कार्यपालिका
भारत का राष्ट्रपति
भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में (अनुच्छेद 53 ) निहित है। यह राष्ट्र का प्रथम व्यक्ति माना जाता है।
योग्यताएं
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसने 35 वर्ष की आयु पूर्ण की हो।
- वह लोकसभा सदस्य के रूप में चुनाव के योग्य हो।
- वह भारत सरकार या क्सिसि भी राज्य सरकार या इनमे से किसी भी सरकार द्वारा नियन्त्रित किसी अन्य स्थानीय सत्ता के अधीन किसी भी लाभ के पद पर कार्यरत न हो।
- राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए निर्वाचक मण्डल के 50 सदस्य प्रस्तावक के रूप में तथा 50 सदस्य अनुमोदक के रूप में आवश्यक माने जाते है.
राष्ट्रपति का चुनाव
- राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष तरिके से संसद के दोनों सदनों के चुने हुए सदस्य एवं राज्य विधान सभाओ के चुने हुए सदस्यो द्वारा किया जाता है।
- यह चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली एवं सिंगल ट्रांस्फेयरेब्ल मत द्वारा होता है।
- राज्यों में एक रूपता लाने लिए प्रतेयक सदस्य का वोट गिना जाता है।
- इस वोट का मूल्य वह की जनसंख्या के आधार पर टिकिया जाता है। वोट का मूल्य राज्य की जनसंख्या को वह का विधान सभा की कुल संख्या से विभाजित किया जाता है तब निर्धारित होता है।
- राज्य विधान सभा के हर सदस्य के वोट का मूल्य प्रत्येक राज्य में अलग -अलग होगा। संसद के प्रतीक सदस्य के वोट का मुलनिकलने के लिए साडी विधान सभाऔ के निर्वाचित सदस्यों के कुल मतों के मूल को संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित किया जाता है।
- सभी मतदाता प्रथम और दुतिय वरीयता के आधार पर मत देता है। जो प्रत्याशी पूर्ण बहुमत प्राप्त क्र लेता है वही विजयी घोषित किया जाता है।
राज्य का कार्यकाल एवं पद से हटाने की प्रक्रिया
- राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- राष्ट्रपति दूसरे कार्यकाल के लिए भी चुनाव लड़ सकता है।
- राष्ट्रपति निम्न दशाओ में पाँच वर्ष से पहले भी पद त्याग सकता है।
- उप - राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने त्याग -पत्र द्वारा
- महाभियोग द्वारा हटाए जाने पर (अनु 56 - 61 ).महाभियोग के लिए केवल आधार , जो अनु. 61 (1 )में उल्लिखत है , वह है -संविधान का अतिक्रमण।
राष्ट्रपति की शक्तियाँ
- अनुच्छेद 53 के अंतर्गत राष्ट्रपति को कार्यपालिक शक्तियाँ प्रदान की गयी। है
- राष्ट्पति की शक्तियों को दो भागो में विभाजित किया गया है
- साधारण
- आपातकालीन
- साधारण शक्तियों को भी चार भागो में बाटा गया है कार्यपालिका ,विधायिका , वित्तीय एवं न्यायिक।
- करयपलिका शक्तिया राष्ट्रपति में निहित है।
- कार्यपालिका संबंधित शक्तियाँ
- महत्वपूर्ण अधिकारीयो की नियुक्ति व पदच्युति , शासन संचालन संबन्धी शक्ति ,सैनिक क्षेत्र में शक्ति ,इत्यादि।
- विधायी शक्तियाँ
- विधायी क्षेत्रों प्रशासन ,सदस्यों का मनोनयन , अध्यादेशजारी करने (अनुच्छेद 123 ) की शक्ति , आदि।
- भारत की संप्रभुता , अखंडता ,एकता और स्वतंत्रा की सुरक्षा के लिया संविधान ने राष्ट्रपति को कुछ आपातकालीन शक्तियों प्रदान की है।
- राष्ट्रपति तीन प्रकार की आपातकाल की घोषणा क्र सकते है।
- राष्ट्रपति आपातकाल , विषेशकर ,युध्द की स्थिति में , बहरी आक्रमण या सैनिक विद्रोह होने पर (अनु. 352 )
- राज्य में संवैधनिक संकट उत्तपन होने की स्थिति में(अनु. 356 )
