न्याय
न्याय का अर्थ
- न्याय की अवधारण संबंधी किसी भी चर्चा में उसके बहु - आयामी स्वभाव का ध्यान रखना पड़ता है।
- न्याय का समतावादी बोध रहा है जिसमे उच्चतम स्थान समानता के मूल्य को दिया जाता है , इच्छा स्वतंत्रयवादी बोध रहा है जिसमे स्वतंत्रता ही परम् मूल्य होता है।
- 'क्रांतिकारी ' दृटिकोण जिसमे न्याय का मतलब है कायापलट कर देना ; 'दैवी ' दृश्टिकोण जिसमे ईश्वर की इच्छा का निष्पादन ही न्याय है ; 'सुखवादी ' न्याय की कसौटी ' अधिकतम संख्या का अधिकतम लाभ ' का बनाता है ; 'समन्वयक के लिए न्याय पर्याप्त संतुलन लेन हेतु विभिन्न मूल सिधान्तो व मूल्य का समन्वय करना है।
- कुछ लोग न्याय को 'कर्तव्य ' अथवा शान्ति व व्यवस्था कायम रखने के साथ पहचानते है ; दूसरे , इसे एक अभिजात - वर्गवादी कार्य के रूप देखते है ; इस प्रकार न्याय व्यक्ति के अधिकार के साथ -साथ समाज की सार्वजनिक शांति से भी संबंध रखता है।
न्याय और कानून
- कानून व न्याय दोनों ही सामाजिक व्यवस्था कायम रखने का प्रयास करते है।
- जॉन ऑस्टिन इस बात के मुख्य समर्थक है , जो बतलाते है की कानून को एक और न्याय के साधन रूप में और दूसरी और अनिष्ट को रोकने के साधन रूप में काम करना पड़ता है।
- वैध रूप से , न्याय व्यवस्था को अन्यायपूर्ण कहकर आलोचना की जा सकती है , यदि वह कानून - व्यवस्था की प्रक्रियाओ द्वारा वांछित निष्पक्षता के मानक तक पहुंचने में असमर्थ रहती है।
- नैतिकता , बहरहाल , न्याय से अधिक महत्व रखती है।
- न्याय के प्रतीक को प्रायः आँखे बंद किय हुए के रूप में प्रस्तुत किया जाता है , क्योकि उसको निष्पक्ष मन जाता है। ताकि दो सिरों - धनवान या गरीब , उच्च अथवा निम्न के बिच , कोई भेदभाव न रहे। इसी कारण , निष्पक्षता न्याय की एक पूर्व शर्त बन जाती है।
न्याय और भेदभाव
- प्लैटो और अरस्तु ने न्याय की एक भिन्न व्याख्या हेतु तर्क दिया - '' न्याय - निष्ठता '' के विचार सहित " आनुपातिक समानता ".
- न्याय की सैध्दाँतिक व्याख्या अरस्तु के पास पहुँचकर एक आनुभविक दिशा पकड़ लेती है जो कहते है : " जब समानो से असमान रूप से व्यवहार किया जाता है , तो अन्याय उत्प्न्न होता है। " इसका मतलब की यदि किसी लोकतंत्र में लीग के आधार पर भेदभाव होता हो तो इसका अर्थ समानो के साथ असमानरूप से व्यवहार करना है।
- प्लैटो के न्याय - संबंधी सिद्धांत का निहितार्थ लोगो का जोवन कार्यात्मक विशेषज्ञता नियम अनुरूप होना चाहिए।
- समाज के लिए इससे बेहतर कोई बात नहीं होगी की यह देखे व्यक्ति उसी स्थान को ही भरे लिए वह अपने व्यक्तित्व की विशेषता के आधार सवार्धिक योग्य हो।
- कानून निजी जीवन में विभेदकारी व्यवहार की घटनाओ में हस्तक्षेप नहीं करता। परन्तु इससे यदि सामाजिक हानि पहुँचती हो , तो राज्य का इसमें हस्तक्षेप करना न्यायसंगत होगा।
- अलग से दी गई सुविधाए वस्तुतः समान नहीं हो सकती. यही कारण है की डॉ. अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों के लिए मंदिरो में प्रवेश अधिकार मांग की और पृथक मंदिरो , विधालयों अथवा छात्रावासों का विरोध किया।
वितरणकारी न्याय
- अरस्तु की धारणा उस सिद्धांत की नीव रखने वाली सिद्ध हुई , जिसको 'वितरणकारी न्याय ' कहा जाता है। अरस्तु की व्याख्या का महत्वपूर्ण निहितार्थ यह है की न्याय या तो 'वितरणात्मक ' होता है अथवा 'दोषनिवारक ' ; पूर्ववर्ती अपेक्षा करता है की समानो के बीच समान वितरण हो और परवर्ती वहाँ लागू होता है , जंहा किसी अन्याय का प्रतिकार किया जाता है।
- वह सिद्धांत जो मार्क्स ने क्रांति - पश्चात साम्यवादी समाज में वितरणकारी न्याय हेतु प्रस्तुत किया , वो है - 'हर एक से उसकी क्षमता के अनुसार, हर एक को उसके काम के अनुसार ' .
