भारत में दलीय एवं दलयी व्यवस्था
प्रस्तावना
- किसी भी लोकतंत्र में दलीय व्यवस्था बातचीत एवं विभिन्न दलों के बिच पर्तिस्पर्धा का तरीका है
- भारत में इसी व्यवस्था ने भू -दलीय प्रणाली को जगह दी है।
- कोठरी ने इस व्यवस्था को "कांग्रेस व्यवस्स्था " खा था , जबकि जोन्स ने "कांग्रेस प्रभुत्व व्यवस्था "माना था।
- 2014 से भारत में भारतीय जनता पार्टी एक सबसे अधिक वर्चस्व वाले दल वे रूप में उभरी। है
राजनितिक दलों का वर्गीकरण
- भारत में , राजनितिक दलों को दो तरह से वर्गीकृत गया है , शोधकर्ताओं शैक्षिक द्वारा तथा दूसरा भारत को चुनाव आयोग द्वारा। ।
- पहला , राजनितिक दलों को उनके समर्थन ,नीतियों एवं विचारधारा के आधार पर वर्गीकृत करता है जबकि चुनाव आयोग इन दलों को विधान सभा या लोकसभा के चुनावो में प्राप्त मतो के प्रतिशत के आधार पर वर्गीकृत करता है।
- चुनाव आयोग राजनितिक दलों को तीन भागो में वर्गीकृत करता है
- राष्ट्रीय दल
- राज्य स्तरीय दल
- क्षेत्रीय पंजीकृत दल
- राट्रीय राजनितिक दल तभी मान्य होता है जब उसे चार राज्यों में पहचान मिली हो।
- राज्य दल का क्षेत्रीय दल वह है जिसमे किसी राज्य में विगत पांच वर्षो में राज्य की राजनितिक सक्रिय रही हो जिसने चार प्रतिशत सिटे आम चुनाव में तथा तीन प्रतिशत सीटे राज्य चुनाव में जीती हो।
- पंचीकृत पार्टी वह है जो की केवल चुनाव आयोग में ही पंजीकृति हो। इसे न राज्य दल ना ही राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता नहीं मिली है।
भारतीय राज्यों में दलीय व्यवस्था
- भारत में राज्य दलीय व्यवस्था का विकास रास्ट्रीय दलीय व्यवस्था के साथ -साथ ही हुआ है।
- राष्ट्रीय दलों एवं राज्य स्तरीय दलों के बिच गहरा संबंध राज्य स्त्रिय दलों का विकास बड़ी तेजी से हुआ है।
कांग्रेस वर्चस्व का युग
- 1967 से पूर्व का काल भारत में कॉग्रेस से प्रभुत्व का वर्चस्व का काल माना जाता है। इसे हमे कांग्रेस व्यवस्था ' या कांग्रेस प्रभुत्व व्यवस्था'' भी कह सकते है।
- 1967 तक या चौथे आम चुनाव तक ज़्यदातर राज्यों में तथा राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का ही वर्चस्व था।
- कांग्रेस की लगभग सभी राज्यों में सरकार थी सिवाय जम्मू कश्मीर को छोड़कर जंहा नेशनल कांग्रेस का दबदबा था।
- इसके अलवा केरल में 1957 के आम चुनाव के बाद राज्य में सी. पी. आई. की सरकार बनी थी , जिसे बाद में गैर क़ानूनी तरिके से 1959 में केंद्र सरकार ने भाग कर दिया था
- 1952 ,1957 ,और 1962 के चुनावो में कांग्रेस पार्टी एकमात्र पार्टी थी जिसे लोकसभा एवं राज्यों की विधान सभा में बहुमत मिला था।
- चुनावी आकड़े यह बताते है कांग्रेस का प्रदर्शन लोक सभा चुनावो की तुलना में राज्यों में कमजोर था।
- इसका कारण था राज्यों में क्षेत्रीय दलों एवं संगठनों का विरोध का सामना।
कांग्रेस पार्टी का पतन : 1967 - 1989
- कांग्रेस पार्टी का राज्यों में वर्चस्व 1960 के मध्य में टूटना शुरू हो गया था।
- 1967 के आम चुनावो के बाद इसमें और बढ़ोतरी हुई। राज्यों में 1989 तक राजनितिक दलों में हिजाफा हुआ। एवं ध्रुवीकरण की राजनीती को बढ़ावा मिला इसने कांग्रेस को कमजोर किया कियोकि जयादातर राज्यों में विपक्ष के रूप में उसे चुनोतियो का समाना करना पड़ा।
- इस ध्रुवीकरण का असर 1967 से 1989 तक राज्यों में दिखाई दिया।
- राज्यों की विधान सभा चुनावो में भी 1967 के बाद यही ध्रुवीकरण देखने को मिला।
- कांग्रेस का मत प्रतिशत लोक सभा चुनावो की तुलना में विधान सभा में ज्यादा गिरावट दर्ज की गयी।