- वित्त्तीय आपतकाल। (अनु. 360 )
भारत में आपतकाल की घोसणा
- 1962 पहले आपातकालीन स्थिति की घोसण अक्टूबर ,1962 में भारत -चीन युद्ध के समय हुयी थी
- दुवितीय आपतकाल की घोसणा दिसंबर ,1971 में भारत -पाकिस्तान युद्ध के समय हुई थी।
- तीसरे आपतकाल की घोसणा जून , 1975 में हुई थी।
प्रधानमंत्री
- संविधान के अंतर्गत वास्तविक शक्तिया प्रधानमंत्री के पास होती है वे सभी कार्यपालिका का अधिकार रखते है।
- प्रधानमंत्री मत्रिपरिषद के मुखिया होते है। राष्ट्रपति मत्रिपरिषद की सलाह पर ही कार्य करते है।
- ब्रिटेन की तरह , भारत में भी प्रधानमंत्री निम्न सदन का नेता होता है। वह सामान्यतया , निचले सदन यानि लोकसभा का सदस्य होता है।
- प्रधानमंत्री की नयुक्ति राष्ट्रपति करता है।
- राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री नियुक्ति करने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं होते है। वे केवल लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है।
- राष्ट्पति प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियो की भी नियुक्ति करता है।
मंत्री परिषद और कैबिनेट
- `कैबिनेट को साधारण भाषा में मंत्रिपरिष्द जाता है लेकिन ये दोनों अलग है मंत्रिपरिष्द में कई प्रकार के मंत्री शामिल होते है।
- 15 अगस्त 1947 को कार्यकारी परिसद परिवर्तित करके मंत्री परिसद में बदल दिया गया जो की संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।
- कैबिनेट शब्द का प्रयोग मंत्री परिषद के विकल्प के तौर पर किया गया। इस स्तर पर कैबिनेट के सभी मंत्री एक समान होते है प्रधानमंत्री को छोड़ कर।
- 1950 में गोपालस्वामी आयंगर गठित समिति की सिफारिशो के पश्चयात त्रि -स्तरीय मंत्रिपरिष्द का गठन किया गया।
- इसमें सबसे ऊपर कैबिनेट रैंक के मंत्री होता ही मध्य स्तर पर राज्य मंत्री तथा निचले स्तर पर उप - मंत्री होते है
- कैबिनेट के तीन महत्वपूर्ण कार्य होते है
- सरकार की नीतियों संसद में प्रस्तुत करती है।
- सरकार की नीतियों को लागु करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाती है
- यह सभी विभागों एवं मन्त्रालो के बिच समन्वय स्थापित करती है।
- कैबिनेट सामान्यत: नियमित रूप से मिलती रहती है क्योकि यह निर्णय -निर्माण करने वाली संस्था है।
- क्रय को सुगमता से करने के लिए कैबिनेट की अन्य समिति भी होती है।
- ये स्थायी समितिया एवं तदर्थ समितिया होती है। इसको चार स्थायी समिति एवं कुछ तदर्थ समिति होती है।
- ये इस प्रकार है :-
- रक्षा समिति
- आर्थिक समिति
- प्रशासनिक समिति
- संसदीय एवं क़ानूनी मामलो की समिति।
- आस्थियि या तदर्थ समितियाँ समय समय पर गठित की जाती है।
- दूसरी रैंक के मंत्री राज्य मंत्री होते है। ये स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री होते है तथा उहे भी कैबिनेट मंत्रियो की तरह कार्य करने का अधिकार प्राप्त है।
- निचले स्तर पर उप-मंत्री होते है जिन्हे कुछ खास प्रशासनिक जिम्मेदारियों दी जाती है। ये मंत्री से भिन्न है।
- इनकी मुख्य जिम्मेदारियाँ इस प्रकार है :-
- संसद में पूछे गए प्रश्नो का जवाब देना तथा संबधित मंत्री की सहायता करना।
- आम जनता को सरकार की नीतियों के बारे में बताना , संसद के सदस्यों के साथ अच्छा व्यवहार रखना ,राजनितिक दलों एवं प्रेस के साथ अच्छा संबंध बनाना।
- किसी खास समस्या की जांच पड़ताल करना हो उन्हें किसी संबंधित मंत्री द्वारा की गयी हो।
