जाति , वर्ग एवं जनजाति
जाति
- जाति एक समाजिक समूह है जहाँ पर किसी व्यक्ति की स्तिथि जन्म के आधार पर निर्धारित होती है।
- यह वंशानुगत वयवस्था है। जाति अंतर्विवाही व्यवस्था को अपनाती है।
- पंरपरागत रूप में जातियों की पहचान विशेष व्यवसाय के साथ की जाती है।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के कल में राज्य की नीतियों एवं भूमि सुधारो , आरंक्षण इत्यादि ने जाति आधारित संबंधो को परिवर्तित किया है।
- जाति आधारित व्यवसाय सामाजिक वर्गीकरण को भी दर्शाता है जाति चार वर्णो में विभाजित था :ब्रह्मण , क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र।
- लुइ डयूमो के अनुसार जो की "होमो हाइरार्की " लेखक है , उन्होंने अपनी पुस्तक में भारत में विभिन्न जातियों को श्रेणीबध्द वर्गीकरण किया है उन तर्क है की जातियों में सबसे ताकतवर जाती ब्राह्मण है जो की क्षत्रीयो से कहि अधिक निर्णायक भूमिका ऐडा करती यही।
- ड्यूमो के इस तर्क का कई लेखकों ने एवं विशेषकर निकोलस डिरक ने चुनौती दी है।
- निकोलास डर्क ने यह बताया की ब्राह्मण एवं उनके लेख भारतीय जीवन के सामाजिक सद्भाव के केंटर में नहीं थे।
- उनके दृश्टिकोण के अनुसार सत्ता संबंध एवं संसाधनों तथा व्यक्तियों पर नियंत्रण ज्यादा मह्तवपूर्ण थे।
- ब्राह्मण केवल कर्मकांड के विशेष्य्ज्ञ थे तथा वे ताकतवर शासक परिवार के अधीनस्थ थे।
- लुइ ड्यूमो से असहमत होते हुए समाजशास्त्री दीपांकर गुप्ता ने यह तर्क दिया की यधपि विभिन्न जातियों को एक निशचीत वर्गीकरण स्थान में रखा गया है ,लेकिन फिर भी ये विशेष जाती पहचान के रूप में उभर क्र सामने आयी है।
- कोठरी एवं डी. एल सेठ में जाति को निर्परक्षिकरण का नाम दिया है।
- क्रिस्टोफ जैफ़रलो एवं संजय कुमार ने अपनी पुस्तक "राइज ऑफ़ प्लेबियन "में यह तर्क दिया की विभिन्न राज्यों में दलितों एवं ओ. बी. सी. की भागेदारी बढ़ी है , खासकर 20 वी. सदी के आखीरी दशकों में।
राजनीती में जाति की भूमिका
- 1950 में सार्वभौम मताधिकार के लागु होने के बाद , सभी जातियों को समान अवसर मिला राजनीती में भाग लेने का।
- उन्होंने अपने संगठनों का गठन किया जिसने सभी जातियों को सशक्त बनाने में मदद की , खासकर दलित एवं पिछड़े वर्गो की सहभागिता बढ़ी है।
वर्ग
- वर्ग जाति से अलग है। जाति की तरह वर्ग वंशानुगत नहीं है।
- यह किसी धर्म से भी प्रतिबंधित नहीं है। वर्ग किसी भी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति से संबंधित है।
- यदपि वर्ग आर्थिक श्रेणी है लेकिन इसका संबंध गैर -आर्थिक पहलुओं ,जैसे जाती जनजाति या धर्म से भी है।
- मकरसवादी भाषा में दो ही वर्ग होते है : गरीब और अमीर।
- पूंजीवादी समाज में दो ही वर्ग मौजूद है पूजीपति या बुजुरआ वर्ग तथा दूसरा श्रमिक या मजदूर वर्ग।
- हरीश दामोदरन ने अपनी पुस्तक "भारत के नए पूँजूपति वर्ग "में पूंजीपतियों के जाति आधारित पृष्ठभूमि का खुलासा किया है और कहा की पिछले कुछ सदियों से इस वर्ग में वृद्धि हुई है बजाय स्वतंत्रता प्राप्ति के समय के पश्चात।
- भारत में उद्योग अर्थव्यवस्था का बहुत छोटा हिस्सा है कृषि की तुलना में इसलिए औद्योगिक और मजदूर वर्ग भी बहुत छोटा वर्ग है।
- रुडोल्फ एवं रुल्डोल्फ ने अपनी पुस्तक "परस्यूट ऑफ़ लक्ष्मी "में ये रखांकित किया की मजदूर वर्ग बहुत छोटा वर्ग है भारत में। वर्गो को कृषि के क्षेत्र में भी देखा जा सकता है। लेकिन कृषि क्षेत्र मेवर्गो का गठन एवं संगठन विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग है।
- भूमि सुधार के बाद ,जिसने जमींदारी प्रथा क समाप्त कर दिया है ये वर्ग आमिर किसान ,कुलक तथा मधयम किसान के रूप में जाने है।
- ऐसे वर्ग भी है जिनके पास बहुत कम खेती की जमीन भी है। यह जमीन उनके परिवार की जरूरतो को पूरा करने के लिए प्रायप्त नहीं है। वे अपनी जमीन पर काम करने के अलावा दुसरो की जमीन पर भी काम करते है। ये छोटे एवं मंझले किसानहोते है।
