BPSC -131 RKSHTMK BHEDBHAV BNAM NISHPKSHTA KA SIDHANT

रक्षात्मक भेदभाव बनाम निष्पक्षता का सिद्धांत

रक्षात्मक भेदभाव की संकल्पना 

  • रक्षात्मक भेदभाव का अर्थ उस नीति से है जिसके द्वारा राज्य जानबूझकर अपने नागरिकों में कुछ निश्चित मापदंडों के आधार पर भेदभाव करता है ताकि उनमें सबसे कमजोर लोगों के हित की रक्षा हो सके।
  •  इस नीति का निर्माण उन लोगों के बचाव के लिए है जो समाज वंचित है और जिनको पहले अब वर्तमान समय में भेदभाव का सामना करना पड़ा है या राज्यों के द्वारा उठाए ना सकारात्मक कार्यों की कार्यक्रम है ताकि समाज के सभी वर्गों को समानता का अधिकार और सबको समान रूप से न्याय प्राप्त हो सके।
  •  इसका उद्देश्य समाज में व्यापक भेदभाव और शोषण को कम करना है और अवसरों को समान रूप से दिलाने तथा उनके साथ समानता की विशेष व्यवहार करने के लिए नीति का प्रयोग करना है ।
  • रक्षात्मक भेदभाव का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों की सुरक्षा करना है जो सामाजिक तथा ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित रहे हैं इनका शोषण किया गया है।
  •  राज्य अपनी कानूनी दृष्टिकोण में सभी नागरिकों को समान रूप से देखता है और उनके साथ समान व्यवहार करता है। हालांकि , आधुनिक राज्य इस आवश्यकता को मान्यता प्रदान कर चुका है कि अपनी विशिष्ट सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के नागरिकों के साथ अलग व्यवहार करना चाहिए।
  •  यदि रास्ते की जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भेदभाव पूर्ण सामाजिक प्रथाओं से ग्रसित है और इस तरह के व्यवहार से पीड़ित लोगों की गरिमा पूर्ण जीवन के अधिकारों का हनन हुआ है और राज्य से प्राप्त संसाधनों का उपयोग करने में बाधा आई है तो जनसंख्या का वह हिस्सा विशेष अधिकारों देने के लिए उपयुक्त है।
  •  भारत में संविधान के अनुच्छेद 17 के द्वारा अस्पृश्यता समाप्त कर दी गई है किंतु निम्न जातियों के विरुद्ध या अभी भी सूक्ष्म इंसाफ रूप में व्यापक रूप से मौजूद है।
  •  इन सामाजिक बुराइयों को समाप्त करके नई सामाजिक व्यवस्था तैयार करने के लिए कुछ निश्चित और मजबूत उपायों को अपनाना जरूरी है ।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार रक्षात्मक भेदभाव के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत किए हैं:-
  1.  अवसरों की समानता बहुत ही सेंड या न्यून है और यदि इसे अधिक प्रभाव कारी नहीं बनाया गया तो या मौजूदा नहीं होगी ।
  2. असमानता और गरीब और शिक्षा तथा सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से पिछड़ेपन के बीच करणीय रिश्ता है।
  3.  वस्तुओ और सेवाओं के आबंटन कि वह कोई भी व्यवस्था अवसरों की समानता नहीं होगी और अनुचित होगी ,यदि आबंटन समाज के विभिन्न भागों के लिए और समानता से किया गया है ।
  4. रक्षात्मक भेदभाव कई सारे माध्यमों मैं से एक है जो वस्तुओं और सेवाओं के आबंटन मैं जो असंतुलन है उसे ठीक करता है । यह प्रक्रिया निष्पक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।


  •  भारतीय संविधान के रचनाकारों का मुख्य उद्देश्य था समतावादी समाज का निर्माण करना, न्याय प्रबल हो और हैसियत का अवसर की समानता हो।
  •  संविधान में कानून के समक्ष सभी नागरिकों को समानता के मौलिक अधिकार की गारंटी प्रदान की गई है किंतु संविधान में यह भी उल्लेख कर दिया गया है कि किसी भी सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े नागरिकों वर्गो तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों की उन्नति व प्रगति के लिए राज्य को काम करने से संविधान में कुछ भी नहीं रोकेगा।
  •  आरक्षण की नीति या सकारात्मक भेदभाव सामाजिक आर्थिक परिवर्तन एकीकरण और भारत के विकास की प्रक्रिया का हिस्सा है।
  •  इसमें से कुछ प्रावधान भारत के संविधान में सम्मिलित है, जो इस प्रकार से है:- अनुच्छेद 15 और 16 (समानता का अधिकार) अनुच्छेद 46 (अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों के संरक्षण संबंधी प्रावधान) तथा अनुच्छेद 340 (अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए)।वे प्रमुख क्षेत्र जहां राज्य ने रक्षात्मक भेदभाव को आगे बढ़ाया वे है वह - शिक्षा ,कल्याणकारी कार्य और आर्थिक गतिविधियां लोक सेवाएं तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व।
  •  राजनीतिक प्रतिनिधित्व के प्रधान व नीतियों का पालन करना अनिवार्य है इसके अतिरिक्त बाकी सब विषयों में संविधान ने रक्षात्मक भेदभाव का काम राज्य के विवेक पर छोड़ा हुआ है।

