BPSC-132 VIDHAYIKA

              विधायिका 

  • लेजिसलेचर  (विधायिक ) शब्द की उतपत्ति लॉटीन  भाषा के शब्द लेक्स से हुई  है।  जिसका सरथ है विशेष प्रकार का विधि नियम।  इस नियम का अर्थ है जो संस्था  इसे लागु करती है उसे विधायिका कहते है।  
  • विधायिका के दो रूप है एक है संसदीय और दूसरा है अध्यक्षीय। 
  • भारत में विधायिका दो स्तर पर कार्य करती है।  पहला संघीय स्तर पर और दूसरा राज्य स्तर पर।  
  • संघीय स्तर  पर इसे भारतीय संसद कहा।         

संघीय विधायिका 

  • संविधान के अनुच्छेद 79  के अंतर्गत भारतीय संसद का गठन किया गया है। 
  • भारतीय संसद के अंतर्गत राष्ट्रपति  और संसद के दो सदन सम्मिलित है।  
  • पहला सदन लोक सभा हैऔर दूसरा सदन राज्य सभा है। 

राष्ट्रपति 

  • भारत के राष्ट्रपति संसद से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।  राष्ट्रपति सदन को चलाने का निर्देश दे सकते है  एवं उन्हें लोक सभा को भांग करने की शक्ति भी प्राप्त है।  
  • राष्ट्रपति के अनुमति के बिना कोई भी विधायक कानून नहीं बन सकता चाहे वह  विधायक सदन के दोनों सदन के द्वारा पारित हो।  
  • यदि दोनों सदन की बैठक नहीं हो तब भी राष्ट्रपति अपनी शक्तियो के द्वारा कानूनों को लागु कर सकता है। 

लोक सभा   

  • लोक सभा  संसद का निम्न सदन है।  यह जनता का सदन भी कहा जाता है। 
  • जनता प्रत्यक्ष रूप से लोक सभा के सदस्यों का चुनाव करती है। 
  • लोक सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या अभी 545 है।  इसमें 530 सदस्य राज्यों से चुनकर  आते है जबकि २० सदस्य केंद्र प्रशासित प्रदेशो से चुनकर आते है। 
  • 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते है , सदस्य आंग्ल भारतीय समुदाय से आते है। 
  • इन्हे राष्ट्रपति द्वारा इसलिए मनोनीत किये जाते है ताकी इनका प्रतिनिधित्व भी लोक सभा में हो सके। 
  • सीटों का बटवारा क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिधान्तो पर आधारित होता है। 
  • लोक सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते है अर्थात जो भी वयस्क जिसकी आयु 18 वर्ष है वह  वोट देने के लिए योग्य है। जो भी प्रत्याशी सबसे अधिक वोट प्राप्त करता है वह  निर्वाचित होता है। 
  • लोक सभा  सदस्य की योग्यताए 
  1. वह  भारत का नागरिक हो 
  2. उसकी आयु 25 वर्ष या इससे अधिक हो. 
  3. वह  पागल तथा दिवालिया न हो। 
  4. भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अंतर्गत वह किसी लाभ के पद पर नहीं हो। 
  5. कोई भी व्यक्ति  संसद के दोनों सदनो का एक साथ सदस्य नहीं हो सकता। 
  6. कोई भी सदस्य यदि संसद के सत्र  से 60 दिन से अधिक अनुपस्थित रहता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है 


  1. राज्य सभा 
  • संविधान के अनुसार राज्य सभा एक उच्च सदन है।  यह राज्य का प्रतिनिधित्व  करती है।  
  • यह एक स्थायी सदन है इसे कभी भांग नहीं किया जा सकता है। 
  • राज्य सभा का कुल सदस्य 250 है जिसमे 12  सदस्य को राष्ट्रपति मनोनीत करता है।  
  • ये 12 सदस्य साहित्य काल , विज्ञानं एवं समाज सेवा में अनुभव प्राप्त व्यक्ति होते है।  बाकि के सदस्य राज्य की विधानसभा द्वारा चुनकर भेजे जाते है। 
  • इसका चुनाव जनसंखया  के आधार पर अप्रत्यक्ष  रूप से होता है। राज्य सभा के सदस्यों की संख्या एक  से लेकर अधिकतम 34 है। यह राज्य्वार जनसंख्या पर निर्भर है।  जैसे  नागालैंड में जहां  एक सदस्य है वही  उत्तरप्रदेश में 34  सदस्य है।  क्योकि  जनसंखया में काफी अंतर् है  
  • इसके एक तिहाई सदस्य दो वर्ष के बाद अवकाश ग्रहण करते यही।  खाली  पदों पर तुरंत चुनाव करवाए जाते यही।  
  • राज्य सभा के सदस्य का कर्यकाल 6 वर्ष का होता है।  
  •  लेकिन समय से पहले भी अपने पद से इस्तीफा दे सकता है या उसे किसी कारणवश  अयोग्य भी घोषित किया जा सकता है।  