- अपनी पुस्तक "फुटलूज लेबर "में जन ब्रीमन से इन वर्गो को 'फुटलूज लेबर 'यानि स्वत्रंत मजदूर कहा है।
फुटलूज लेबर
- फुटलूज लेबर एक सामाजिक समूह है जिसके पास अपने जीवन यापन के लिए स्थायी साधन नहीं है।
- उन्हें जो भी कार्य मिलता है उसे कर लेते है। उनके पास न जमींन होती है और न ही अन्य जीवन यापन के साधन।
जनजाति
अर्थ
- जनजाति एक ऐसा समूह जो की विशेष पहचान रखता है ,जैसे की संस्कृति ,भाषा ,नस्ल ,धर्म ,इतिहास इत्यादि।
- जनजातियों की कुछ विशेषताए होती है जैसे की वे मुख्य धारा से अलग निवास स्थान होता है ,महिलाओं में समानता ,मुखिया की भूमिका , इत्यादि।
- जनजाति जाति से अलग होती है। जाति मुख्य रूप से हिन्दू समाज की विशेषता है जाति की पहचान धर्म विशेष नहीं होती।
- जनजातियों अलग धर्मो से होती है ,जैसे मुस्लिम ,बौध्द या फारसी।
विशेस्ताएं
- परंपरागत तैार पर नजजातियो पहाड़ी इलाको एवं जंगलो में पायी जाती है। यहाँ सामान्यता इन इलाको में मुलभुत सुविधाओं की कमी पायी जाती है जैसे ,सड़क विधायल , स्वास्थ्य सुविधाएं इत्यादि।
- इन इलाको में खेती मुख्यता पारिवारिक परिश्रम का हिस्सा है। जनजाति बहुत इलाको में खेती के तौर -तरिके भी बदल रहे है ,अब लोगो के पास अपने पशु मछलीपालन ,शिकार ,खदान इत्यादि के कार्य है।
- वे खेती के परंपरागत साधनो का इस्तेमाल करते है
- जनजातीय के पास ,विकसित बाजार नहीं है ताकि वह अपना मॉल बेच सके।
- महिलाए इन इलाको में गैर -जनजाति समाज की महिलाओं से ज्यादा समानता पाति है।
- जनजाति समुदाय का मुखिया अपने लोगो के हितो की रक्षा के लिए निर्णायक भूमिका अदा करता है
- अनुच्छेद 16 ,46 एवं 335/ संविधान जनजातीय भाषा ,बोली एवं संस्कृति के रक्षा को भी सुनिशित करता है (अनु। 29 ) पांचवी एवं छठी अनुसूची संविधान की यह सुनिश्चित करती है की जनजाति लोगो की संस्कृतिक एवं स्वायत्ता की रक्षा की जाये।
जनजाति एवं राजनितिक आंदोलन
- भारत में जनजातियों ,विभिन्न क्षेत्रों में राजनितिक आंदोलन क्र रही है ,विशेषकर उनके खिलाफ हो रहे उत्पीड़न एवं शोषण के विरुद्ध ये जातियाँ समय -समय पर आंदोलन का सहारा लेती है।
- 19 वी सदी के दौरान ,आदिवासी औपनिवेशक शासन के विरुद्ध कई विद्रोह में शामिल थे तथा उनके जीवन ,संस्कृति एवं आदिवासी अम्युदय के बिच हस्तैक्षेप के विरुद्ध भी वद्रोह में शामिल थे
- इसके परिणाम स्वरुप आदिवासी इलाको में प्रशास्निक व्यवस्था का सृजन किया गया जो की सामान्य भारतीय प्रशासन से अलग थी।
- कई प्रकार के विधायी एवं कार्यकारी कदम उठाये गए जिनका प्रमुख लक्ष्य था आदिवासी लोगो के हितो की रक्षा एवं उनके कल्याण के कार्य करना।
- 1874 से आदिवादी इलाको में जनजाति वर्ग की जनसंख्या बहुमत में है। इसका प्रशासन की अनुसूचित जिला इकाई के द्वारा संचलित किया जाता है।
- इस कानून के मुतबितक ,सरकार को कुछ कानूनों को अनुसूचीत इलाको में इलाको में लागु करने की जरूरत थी ये कानून भारत के अन्य इलाको से अलग थे।
- ये प्रावधान स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी जारी थे हलाकि इनकी जड़ ओपनिवेशिक शासन में थी।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के कल में , जनजातियाँ अपने पिछड़ेपन को समाप्त करने एवं भाग लेने के लिए आंदोलनों में शामिल रही है।
- आंदोलन के जरिए, वे राजनितिक एवं क्षेत्रीय स्वायत्तता चाहती है , एवं शासन की इकाइयों के बिच संबंधो को पुनः व्यवस्थित करना चाहती है।
- कुछ जनजातीय समूह विद्रोह में भी शामिल है एवं उनको इसका जनसमर्थन भी मिलता थी तथा प्राय: ये हिंसा में भी तबदील हो जाता है।
- इनमे कुछ उदाहरण उत्तर -पूर्वी राज्यों आंदोलन जैसे नागा आंदोलन , मिजो आंदोलन तथा बोडो आंदोलन शामिल है।
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