- जे. डब्ल्यूचैपमैन के अनुसार , न्याय का प्रथम सिद्धांत उन लाभों का वितरण होना प्रतीत होता है , जो उपभोक्ताओं के सिद्धांतो के अनुसार लाभ - वृद्वि करते हो।
- दूसरा सिद्धांत यह है की ऐसी व्यवस्था अन्यायपूर्ण होती है , यदि मात्र कुछ लोगो के भौतिक कल्याण को अनेक लोगो की कीमत पर खरीद लिया जाता है। इसका अर्थ यह है की न्याय यह अपेक्षा करता है की कोई भी व्यक्ति दूसरे की कीमत पर लाभ प्राप्त न करे।
वितरणकारी न्याय और आर्थिक न्याय सुनिश्चत करना
- वितरणकारी न्याय आम कल्याण शर्त के अधीन है। वह चाहता है की राष्ट्रिय अर्थवय्वस्था की स्थिति को इस प्रकार सुधारा जाए की लाभ आम आदमी तक पहुंच सके। इस तरीके से आर्थिक न्याय की धारणा का अर्थ होगा समाज का एक साम्यवादी प्रतिमान।
- आर्थिक न्याय का पहला काम है , हर सक्षम - देहि नागरिक रोज़गार , खाघ , आश्रय व वस्त्रादि मुहैया कराना।
- उदारवादी यह मानते है की आर्थिक न्याय समाज में हासिल किया जा सकता है , यदि राज्य कल्याणकारी सेवा प्रदान करता हो और वहाँ कराधान की सुधारवादी व्यवस्था हो ; सामाजिक सुरक्षा वाले रोज़गार प्रबन्ध हेतु अच्छी आमदनी हो , जैसे वृद्धावस्था पेंशन , आनुतोशिक एवं भविष्य निधि।
- न्याय -संबंधी मार्क्स के विचार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में ही है। मार्क्स के अनुसार , राज्य का सरकारी कानून उस वर्ग - विशेष के प्राधिकार द्वारा ही अपने सदस्यों पर थोपा जाता है , जो उत्पादन के साधनो नियंत्रित करता है।
- कानून शासक वर्ग के न्याय आर्थिक हिट द्वारा तय किया जाता है।
- जब राज्य क्षय हो जाएगा , जैसा की साम्यवादी जन इरादा रखते है , तो यहाँ आर्थिक मूल के बगैर न्याय व्याप्त हो जाएगा।
- पुनर्वितरणकारी न्याय ( जिसकी अरस्तु ने बात की ) ' संशोधन उदारवाद ' का एक अभिन्न हिस्सा है , जिसका की जे, डब्ल्यू चैपमैन , जॉन राल्स , व अर्थर ओकुन ने समर्थन किया। इन लेखकों ने सभी के लिए न्याय व स्वतंत्रता के हितार्थ अर्थव्यवस्था में राज्यीय हस्तक्षेप के अपने आशय के साथ " पुनर्वितणकारी न्याय " की वकालत की।
सामाजिक न्याय
- सामाजिक न्याय विधमान कानूनों के तहत किसी व्यक्ति की न्यायसंगत अपेक्षाओं की पूर्ति सुनिश्ति करते हुए उस व्यक्ति के अधिकार व सामाजिक नियंत्रण के बिच संतुलन से ताल्लुक रखता है और उसे लाभों व उसके अधिकारों के किसी भी अतिक्रमण से बचाव की गारण्टी देता है।
सामुदायिक हित का प्राबल्य
- बाजार आदि मामलों में अस्तक्षेप सिद्धांत के हार्स के साथ ही एक नई जानकारी विकसित हुई विचारकर उसे की किसी व्यक्ति के अधिकार समुदाय - विशेष के हित में युक्तिसंगत रूप से सीमाबद्ध चाहिए , ताकि सामाजिक न्याय का उद्देश्य वैयक्तिक अधिकारों व सामुदायिक हित के बीच सामंजस्य की अपेक्षा रखे।