राज्य सभा की विशेष शक्तियाँ 

  • लोक सभा के अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी मामलो के सुचना प्राप्त करने का राज्य सभा को अधिकार है
  • लेकिन राज्य सभा को मंत्रिपरिष्द के विरुद अविश्वास प्रस्ताव पर वोट देने का अधिकार नहीं है।  
  • धन विधेयक जैसे मामलों  राज्य सभा को अधिक शक्ति  नहीं  है। 
  • राज्य सभा को दो प्रमुख शक्तिया  प्राप्त है। 
  1.  अनु. 249 के अंतर्गत राज्य सभा कोई भी परतव पारित  क्र सकती है रज्य सभा राज्य सूचि के विषयो पर कानून बनाने का अधिकार रखती है। 
  2. अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना करना।  

पीठासीन अधिकारी 

दोनों सदनों के अपने पीठासीन अधिकारी।   लोकसभा और राज्यसभा  का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष  इसके पीठासीन अधिकार  होते है। 

लोक सभा अध्यक्ष 

  • लोक अध्यक्ष्य की स्थिति इंग्लैंड के कॉमन सभा के अध्यक्ष के तरह है।  
  • लोक सभा का अध्यक्ष एक बर अध्यक्ष चुने  बाद उसका   अपनी पार्टी से कोई संबंध नहीं होता है  वह  निष्पक्ष होकर  जिम्मेदारी निभाता है। 
  • लोक सभा का अध्यक्ष ही धन विधेयक को प्रमाणित करता है लोक सभा अध्यक्ष ही विभिन्न सदन में प्रश्न पूछने , प्र्ताव लेन की अनुमति प्रधान करता है।  और विभिन समितियों का गठन करता है।  
  • लोक सभा भांग  बादभी अध्यक्ष का पद बना रहता है।  
  • अध्यक्ष के कार्यो को कोई चुनौती नहीं दे सकता उसका वेतन और भत्ता  निधि से तय किया जाता है।  
  • यह अपने पद पर जब तक रहता है तब तक की नयी संसद का गठन नहीं हो जाता है।  
  • लोक सभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष लोक सभा की अध्यक्षता करता है। 

राज्य सभा का सभापति 

  • भारत का उप - राष्ट्रपति राज्य सभा का सभापति  होता  है। लेकिन उस समय जब उपराष्ट्रपति , राष्ट्रपति का कार्यभार संभालता है या राष्ट्रपति के कार्य करता है, वह राज्य सभा के सभापति का दायित्व नहीं निभा सकता। 
  • उप - राष्ट्र्पति का चुनाव  संसद के दोनों सदनों के सदस्य मिलकर करते है। यह गुप्त मतदान द्वारा सिंगल ट्रांस्फेयरेबल  मत प्रणाली  द्वारा अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर किया जाता है।  
  • उप-राष्ट्रपति संसद या रज्य विधान सभा के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है।  
  • इसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है.
  • वह   इस्तीफा दे कर  पद से मुक्त हो  फिर उन्हें राज्य सभा के सदस्य द्वारा बहुमत से एक परस्ताव  पास करके पद से हटाया जा सकता है जिसमे लक सभा की स्वीकृत  जरुरी है। 
  • राज्य सभा सभापति के कार्य एवं शकितीयो लोक सभा अध्यक्ष के समान होती है 

