BPSC-132 RAJY KE NITI - NIRDSEHK SIDHANAT AUR MUL KRTVY

राज्य के निति निर्देशक  सिद्धांत और मूल कर्त्तव्य  

प्रस्तावना 

  • निति -निर्देशक  सिद्धांतो  को अनुच्छेद 36 -51  में भाग 4 में रखा गया है. 
  • इनका मुख्य उद्देश्य  सामाजिक एवं आर्थिक विकास तथा सभी वर्गो की लिए  न्याय प्राप्त करना है ताकि एक समानाधिकारवादी समाज की स्थापना की जा सके।  
  • ग्रेनविल औस्टिन के अनुसार निति - निर्देशका  का लक्ष्य सामाजिक एवं आर्थिक विकास के उद्देश्य पूरा करना है।  
  • संविधान में नागरिको के लिए कुछ कर्त्तव्यों  का  भी प्रावधान दिया गया है. 
  • ये कर्त्तव्य संविधान के भाग 4 ए  में रखा गया है तथा इन्हे 1976 में 42 वे  संविधान के बाद जोड़ा गया तथा 2002 में 86 वे संशोधन के माध्यम  से विस्तृत किया गया।  

निति निर्देशक सिद्धन्तो एवं मूल कर्त्वयों की उत्पत्ति 

  • निति -निर्देशक सिंद्धान्तो की उत्त्पति कराची प्रस्ताव के बाद हुई थी जिसमे समाजिक एवं राष्ट्रवादी विचारो को शामिल किया गया था।  
  • सप्रू समिति ने यह सुझाव दिया की अधिकारों को दो भागों  में विभाजित किया जाना चाहिए।  न्यायोचित एवं गैर -न्यायोचित। 
  • ग्रेनविल औस्टिन के अनुसार इन पर संविधान सभा के ज़्यादातर  सदस्य सहमत थे।  
  • इन प्रवधानों में हिंदू दृटिकोण एवं गांधीवादी विचारो को भी शामिल किया गया था। 

निति - निर्देशक सिद्धांतो  की सूचि इस प्रकार है:-




  • दुर्गा दास बसु ने निति निर्देशक सिद्धांतो  को तीन समूहों में वर्गीकृत  किया है। 
  1. ऐसे कुछ आदर्श जिसे संविधान सभा ने राज्य द्वारा प्राप्त करने को अपेक्षित थे  विशेषतौर परपर आर्थिक। 
  2. विधायिका एवं कार्यपालिक को कुछ निर्देश देना ताकि वे अपनी शक्तियों  का  इस्तेमाल क्र सके। 
  3. कुछ अधिकार जिसे न्यायायल भी जबरजस्ती  से लागु नहीं क्र सकता है.
  • भाग 4 में दिए गए अनुच्छेदो  के आलावा कुछ अन्य अनु. भी है इस प्रकार :-
  •  अनु. 335,350 ए  तथा 351 राज्य को लोगो के लिए नीतियों बनाने का अधिकार देता था। 
  • अनु. 335 के अधीन लोक सेवाओं के लिए नियुक्तियों करते समय अनुसूचित जातीय एवं जन जातीयो की दावों को धयान में रखा जायेगा , पर साथ ही प्रशासन की दक्षता को भी बनाये रखा जायेगा।  
  • अनु. 350 ए  यह आदेश देता है की हर राज्य का स्थानीय प्राधिकारी भाषायी अल्पसंखयक  वर्गो की बच्चो की शिक्षा की प्रथिमिक स्तर पर मातृभाषा  शिक्षा की पर्याप्त सुविधाओं की व्वयवस्था करने का प्रयास करे।
  • अनु. 351 के अधीन संघ का यह कर्तव्य होगा की वह  हिंदी भाषा के प्रसार करे , उसका विकास करे ताकी  वह  भारत की मिली-जुली संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।  

मूल कर्तव्यों की उत्तपति 

  • 1970 में मूल कर्तव्यों का प्रावधान संविधान में जोड़ा गया।  
  • 1976 में 42 वे संशोधन के माध्यम से संविधान में मूल कर्तव्यों को शामिल किया गया। 
  •  42 वे संशोधन स्वर्ण सिंह समिति की रिपोर्ट की सिपरिशो के बाद किया गया।
  •  जो की जनवरी 1977  से लागु किया गया। 
  • 2002 में 86 वे संविधान के माध्यम से पुनः विस्तृत किया गया मूल कर्तव्यों के अनु. 51 ए  में लिखित प्रावधान से मेल खाते है। 
  • इसमें कहा गया है की प्र्त्येक  नागरिक का यह कर्तव्य है की वह  अपना विकास स्वंय कर सके। 