- आज सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रो में लोकतंत्र के प्रवेश के साथ ही , सामुदायिक हित के दायरे में न सिर्फ राजनितिक बल्कि सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र भी आने लगे। है
- इस प्रकार , सामाजिक न्याय की शृंखला अल्पसंख्यक राजनितिक अधिकारों रक्षा से लेकर अस्पृश्यता निवारण एवं गरीबी उन्मूलन तक फैली है।
सुधार अथवा सामाजिक परिवर्तन
- सामाजिक न्याय को आजकल निष्पक्षता व समानता संबंधी धारणाओं के आधार पर समाजके संग़ठन को इंगित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- यह सामाजिक व्यवस्था पर विचारकर उसे बदलने का प्रयास करता रहा है , ताकि एक अधिक सामियक समाज बन सके।
- सामाजिक न्याय का अर्थ है - सुधारवादी न्याय , सामाजिक व्यवस्था पर विचारकर उसे बदलने और निष्पक्ष्ता संबंधी सामयिक विचारो से मेल खाते अधिकारों का पुनर्वितरण।
- जब अरस्तु ने ' वितरणकारी न्याय ' की बात की थी , तो वह सुधारवादी , अथवा जिसे राफेल '' कृत्रिम अंगी " कहते है , न्याय की बात दिमांग में रखते थे , क्योकि इसका उद्देश्य यथास्तिथि में किंचित हेर - फेर करना था।
- '' सुधारवादी " अथवा ''कृत्रिम अंगी '' न्याय संबंधी विचारो की युक्ति से आज यह राज्य का कर्त्तव्य है की बेरोजगारों का ध्यान रखे और उन्हे रोज़गार मुहैया कराये।
सामाजिक न्याय संबंधी पाउण्ड का चित्रण
- समाजिक न्याय संबंधी धारणा की अभिपुष्टि डीन रोस्को पाउण्ड की व्याख्या में बहुत अच्छी तरह की गई है ,जो सामाजिक हित का छह - सतही चित्रण प्रस्तुत करते है और समाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आठ क़ानूनी यानि अधिकार व कर्त्तव्य संबंधी अभिधारणाए सामने रखते है।
- सामाजिक न्याय संबंधी धारणा एक न्याय -संगत सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित कर लोगो के कल्याण को प्रोत्साहन देने की परिकल्पना करती है।
सामाजिक न्याय संबंधी आलोचना
- सामाजिक न्याय संबंधी सिद्धांतो की तीन आधारों आलोचना की जाती है। प्रथम सामाजिक न्याय हेतु मांगों , उलझाव में डालकर , राज्य के क्रियाकलापों में इजाफा कर देती है।
- दूसरे , सामाजिक न्याय संबंधी नीतियों एवं उनको लागु किए जाने में आजादी की काट -छाँटा किए जाने की आवश्कता पड़ती है।
- तीसरे , यह की न्याय केवल तभी किया जा सकता है जबकि राज्य उनका सामाजिक सम्मान , आर्थिक जीवन क्षमता एवं राजनितिक प्रतिष्ठा दिलाने में मदद करने रियायती नीतियाँ लेकर आगे आये।
प्रक्रियात्मक न्याय
- न्याय संबंधी एक अपेक्षाकृत अधिक अनुदार दृश्टिकोण वह है , जिसे 'प्रक्रियात्मक न्याय ' कहा जाता है।
- इस अवधारणा में व्यष्टियाँ होती है , न की समिष्टियाँ।