विधायी प्रक्रिया 

विधायिका का प्रमुख कार्य कानून बनाना है। संविधान के अनुसार विधायी प्रक्रिया के स्तर निम्न है।
1 . पहला स्तर 
  • पहला स्तर किसी विधेयक को प्रस्तुत करना है इसका आशय है उस बिल को पढ़ना ।  यह प्रमुख कानून को इंगीत करता हैजिसे दन में प्रस्तुत किया जाता है। 
  • दो प्रकार  होते है एक साधारण विधेयक दूसरा धन  विधयेक  . 
  • धन विधायक या वित् विधायक के अतिरिक्त कोई दूसरा विधेयक संसद  में प्रस्तुत  सकता है।  
  • इसे दोनों द्वारा पारित किया जाना जरुरी है तभी जाकर यह राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जा  सकता है। 
2 . दूसरा स्तर 
  • दूसरा स्तर पर इसके चार विकल्प होते है।  
  1. इसके प्रस्तुत होने के बाद इसे मान लिया। 
  2.  इसे सदन की चयन समिति के पास भेजा है सकता है। 
  3. इसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेजा  जा सकता है 
  4. इसे जनता की राय  के लिए  जनता के बिच बाँटा  जा सकता है।   
  • इस विधयक के खिलाफ जन आंदोलन हो या भरी विवाद हो। 
3 . तीसरा स्तर 
  • तीसरे स्तर पर विधयक के प्रभारी विधेयक  को पारित करने के  लिए आगे बढ़ाता  है इस स्तर पर विधेयक पर संक्षिप्त चर्चा की जाती है तथा इसमें कुछ औपचारिक संसोधन स्वीकार किया जाता है।
  •  जब यह विधेयक दूसरे सदन के पास जाता है तो  से वही   प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जो सदन में  अपनाई  गई थी।  
  • इस सदन के पास तीन विक्लप  होते है :-
  1. इस विधायक को ज्यों  के त्यों पारित कर देते है 
  2. इस विधायक को पूरी  तरह से ख़ारिज कर देना या फिर इसमें संशोधन करने वापस मूल सदन भेज देना। 
  3. इस विधेयक  के ऊपर कोई कार्यवाही न करना। 
  • यदि 6 महीने  के अंदर इस पर कोई निर्यण  नहीं किया गया तो विधायक निरस्त माना जायेगा. 
  • मूल सदन जिसमे यह विधेयक  लाया गया था वह  इस विद्येयक को कुछ संसोधन के साथ स्वीकार कर लेते है  
  • यदि यह सदन संसोधनो को स्वीकार करता है  तो वह  दूसरे सदन को इसकी जानकारी देते है  यदि यह सदन संसोधन को स्वीकार नहीं करता है  तो भी इसकी जानकारी दी   है  
  • यदी दोनों सदन किसी सहमति पर नहीं पहुंचते है  तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की सयुक्त बैठक बुलाता है  
  • अंत में जब विधेक दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है  तो इसे लोकसभा अध्यक्ष के हस्ताक्षर के साथ राष्ट्रपति की अनुमति के लिए प्रतुत किया। 