- इस वजह से वॉलटर बेगहोट कैबिनेट विधायिका को सबसे बड़ी समिति कहते।
सामूहिक उत्तरदियित्व
- मंत्रिपरिष्द सामूहिक उत्तरदायिक के सिंद्धान्त पर कार्य करती है। इस सिद्धांत के अंतर्गत सभी मंत्री अपने कार्य के प्रति एवं सरकार के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते है।
- यदि मंत्रिपरिषद का गठन विभिन्न राजनितिक दलों के गठबंधन से किया गया हो तो यह न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर आधारित होता है ताकि सभी मंत्रायलो में सामंजस्य बना रहे तथा सभी राजनितिक दलों को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ खड़ा रहना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते तो मंत्रिपरिष्द आस्तित्व में नहीं रह सकती
- मंत्रिपरिष्द के भीतर एकता न केवल इसके लिए अनिवार्य है बल्कि इसको कुशलता और कार्यक्षमता के लिए भी जरूरी है।
कैबिनेट और संसद
- संसदीय सरकार का मुलभुत तत्व प्रधानमंत्री और इसके कैबिनेट का संसद के प्रति उत्तरदायी होना है।
- प्रधानमत्रीं एवं इसके मंत्रिपरिष्द का असितत्व संसद के समर्थन पर निर्भर है।
- संसद कार्यपालिका पर नियत्रण रखती है। लेकिन यथार्थ में प्रधानमंत्री ही अपने बहुमत जे बल पर संसद की पकार्यपालिका पर नियंत्रण रखते है।
प्रधानमंत्री की शक्तियाँ एवं प्रभाव का श्रोत
- प्रधानमंत्री मंत्रिपरिष्द का मुखिया होता है तथा लोक -सभा का नेता होता है।
- प्रधानमंत्री का यह विवेकाधिकार है की वे अपने मंत्रिमंडल का गठन खुद करते है।
- वे कैबिनेट की बैठकों की अध्य्क्षता करते है तथा उनेह संसद के सदस्यों को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
- प्रधानमंत्री संसद में बहुमत वाली पार्टी के नेता होते है इसलिए उन्हें संसे ज्यादा ताकवर समझा जाता है।
- लोकसभा के नेता होने होने के कारण प्रधानमंत्री के पास संसदीय कार्यपारणाली के ऊपर नियंत्रण होता है वे राष्ट्रपति को संसद के सत्र की सुचना देते है
- लोकसभा अध्यक्ष भी लोक -सभा की कर्यवाही के लिए प्रधानमंत्री से सलाह करते है जब संसद का स्तर नहीं चल रहा हो तब प्रधानमंत्री के पास राष्ट्रपति को आध्यादेश लेन की शकितयों होती है।
- सबसे अधिक शक्ति प्रधानमंत्री की होती है लोक सभा को भंग करने की।
- राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह मानना जरूरी है। इसी शक्ति से ही प्रधानमंत्री विपक्ष पर भी नियत्रण रखता है।
- सरकार की सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियां प्रधानमंत्री ही राष्ट्रपति के नाम पर करते है।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री
- संविधान के अनु. 78 के अंतर्गत प्रधानमंत्री के कर्त्तव्वयो का विवरण है
- प्रधानमंत्री राष्ट्पति को मंत्रिपरिष्द के पैसलो की जानकारी देता है
- केंद्र के सभी कार्यो एवं प्रस्तावों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए के लिए सूचित करते है।
- यदि राष्ट्रपति चाहे तो मंत्रिपरिष्द के निर्णयों की जानकारी ले सकते है
- राष्ट्रपति अपने अधिकारों का प्रयोग मत्रिपरिस्ड की सलाह पर करता है। और प्रधानमंत्री जो की मंत्रिपरिष्द का मुखिया होता है वही वास्तविक कार्यपालिका भीहै। लेकिन कई ऐसे अवसर भी आते है जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बिच कई नीतियो पर मतभेद नजर आते है।
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