निष्पक्षता का सिद्धांत

  • निष्पक्ष न्याय की अवधारणा का उल्लेख जॉन रोलस ने अपनी पुस्तक स्टोरी ऑफ जस्टिस ने किया है। रोल्स के अनुसार, कुछ नैतिक सिद्धांत हम पर अनिवार्यतः लागू होते हैं ,क्योंकि तर्कसंगत प्राणियों की मूल स्थिति में वे स्वीकार्य होंगे ।
  • उनके लिए न्याय प्राकृतिक कानून नहीं है ना ही तर्क पर आधारित है परंतु निष्पक्ष प्रक्रिया पर आधारित निष्पक्ष वितरण है।
  •  रोलस का मानना कि समाज में सभी व्यक्तियों का ज्ञान समान नहीं होता है और ना ही वे समाज आर्थिक और सामाजिक स्थिति में रहते हैं ।
  • न्याय की एक महत्वपूर्ण मांग है कि समाज के सबसे कम सुविधा प्राप्त लोगों का भी ध्यान रखा जाए।
  •  उनके अनुसार ने समाज के सभी सदस्यों के बीच सभी लाभों का वितरण है, इस अनुपात में नहीं कि एक व्यक्ति क्या करता है  परंतु इस आधार पर की कमजोर वर्गों में सबसे कमजोर व्यक्तियों को भी इसका लाभ प्राप्त हो।
  •   रोलस के लिए न्याय निष्पक्षता है। निष्पक्ष न्याय वहां होता है जहां पर स्वतंत्रता और समानता व्यक्तियों के बीच सहयोग की निष्पक्ष व्यवस्था मौजूद होनी चाहिए।
  •  न्याय का उद्देश्य उपयुक्त सिद्धांतों की तलाश करते हैं, उस समझौते का नतीजा है जो लोग अपने फायदे के लिए करते हैं ।
  • जब लोग स्वतंत्र और समान स्थिति प्राप्त कर लेते हैं, वह ऐसा महसूस करते हैं कि अच्छाई की अपनी धारणा को पाने के लिए उन्हें एक जैसे प्राथमिक पदार्थ चाहिए ।
  • यह जो प्राथमिक वस्तुओं है, वे है - मूल अधिकार ,स्वतंत्रता ,अवसर, आय संपत्ति और आत्मि- प्रतिष्ठा ।
  • न्याय का अर्थ होगा कि प्राथमिक वस्तुओं का वितरण समान रूप से किया जाएगा जब तक कि इन के असमान वितरण का लाभ सबसे कम सुविधा प्राप्त लोगों तक पहुंचे ।
  • रोल्स के अनुसार, न्याय की संकल्पना में मूल विचार निष्पक्षता का सिद्धांत है, और वह न्याय को केवल सामाजिक संस्थाओं का गुण मानते हैं ।
  • न्याय का सिद्धांत प्रतिबंधों को सूत्र बंद करने का कार्य करता है कि किस प्रकार से प्रथाएं स्थितियों और पदों को परिभाषित करती है और इसे शक्तियां ,देनदारियों, अधिकार और कर्तव्य सौपती हैं ।
  • दूसरी और, निष्पक्षता का सिद्धांत या कहता है, कि यदि बहुत सारे लोग सार्वजनिक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं ,जिनसे हम लाभ प्राप्त करते हैं ।
  • यह नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं होगा कि हम उन वस्तुओं को निशुल्क प्राप्त करें , हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम वस्तुओं के उत्पादन की उचित लागत देकर लाभ उठाएं।
  •  प्रारंभ में ,सबसे पहले निष्पक्षता के सिद्धांत को सूत्रबंध्य एच एल ए हार्ट के द्वारा किया गया था और उनके बाद रोलस द्वारा।
  •  ये दोनों ही सहयोगी की निष्पक्ष योजना में सार्वजनिक वस्तुओं के उत्पादन के संबंध में भार और लाभ के वितरण का आधार पर सिद्धांत आधारित समाज को प्रस्तुत करते हैं।
  •  निष्पक्षता के अनुसार, यह हमारा कर्तव्य है कि सहयोग की निष्पक्ष योजना के तहत हम मुफ्त की चीजो या सेवाओं की आशा ना करें ।यह गैर - परिणाम वादी नैतिक दायित्व है, क्योंकि आधारभूत तक यहां पर कम आपूर्ति के बुरे परिणाम से बचने का नहीं है बल्कि न्याय का एक मानक स्थापित करने का है।
  •  यह अन्याय होगा। कुछ सामाजिक तथा राजनीतिक उत्तरदायित्व को नियोजित बनाने के लिए इस सिद्धांत का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  •  नोजिक और फ्लू जैसे स्वतंत्र वादी रोलर से सहमत नहीं थे और उनके इस दावे को ठुकराते हैं कि जो प्राकृतिक रूप से नुकसान झेल रहे हैं वह उन पर दावा करें जिनके पास सुविधा है।
  •  वे योग्यता ,उत्कृष्टता और इंसानों में प्राकृतिक और समानता में विश्वास रखते हैं।