कुल 11 मूल कर्त्तव्य है नागरिको के जिनका विवरण इस प्रकार है :-


निति - निर्देशक सिद्धन्तों  एवं मूल कर्तव्यों में संशोधन 

  • निति -निर्देशक  सिद्धांतो  में कुछ नये  खंड जोड़े गये संशोधन के माध्यम से। 
  • 42 वे संशोधन ने चार नए विषयो को शामिल किया गया है। जिसमे अनु., 39 ,अनु. 39 ए ,अनु. 43 ए  एवं 48 ए  जोड़ा गया है। 
  1. 39 के अंतर्गत सभी बच्चो के स्वास्थय एवं विकास कीबात कही गई है।  
  2. 39 ए  में गरीबो के लिये  समान न्याय एवं मुफ़्त कानून सहायता का प्रावधान है। 
  3. 43 ए  के अंतर्गत मजदूरों को औद्योगिक  प्रबंधन में भागीदारी का प्रावधान है। 
  4. 48 ए  में पर्यावरण , जंगल एवं जंगली जीवन के संरक्षण का प्रावधान है। 
  • 44 वे संशोधन के माधयम से अनुच्छेद 38  को जोड़ा हाय जिसमे राज्य को आय ,पद , सुविधाओं एवं अवसरों में असमानता को  कम करने का निर्देश दिया गया है। 
  • 86 वे संशोधन के तहत निर्देशक सिधान्तो एवं कर्तव्यों में बदलाव किया गया।  
  • निर्देशक सिधान्तो में अनु. 45 को परावर्तित करके यह प्रावधान किया गया की राज्य सभी बच्चो जिनकी आयु 6 वर्ष की हो उनका ध्यान रखे तथा उनकी शिक्षा  की भी व्यवस्था को तथा अनु. 21 ए  के अंतगर्त शिक्षा  अधिकार का भी दर्ज दिया गया है। 
  • मूल कर्तव्यों के अंतगर्त सभी माता - पिता  एवं अभिभावक को यह निर्देश दिया गया है वे अपने बच्चो जिनकी आयु 6 -14 वर्ष के बिच है उन्हें शिक्षा प्रदान करे। 
  • 2011  में 97 वे संशोधन  द्वारा एक अनु. 43 बी जोड़ा गया।  इसमें राज्य के स्वायत्त संस्थाओ , को औपरेटिव सोसाइटी के प्रबंधन तथा उनके ऊपर नियंत्रण का प्रावधान किया गया है। 

निति निर्देशक  सिद्धन्तों एवं मूल कर्तव्यों का क्रियान्वयन 

  • स्वतंत्रा  प्राप्ति के बाद विभिन्न सरकारों ने निति -निर्देशकों सिद्धांतो  के  अनुसार  कई योजनाऐ  , कार्यक्रम एवं कानून बनाने एवं विभिन्न प्रकार के योजनाओ का गठन किया।  
  • योजना आयोग जिसको समाप्त करके निति आयोग बनाया गया , उसने पंचवर्षीय योज्मा को शुरू किया जिनका प्रमुख लक्ष्य था  :-
  • समाजिक एवं आर्थिक समानता एवं न्याय प्राप्त करना । 
  • भूमि सुधार कर्यक्रम के माधयम से राज्यों में जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया ,कष्टकारी व्यवस्था में सुधर किया गया , जिससे समाज में असमानताओं को दूर किया गे।  
  • सरकार ने कंज़ोर वर्गो के लिए  कई कदम उठाय। 
  • वर्मा समिति ने मूल कर्तव्यों को प्रभावशाली  बनाने के लिए कई प्रकार की सिफारिशें की थाई। 
  • इस समिति की अश्यक्षता न्यायाधीश जे. एस।  वर्मा  ने की थी जिसे हम नागरिको के मूल कर्तव्ये (1999) समिति केनाम से जानते है।  
  • यह समिति सर्वोच्च न्यायायल के नोटिस दे जवाब में बनाई गई थी , जिसमे यह कहा गया था की सरकार नागरिको को मूल कर्तव्ये दिखने के लिए क्या योजना बना रही  है। 