- प्रक्रियात्मक सिंद्धातियो (उदारणत : हयेक ) का मानना है की सम्पति के पुनर्वितरण हेतु मापदण्डो को थोपना सर्व - सत्तावाद और आजादी की एक नाजायज कुर्बानी की ओर प्रवृत करेगा।
- उन्हें लगता यदि राज्य किसी कल्याणकारी निति अपना भी लेता है , तो उसका न्याय से कम ही सरोकर होता है।
- प्रक्रियात्मक सिद्धांत समालोचको का तर्क है की महज का पालन मात्र ही कोई परिणाम सुनिश्चित नहीं कर देता।
जॉन रॉल्स का न्याय -सिद्धांत
- विभिन्न राजनितिक सिद्धांत 'एक वास्तविक रूप से व्यवस्था क्या होगी ' संबंधी विभिन्न चित्र प्रस्तुत करते है। सिद्धांत है - उपयोगितावादी सिद्धांत , और निष्पक्षता के रूप में न्याय संबंधी रॉल्स का सिद्धांत।
- उपयोगितावादी सिद्धांत का दावा है की वह सामाजिक व्यवस्था जिसमे बड़ी से बड़ी संख्या में लोग अपनी उपयोगिता की उच्चतम संतुष्टि पा सकते है, न्यायसंगत है।
- न्याय - संबंधी जॉन रॉल्स के सिद्धांत पर चर्चा करने के लिए , पहले उसके नैतिक समस्याओ पर पहुंचने के तरीके का उल्लेख आवश्यक है , जो की सामाजिक सिद्धांत की संविदावादी परम्परा में देखा जाता है।
- रॉल्स का दावा है , लोग शाब्दिक क्रम में न्याय संबंधी दो सिद्धांतो सहर्ष स्वीकार करेंगे।
- पहला है 'समानता सिद्धांत ', जिसमे व्यक्ति को दुसरो की सदृश स्वतंत्रता के अनुरूप ही सर्वाधिक व्यापक स्वतंत्रता का समान अधिकार होगा।
- दूसरे सिद्धांत को 'भिन्नता सिद्धांत ' कहा जाता है , जिसमे रॉल्स का तर्क है की असमंतोओं को केवल ठहराया है सकता है , यदि उनसे निम्नतम लाभांवितों को लाभ पहुंचने को।
- न्याय - संबंधी जॉन रॉल्स की अवधारणा के दो पहलू है।
- वह एक " संवैधानिक लोकतंत्र " की माँग करती है , यानि कानूनों की सरकार और वो ऐसी वश में हो , जवाबदेह हो और जिम्मेवार करती है।
- वह "एक निशिचत रीती से " मुक्त अर्थव्यवस्था के नियमन में विश्वास करती है।
न्याय : संयोजन का एक शब्द
- न्याय का अर्थ है विवादग्रस्त मूल्यों का सामंजस्य और उनको एक साथ किसी साम्यावस्था में रखना।
- स्वतंत्रता और समानता दोनों ही महत्वपूर्ण है , जैसा की कैरिट का कथन है , दोनों ही एक - दूसरे के लिए आवश्यक है।
- हैरॉल्ड लास्की के शब्द आज भी सत्य लगते है : " आसमानो के समाज सवतंत्रता का दावा करने वाले व्यक्ति के हर प्रयास को ताक़तवरो द्वारा चुनौती दी जाएगी। "
- राजनितिक स्वतंत्रता एवं आर्थिक लोकतंत्र को कंधे से कंधा मिलाकर चलना पड़ता है।
- यह न्याय का काम है की विविध एवं प्रायः - विरोधी मूल्यों के बीच संयोजन या सामंजस्य स्थापित करे।
- न्याय ही अंतिम सिद्धांत है , जो स्वतंत्रता के साथ -साथ समानता के भी हित में विभिन्न अधिकारों (राजनितिक , सामाजिक एवं आर्थिक ) के वितरण को नियंत्रित करता है।
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IGNOU
Very helpful
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