रक्षात्मक भेदभाव बनाम निष्पक्षता का सिद्धांत

  • समानता का चर्चा करते समय हम केवल कानूनी समानता या अवसर की समानता की भावना से बात नहीं कर रहे हैं। बल्कि स्थितियों तथा परिणामों की समानता ओं के संबंध में चर्चा कर रहे हैं ।
  • "कानून के समक्ष समानता" तथा "कानून का समान रूप से संरक्षण" यह कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।

औपचारिक बनाम वास्तविक समानता

  • औपचारिक समानता का अर्थ है कानून के समक्ष समानता जो कि एक उदारवादी धारणा है इसमें सार्वभौमिकता का सिद्धांत शामिल है जहां दो व्यक्तियों के साथ समान रूप से व्यवहार किया जाएगा जब तक कोई भेजना सिद्धांत न हो ।
  • लुकास के अनुसार, कानून की सहभागिता उद्गम इस तथ्य पर आधारित है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए अलग-अलग विधि निर्माण करने में असमर्थ है क्योंकि सभी व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न है।
  •  इसलिए व्यवहारिक दृष्टि से राज्य ऐसे कानूनों का निर्माण करता है, जोकि सर्वभौमिक रूप से लागू हो ।
  • इसका अर्थ यह हुआ कि औपचारिक समानता केवल प्रक्रियात्मक अन्याय उपलब्ध करा सकती है ।दूसरी और, वास्तविक समानता की व्यापक अवधारणा है, जो कि अन्य मूल्यों से संबंध रखती है जैसे कि न्याय ,अधिकार और समानता।
  •  फ्रेडमैन के अनुसार, वास्तविक समानता के चार दृष्टिकोण है जो निम्न प्रकार है:
  1.  परिणामों की समानता : समानता पूर्ण व्यवहार परिणामों की समानता की गारंटी नहीं देता है।
  2.  आरंभिक बिंदु की समानता :वास्तविक समानता अर्जित नहीं हो पाएगी यदि लोग व्यक्तिगत रूप से अपनी दौड़ अलग-अलग बिंदुओं से आरंभ करेंगे समान अवसरों के दृष्टिकोण का उद्देश्य है कि सब का आरंभ बिंदु समान हो।
  3.  अधिकार आधारित समानता: समानता को वास्तविक अधिकारों की सहायक मानती है ।
  4. महत्व -आधारित दृष्टिकोण: यह दृष्टिकोण समाज में उनकी निष्पक्ष भागीदारी के अतिरिक्त सभी व्यक्तियों की गरिमा, स्वायत्ता तथा महत्व पर बल देता है।
  • यधपी कानूनी समानता के माध्यम से अवसर की समानता भारत में प्राप्त की जा चुकी है, परंतु समाज में आर्थिक तथा सामाजिक असमानता का उन्मूलन किया होना अभी शेष है
  • राज्य के संसाधनों पर सवर्णों के अधिपति ने एक समान समाज की रचना की है जो कि समाज की समग्रता पर असर डालती है क्योंकि राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में विषमताए मौजूद है।
  •  इस स्थिति में, समाज का जो शक्तिशाली तथा सशक्त वर्ग है वह ज्यादातर कोशिश करता है कि यथास्थिति बनी रहे और मौजूदा भेदभाव पूर्ण वितरक ढांचे में किसी भी प्रकार के बदलाव का विरोध करेगा।
  •  दूसरी और, वंचित और हाशिए पर पड़े लोग, शायद यह चाहिए कि सामाजिक व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन आए और अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए राज्य द्वारा कुछ कठोर उपायों की आशा करेंगे
  •  अतः दोनों समूह अपनी- अपनी मांगे के सामने रखेंगे तथा समाज के अभिकरण ऊपर दबाव बनेंगे कि उनको मांगों को पूरी किया जाए।
  • अतः रक्षात्मक भेदभाव की धारणा को लाया गया जिसका उद्देश्य वंचित वर्गों की स्थिति में सुधार करना ,उनकी उन्नति के लिए अवसर देना और समाज की मुख्यधारा में लाना है।
  •  इसे उलट भेदभाव भी कहते हैं क्योंकि यह वंचित वर्गों के पक्ष में भेदभाव करती है ठीक उसी प्रकार जिस तरह से अतीत में उनके साथ भेदभाव हुआ है।
  • समतावादी और सकारात्मकता उदारवादी इस तरह के भेदभाव का समर्थन करते हैं क्योंकि यह न्याय पूर्ण और निष्पक्ष समाज के निर्माण में सहयोग देता है।
  •  स्वतंत्रता वादी तथा कानून के सकारात्मक पक्ष कार इस प्रकार के देश के प्रति अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं उनके अनुसार या श्रेष्ठता ,योग्यता की कोटी को प्रभावित करते हैं तथा स्वतंत्रता के मूल अधिकारों और व्यक्ति के संपत्ति के अधिकारों को भी प्रभावित करते हैं।
  • सकारात्मक कार्य का विचार आज भी सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के आधार को बनाए हुए हैं।
  • न्याय का अर्थ है लाभ और हानि का सही आवर्तन समानता तब ही सार्थक होती है जब उसने न्याय की प्रक्रिया विचार समाहित होता है जरूरतमंदों को सामाजिक न्याय दिलाने की प्रथा समानता के दावे को और मजबूत करती है।
  • रक्षात्मक भेदभाव भारत के संविधान के एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो कि समाज में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान की व्यवस्था करता है।
  •   भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक एक कार्यों का प्रावधान है, जो कि हमारे संविधान में दिए गए रक्षात्मक भेदभाव जैसा ही है।
  •  ये दोनों प्रधान किसी भी समानता के दावे अथवा किसी भी निष्पक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करते हैं।
  • लोगों को समान अवसरों की उपलब्ध कराने के प्रावधानों को हमेशा सहारा जाता है इससे निष्पक्षता का उल्लंघन नहीं होता है और ना ही न्याय के सिद्धांत का ।
  • इसका मूल विचार किसी व्यक्ति के पूर्वजों द्वारा जो अन्याय किया था उसके लिए यह एक क्षति पूर्ति का प्रावधान है ।हालांकि ,दर्शकों के लिए क्षति पूर्ति बिना किसी इसकी समाप्ति अधिक की बात किए या बहुत से लोगों को निष्पक्ष नहीं लगता है।
  •  रक्षात्मक भेदभाव से जुड़ी अन्य वह यह है कि यह राज्य के कार्य और उसके अधिकार क्षेत्र में वृद्धि करती है जो कि सामान्य रूप से लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों को बाधित करती है।

