता का विचार
- भिन्नता संबंधी मुख्य बाटे व्यक्ति व् समाज संबंधी मार्क्सवादी समझ , दोनों के बिच संबंध एवं पूँजीवादी समाज संबंधी मार्क्सवादी समीक्षा से सामने आती है।
- मार्क्सवादीयो के अनुसार , व्यक्ति विकल्प के स्वतंत्रत प्रयोग हेतु स्वायत्त स्थानोकी सीमाओं द्वारा समाज में अन्य व्यक्तियों से अच्छा नहीं है। इसकी बजाय वे परस्पर निर्भरता साथ बंधे है।
- मार्क्सवादीयो के अनुसार ,इसी कारण स्वतंत्रता रचनात्मक व्यक्तित्व के विकास में निहित होती है , और पूँजीवादी समाज में इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता जंहा स्वयं के स्वतंत्र होने की मात्र कर सकते है जबकि वास्तव में वे शोषणकारी ढांचो से बंधे होते है।
- ये विचार फ्रेड्रिक एंजिल्स कृत ऐनटी - डुरिंग एवं कार्ल मार्क्स कृत इकॉनमी एंड फ्लॉसॉफिक मेनयुस्क्रिप्ट ऑफ़ 1844 स्पष्टया व्यक्त है।
- एंजिल्स स्वंत्रता - संबंधी धारणा की चर्चा आवश्यकता से स्वंतत्रता तक गुजरने की स्थिति के रूप में करते है।
- एन्जिल्स बताते है की इंसान में उन शक्तियों को पहचानने व समझने की क्षमता , उसके जीवन को अनुकूलित व निशिचत करती है।
- विडंबना यह है मनुष्य अब तक उन उतपादन - बलों के बंधन से मुक्त नहीं जिन्होंने उसे ऐतिहासिक अधीनता न्याय है , या अन्य शब्दों में , उसे आवश्यकता के कार्यक्षेत्र सिमित रखा है।
- स्वंतत्रता कम्युनिस्ट मैनिफैस्टो में मार्क्स व एन्जिल्स द्वारा निर्धारित साम्यवादी समाज संबंधी धारणा का एक महत्वपूर्ण अवयव है। एक साम्यवादी समाज में ही जंहा कोई वर्ग - शोषण नहीं होगा , स्वंतत्रता की प्राप्ति होगी।
- अपनी पुस्तक मेनयुस्क्रिप्ट में कार्ल मार्क्स दृष्द्तापूर्वक कहते है की पूंजीवादी समाज व्यक्ति अमानवीय बना रहा है।
- मार्क्स ने स्वंतत्रता के यथार्थ कार्यक्षेत्र को अपने लिए ही स्वंतत्रता के विकास के रूप देखा।इस प्रयोज्य संसाधन अनुभूति , मार्क्स मानना था , अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने हेतु दुसरो के साथ काम हुए , सिर्फ रचनात्मक उद्योग के अनुभव से ही की जा सकती है।
स्वंतत्रता पर अन्य सामयिक विचार
- बर्लिन को छोड़कर , जिसकी पुस्तक शायद स्वंतत्रता विषयक पुस्तकों में सबसे महत्वपूर्ण है , अन्य विचारक भी है जिन्होंने वैचारिक विभाजन के दोनों पक्षों पर विचारकों द्वारा व्यक्त विचरो पर विस्तार से स्वंतत्रतासंबंधी धारणा पर चर्चा की है।
- मिलटन फ्रीडमैन , मिल व बर्लिन भाँति , एक उदारवादी थे जिसने अपनी पुस्तक कैपटिलिस्म एंड फ्रीडम में पूंजीवादी समाज के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में स्वंतत्रता की धारणा विकसितकिया।
- आदान - प्रदान की स्वंतत्रता, स्वंतत्रता का एक आवश्यक पहलू था।
- फ़्रीडमैन के अनुसार, न सिर्फ व्यक्तियजनों के बीच स्वंतत्रत व स्वैच्छिक आदान - प्रदान हेतु स्वंतत्रताअनिवार्य थी साथ ही ऐसी स्वंतत्रता सिर्फ पूंजीवादी समाज में ही प्राप्त की सकती। इसके अतिरिक्त , यह आर्थिक स्वंतत्रता ही थी , जिसने राजनितिक स्वंतत्रता हेतु कालोचित व आवश्यकता परिस्थिति प्रदान की।
- अपनी पुस्तक द कॉन्स्टिटूशन ऑफ़ लिबर्टी (1960 ) में , एफ. ए. हयेक ने स्वंतत्रता संबंधी एक सिद्धांत प्रतिपादित , किया जो राज्य की नकारात्मक भूमिका पर बल देता है।
- हयेक के अनुसार , एक स्वंतत्रता की स्थिति जब प्राप्त होती है , जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति मनमानी इच्छा के अधीन नहीं रहता।
- ऐरिक. फॉर्म (1900 -1980 ) ने स्पष्त किया की आधुनिक समाजो में अलगाव व्यक्ति के उसकी रचनात्मक क्षमताओं व सामाजिक संबंधो से पृथिक होने के परिणामस्वरूप ही उतपन्न हुआ। इस परथकरण ने व्यक्ति में उसके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हुए उसमे भौतिक व नैतिक अलगाव पैदा किया।
- हर्बर्ट मैक्यूरज ने भी अपनी पुस्तक वन - डाइमैंशल मैन: स्टडीज इन दि आइडिओलॉजी ऑफ़ एडवांस्ड इंडिस्ट्रियल सोसाइटी (1968 ) में पूंजीवादी सनजो में पृथकरण की प्रकृति सम्बन्धी अच्छी छानबीन की है
- मक्र्यूज द्रिस्दतापूर्वक कहते है की पूंजीवादी समाजो में व्यक्ति की रचनात्मक बहुआयामी क्षमता निष्फल हो जाती है
- मनुष्य सवयं को सिर्फ अपनी भौतिक आव्सय्कताओ की पूर्ति में निरंतर लगे एक उपभोक्ता के रूप में ही व्यक्त कर सकता है .
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IGNOU
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