वर्मा समिति ने यह  निमन  सिफारिशें  की थी :-

  • मूल कर्तव्य सार्वजानिक जीवन में नागरिको के मनको में वृद्दि  करेगे , इसलिए सभी व्यक्तिओ को इन कर्तव्यों का पालन करना चाहिए तथा इन्हे आगे बढ़ाना  चाहिए। 
  • लोक पदों पर आसीन व्यकितयों  को भाई - भतिजवाद  एवं अपने मतलब से दूर रहना चाहिए।,उनकी प्रथमिकता लोक हिट होना चाहिए न की व्यक्तिगत हित। 
  • सर्वजनिक कार्यकलापों में कार्य करने के लिए ईमानदारी एवं निष्ठा  सबसे प्रमुख सिद्धांत होगा। 
  • सार्वजानिक जगह पर कार्य  वाले सभी व्यक्ति जनता के प्रति उत्तरदायी होने चाहिए। 
  • उन्हें जितमा संभव हो सके सभी निर्यण तथा कार्य पूरी तरह से सार्वजानिक करने चाहिए। 
  • लोक सेवको को हमेशा  ईमानदारी कायम रखनी  चाहिए। 
  • नेतृत्व सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण होता है इसलिए कायम रखनी चाहिए। 
  • मूल कर्तव्यों को मजबूत बनाने के लिए , वर्मा समिति ने कुछ प्रचलित कानून की पहचान  की थी ताकि इन कर्तव्यों को सही ढंग  से लागु किये जा सके।  

ये इस प्रकार है :-

  1. जनप्रतिनिधि कानून (1951 )
  2. गैर - कानून गतिविधि रोधक कानून (1967 )
  3. नागरिक अधिकार संरक्षण कानून(1955 )
  4. वन्य जीव  संरक्षण कानून (1972 )
  5. राष्ट्रीय सम्मान की अवमानना पर रोक संबंधी अधिनियम (1977 )
  6. वन संरक्षण अधिनियम (1980 )
  • न्यायालय ने केंद्र सरकार को 2003 में यह निर्देश दिया की वो वर्मा समिति एवं संविधान समीक्षा आयोग (2000 )की सिफारिशों को लागु करे। 

निति निर्देशक सिंद्धान्तो एवं मूल कर्तव्यों की सीमाए  

  • निति निर्देशक तत्वों की प्रमुख सिमा यह है की राज्य इन्हे क़ानूनी रूप से लागु करने को बाध्य नहीं है। इसके बावजूद की  राज्य का यह नैतिक दायित्व है की िनेह लागु करे और इन्हे संविधान में भी जगह  दी  गयी है। 
  • निर्देशिक सिद्धांत न्ययोचीत नहीं है इसलिए समाज के ताकतवर वर्ग के लॉज राजनितिक एवं आर्थिक दवाब बनाते है। ांविधान सभा के कुछ सदस्यों में इनकी इसी कमी को उजागर भी किया था। 
  • के. टी।  साह  ने यह टिप्णणी  की कि  निर्देशक सिद्धांतो  की सीमाऐ  इनको कमजोर करेगी।  जबकि टी. टी. कृष्णमचारी ने इन्हे जनभावनाओं के खिलाफ बताया था। 
  • संथानम ने कहा की इनको निर्देश देना केंद्र एवं राज्यों के बिच विवाद को बढ़ावा दे सकता है। 
  • भारत में मूल कर्तव्यों का स्वरूप अन्य देशो से भिन्न है। 
  • क्योकि  सुवियत संघ , युगोस्लाविया , चीन , पोलैंड , नीदरलैंड , जापान , वियतनाम , एवं अलबेनिया  में मूल कर्तव्य कानूनी  रूप से लाजमी है एवं इन्हे लागु करवाना राज्य का दायित्व है। 
  • मूल कर्तव्यों  नैतिक ,  आर्थिक महत्व भी है क्योकी  इनको पूरा करने पर ही  आय   आधिकारो पर दावा   सकते है। 
  • मूल कर्तव्य समाज के सम्पूर्ण विकास के लिए महत्वपूर्ण है।  

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