आलोचना

  • रक्षात्मक भेदभाव का विचार विश्व के विद्वानों के बीच वाद-विवाद और चर्चा का विषय बन गया है।
  •  इसका जो लोग विरोध करते हैं वे कहते हैं कि एक भेदभाव की जगह दूसरे भेदभाव ने ले ली है ।प्रक्रियात्मक समानता की वकालत करने वाले बाजार आधारित अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं क्या योग्यता के आधार पर संसाधनों का आवंटन होना चाहिए ।
  • योग्यता सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में देखी जानी चाहिए और प्रमुख हितों का दबदबा रोकने के लिए योग्यता की परिभाषा संस्कृतिक रूप से तट स्थल होनी चाहिए।
  •  आलोचना का दूसरा बिंदु है कि सकारात्मक कार्य स्थाई उपाय था परंतु स्थाई रूप धारण कर चुका है क्योंकि जो सत्ता में है उन्हें इससे राजनीतिक लाभ प्राप्त होते हैं ।
  • लक्षित समूह में सामान्यता फायदा उन्हें मिलना है जिनकी स्थिति पहले से ही बेहतर है। लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पाता है जो लोग वास्तव में हाशिए पर पड़े हैं और वास्तव में ही वंचित लोग होते हैं।
  •  रक्षात्मक भेदभाव के विरुद्ध बहुत सारे तर्क हो सकते हैं ,किंतु भारत जैसे देश जटिल समाज में वितरणात्मक न्याय को सहजता से अलग नहीं किया जा सकता।
  •  नैतिक जरूरतों की वजह से यह न्यायोचित है।

Post a Comment

Previous Post Next Post