- कांग्रेस पार्टी को 50 प्रतिशत से अधिक संसदीय या चुनावो में मत हासिल नहीं हुए थे। कुछ राज्य में इसकी संख्या में बढ़ोतरी है थी। यह इसलिए हुआ कियोकि इन राज्यों में विपक्ष बिखरा हुआ था और वोटिंग पैटर्न विशेष होने के कारण कांग्रेस को इसका फायदा मिला।
- 1967 में विपक्ष एकजुट हुआ। इसका परिणाम यह िक्ला की ज्यादातर राज्यों में गैर - कांग्रेस गठबंधन उभर क्र सामने आया जिसने विधान सभाओं के चुनावो में काफी प्रभावी प्रदर्सन किया।
- इस गठबंधन ने कांग्रेस आठ राज्यों में हार का सामना करना पड़ा।
- 1980 के अंत तक चला, हालकि 1971 एवं 1972 में कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने में सक्षम रही।
राज्य दलीय व्यवस्था में बिखराव :1989 से
- 1980 से लेकर 1990 के बिच राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर दलीय व्यवस्था में बिखराव देखने को मिला।
- राष्ट्रीय स्तर पर एक पार्टी वर्चस्व समाप्त हुआ तथा बहु दलीय व्यवस्था की शुरुआत हुई थी। लेकिन जो व्यवस्था राज्यों में है, वह राष्ट्रीय स्तर पर अलग है
- कई राज्यों में दुईदलियो व्यवस्था स्थापित हुई लक्ष्य ही खासतौर पर राज्यों में देखने को मिला है।
- राष्ट्रीय स्तर पर 1990 के दशक से मुख्य मुकाबला दो प्रमुख गठबंध्नों के बिच सिकुड़ कर रहा गया है। एक जिसका नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी करती है तथा दुसरो जिसका नेतृत्व कांग्रेस पार्टी करती है।
- राज्य स्तर पर प्रतिदुंदी दल हर राज्य में अलग-अलग है , लेकिन ज़्यदातर राज्यों में दो दलयी व्यवस्था ही है।
- कांग्रेस का पतन एवं बी. जे. पि. के विकास का इन हिंदी भाषा राज्यों में एक प्रमुख कारण माना जाता है।
- इसके साथ -साथ कई राज्यों में क्षेत्रीय में एक प्रमुख कारण माना जाता है।
- जोया हसन ने यह दलील दी की , कांग्रेस के पतन के जटिल कारण है , लेकिन प्रमुख राजनितिक आधार अपने गठबंधन या पार्टी को बनाये रखने या बरकरार रखने का।
- इस तरह कांग्रेस ने 1980 के अंत में राज्यों में ताकत कमजोर होने लगी।
- भारतीय जनता विस्तार हल वर्षो में , ज्यादा देखने के मिला है बजाय कांग्रेस के पतन के।
- यह विस्तार कांग्रेस के पतन का कारण ही हुआ है तथा बी. जे. पि. ने कुछ ऐसी रणनीति अपनाइ एवं हिंदुत्व जैसे मुद्दों को पुरजोर तरिके से उठाया जिससे इसे अधिक फायदा मिला।
- लोक सभा चुनावो में जंहा बी. जे. पी. को मात्र 2 सिटे मिली 1984 में, वही 1998 में बढ़कर 182 हो गयी थी।
- इसी कारण यह पार्टी एक शासक पार्टी बन गयी है।
- 1989 के पश्चात भारतीय दलीय व्यवस्था में काफी परिवर्तन देखने को मिला है। कांग्रेस के प्रभुत्व के काल के बाद एक बंटा हुआ युग या बिखराव वाला युग कह सकते है।
- इस काल में मुख्य मुकाबला दो ही दलों के बिच रहा है। चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर हो या राज्य स्तर पर।
- इस दौरान जो पर्तिस्पर्धा रही दलों के बिच इसे हम चार भागो में बाँट सकते है।
- पहले श्रेणी में वे राज्य है जंहा दो ही दलों के बिच मुकाबला रहा है।
- दूसरी श्रेणी में वे राज्य है जंहा तीन या तीन से ज्यादा दल है।
- तीसरी श्रेणी में राज्य है जंहा चार दलों के बिच मुकाबला है। जैसे की उत्तर प्रदेश।
- चौथी श्रेणी में वे राज्य है जंहा मुख्य मुकबला दो ही दलों के बिच में है।
- लेकिन तीसरी पार्टी का भी विकास हो रहा है। इस पार्टी का मत प्रतिशत बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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