 धन विधेयक 

  • वित्त्त विधेयक वह है जिसका संबंध  राजस्व एवं व्यय से है  लेकिन  विधेयक वीतत  या विधेयक नहीं है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 110 में यह कहा गया है की कोई भी विधेयक तब  विधेयक  जा सकता जब तक  की इसे लोक सभा अधक्ष्य  प्रमाणित न  दे  . 
  • धन विधेयक राज्य  सभा में प्रस्तुत  जा सकता. एक बार धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित कर  दिया है तो  फिर इसे राज्य सभा के पास भेजा जाता है। 
  • राज्य सभा को 14 दिनो  के अंदर ही धन विधायक को वापस  लोक सभा  पड़ता। है 
  • राज्य सभा इसे  14 दिनों में वापस न भेजें  तो यह विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है। 
संसदीय विशेषाधिकार 
संसदीय विशेष लाभ या विशेषाधिकारी कुछ ऐसे अधिकार है जो संसद के सदस्यों को प्राप्त है।  
  • संसद के सदस्यों को दो प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त है।  प्रगणित एवं अप्रगणित अधिकार।  
  • प्रगणित  अधिकार इस प्रकार है :-
  1. संसद के दोनों सदनों में सदस्यों को बोलने की आजादी। 
  2. संसद में या उसकी समिति में किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या किये गए किसी मत के सबंध में संसद सदस्य के विरुद्ध किसी अदालत में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। 
  3. किसी सदन के प्राधिकार द्वारा  अधीन रिपोर्ट , पत्र,मतो या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में भी इसी प्रकार कोई उत्तरदायी नहीं होगा. 
  4. किसी भी दीवानी मामलो में गिरफ़्तार होने से छूट मिलती है।  यदि सत्र  चल रहा है तो उसके 40 दिन पहले एवं 40 दिन बाद तक गिरफ़्तारी पर रोक होती है 
  5. किसी भी कोर्ट में गवाह के रूप में छूट मिलती है। 
  • अप्रगणित अधिकार वह है जिसमे  कोई भी सदस्य यदि  संसद की अवमानना करता है तो संसद को यह शक्ति है की उसके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करे। 
कार्यपालिका पर नियंत्रण के संसदीय उपाय 
  • संसद का एक मह्त्वपूर्ण  कार्य कार्यपालिका पर नियंत्रण है। 
  • पीठासिन  अधिकारी प्रश्नकाल का निर्देशक देते है।  संसंद की कार्यवाही के कुछ महत्वपूर्ण नियम है 
  • प्रश्न पूछना किसी भी सदस्य का संसदीय अधिकार होता है चाहे वह  किसी भी पार्टी का हो।  
  • प्रश्न पूछने के पीछे किसी भी सदस्य का उदेश्य प्रशासन की कमियों को बताना है तथा सरकार को सही निति अपनाने को मजबूर करना।  
  • यदि निति पहले से ही बानी हो तो उसमे उचित संशोधन करना. 
  • यदि किसी सदस्य अपने प्रश्नो के उत्तर से संतुष्ट नहीं होता है तो वह पीठासीन अधिकारी को जनता के हित अपना प्रश्न मानकर उस पर चर्चा की मांग के सकता है।  
  • पीठासीन अशिकारी बैठक  के आधे घंटे पहले चचा की अनुमति दे सकता है। 
  • पीठासीन अधिकारी की अनुमति से सदस्य मंत्री से किसी मह्त्वपूर्ण  मुददे  पर जवाब मांग सकते है।  मंत्री या तो उस मुददे  पर अपना संक्षिप्त व्यक्तव्य दे सकते है या फिर इसके लिए कुछ समय मांग सकते है।  
संसदीय समितियाँ  
  • संसदीय शासन प्रणाली में संसद को कार्यपालिका या मंत्रियों के उत्तरदायित्व तथा प्रशासनिक जवाबदेही को सुनिश्चित करना होता है। 
  • कार्यपालिका की जवाबदेही का सुनिशिचत करने के उनके माध्यम है जैसे संसदीय समितियॉ।  संसद के द्वारा कई समितियों  गठन किया गया है।  
  • उन महत्वपूर्ण समितियों में दो सबसे खास समिति है जो सरकार के काम- काज की समीक्षा करती है।  ये समिति वित्तीय क्षेत्र से संबंधित है 
  1. लेखा समिति 
  2. आकलन समिति 
राज्य विधायिका 
  • राज्य विधायिका , राजयपाल और विधान सभा से मिलकर बनी  है।  कई राज्यों में राज्यों की विधयिका भारतीय संसद के अनुरूप है।  हालांकि  सभी राज्य में दोनों सदन नहीं है। 
  • विधान सभा और विधान परिषद जिन राज्यों में दोनों सदन होते है उन्हें दुइसदनात्म्क  कहते है।   जिन राज्यों में केवल एक सदन , विधान  सभा है उन्हें सदनात्मक कहते है।  
  • यह राज्यों की अपनी इच्छा है की वो कोनसा सदन चाहते है।  
  • इन्हे 29 राज्यों में 9 राज्यों में ही दो सदन है।  विधान सभा और विधान परिषद।  
राज्य विधान सभा 
  •  राज्य विधान सभा  के सदस्यों का चुनाव भी प्रतक्ष्य रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है 
  • विधान सभा का आधार 60 से लेकर 500 सदस्य तक होता है। यह जनसख्या पर होता है। 
  • विधान सभा का कार्यकाल भी पांच वर्ष का होता है। 
विधान परिषद 
  • विधान परिषद  के सदस्यों की संख्या कम से कम 40 होनी चहिये लेकिन यह विधान सभा सदस्यों से एक तिहाई से अधिक नहीं होनी चाहिए। 
  • विधान परिषद के सदस्य कुछ चुने जाते है जबकि कुछ मनोनीत किये जाते है. इसमें से कुल सदस्यों का छठा भाग राजयपाल द्वारा मनोनीत किये जाते है। जबकि बाकि सदस्य विधान सभा की तुलना में बहुत कमजोर है 
  • विधायी प्रक्रिया ,राज्य विधान सभा  एवं संसद दोनों में समान है। 




































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