गांधीवादी अवधारणा
गांधीवादी अवधारण का अर्थ एवं क्षेत्र
- गांधीवादी धारणा राजनीती की व्याख्य करने का एक तरीका है।
- इसके मुलभुत सिंद्धांत सत्य , आहिंस , सत्यग्रह , स्वराज , राम - राज्य सत्ता का विकेन्द्रीकरण , नैतिकता , सामाजिक सदभाव , ट्रस्टशिप इत्यादि है।
- गांधीवादी अवधारण का प्रयोग राजनीतिको, कार्यकर्ताओ , एवं राजनेताओ के द्वारा किया वर्तमान विकास ढांचे की आलोचना करके एक विकल्प देना होता है। /
- गांधिवादी अवधारणा अहिंशा , एवं राजनितिक में नैतिकता के महत्व को रखांकित करती हैजबकि मार्क्सवादी अवधारणा वर्ग संघर्ष में विश्वास रखती है।
- गांधीवादी आवधारणा मानना है की मजदूरों एवं पूंजीपति वर्गो में एक - दुसरो विश्वास की भावना होनी चाहिए।
- आहिंषा का प्रयोग नैतिक मूल्यों को प्राप्त करने के लिए होना चाहिए , इसे गांधीवादी सिद्धांतो में सत्याग्रह कहा गया है।
- गांधीवादी अवधारणा का अंतिम लक्ष्य स्वराज की स्थापना करना है।
मानवीय मूल्यों की खोज
- रजनी कोठारी ने गांधीवादी का प्रयोग भारतीय राजनीती के लिए किया था। उन्होंने अपने कुछ और बुद्धिजीवो के साथ लोकायन की स्थापना थी।
- गेल ओमेवेट के अनुसार , लोकायन एक गांधीवादी -समाजवादी नागरिक समाज संगठन था (रुडॉल्फ एवं रुडॉल्फ ) . लोकायन का सदस्य होने के नाते रजनी कोथिरि पर गांधीवादी दर्शन का प्रभाव था।
- गांधीवादी अवधारणा का प्रयोग उन्होंने व्यवस्थावादी उपागम की आलोचना की संदर्भ में था।
- जो परिवर्तन पिछले चार दशको में हुए है उनका व्यवस्थावादी उपागम ने ठीक से विश्लेषण नहीं किया , ये परिवर्तन तकनीक के क्षेत्र में तथा राज्य में देखने को मिलता है। इसका असर समाज पर भी पड़ा है।
- कई अन्य परिवर्तन जैसे की जन आंदोलन मानव अधिकार , जन जातीय मुद्दे , संस्थाओ का पतन , वक्तिवादी नेताओ जैसे इंदिरा गांधी इत्यादि।
- कोठरी ने यह रेखांकित किया की , गांधीवादी अवधारणा पहले आवधारणाओ से अलग है।
- रजनी कोठरी (1988 ), के अनुसार भारत में जहाँ राज्य के ऊपर टक्नोलोजी का कब्जा है. वहाँ पर दो प्रकार भारतीय है। एक और लोकतंत्र आमिर लोगो ने कब्जा कर लिया है , वही दूसरी और यह संप्रदायवादी , भ्र्ष्ट लोगो लिए खेल का मैदान बन गया है.
गांधीवादी अवधारणा एवं भारत में राजनीती विज्ञान
- राजनीती विज्ञानं में , गांधीवादी आवधारणा द्वारा प्रयोग किया जाने वाला आम विषय सामाजिक आंदोलन एवं सत्याग्रह है इसमें भारतीय राज्य की आलोचना म स्वराज की आवधारणा , साम्प्रदायिक एवं सदभाव तथा विकेन्द्रीकरण (पंचायती राज संस्थाए ) या 73 वा एवं 74 वा संविधान अधिनियम है।
- गांधीवादी परिप्रेक्ष्य के अनुसार , राज्य मुख्यतौर पर आत्म विहीन मशीन जो की बल पूर्वक साधनो का इस्तेमाल करता है।
- गांधीवादी परप्रेक्ष्य इस बात को समझने का प्रयास करता है की राज्य को सुरक्षा प्रदान जरूरत है।
- वास्तव में विरोधी नहीं थे , बल्कि वे राज्य कम उपयोग करने के समथर्क थे।
सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सदभाव
- नोआखली में, गांधी ने अपने प्रयासों से दंगो पर काबू सफलता हासिल की थी। (बटब्याल 2005 )
- गांधी जी ने धर्म को राजनीती में इस्तेमाल हिंसा पर काबू पाने में इसके प्रभाव की महत्ता बताई
- परिप्रेक्ष्ये यह विश्लेषण प्रयास करता है की किस विभिन्न समुदायों को सांप्रदायिक परिस्थिति से निकालकर साथ लाया है।
सामाजिक आंदोलन
- 1974 में गुजरात आंदोलन अध्ययन जो की मूल्य वृद्धि के विरुद्ध था , घनशयाम शाह ने सत्याग्रह की भूमिका जिक्र है. खासकर लेवि आंदोलन को छात्रों ने चलाया था जिनकी थी मेस में खाने वृद्धि होना तथा भरस्टाचार कला -बजरी , महंगाई , गैर -रास्ट्रीयकरण , नागरिक स्वतंत्रऐ भी इसमें शामिल हो गई थी।
- आंदोलन मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल को इस्तीफा मजबूर कर बाद में यह आंदोलन जे.प.के आंदोलन से भी जुड़ गया था।
- गांधीवादी सुब्बा राव और पि. वि. राजगोपाल और जयप्रकाश नारायण चंबल के डकैतों को सम्पर्ण गांधीवादी का प्रोयग किया.
- एकता परिषद ने बुंदेलखंड और छत्सीसगढ़ वैकल्पिक नये सामाजिक किये थे. इसने लम्बा मार्च भी आयोजन यात्रा , भूमि सत्यग्रह इत्यादि। इसमें एम.पि. एवं दिल्ली के किसान शामिल थे। ( पाई -2010)
दलीय व्यवस्था
- रजनी कोठरी ने दिसंबर 1974 ,14 (2 ) एशियन सर्वे लेख प्रतुस्त उनका विचार था की सरकार बिना जमीनी स्तर संगठन के काम नहीं कर सकती है।
- उत्तर - नेहरूवादी , काल में , कांग्रेस पार्टी में यह दिखाई दे रही थी । जो भी जन आंदोलन हो रहे थे वो भी चुनावी चैनल या विधायिका के बाहर हो रहे थे।
- यदि हम पार्टी संगठन पुनः बहाल नहीं कर सके तो चुनाव अपनी साख खो देंगे।
लोक नीतियों पर गांधी वादी दर्शन का प्रभाव
- जनता सरकार नेहरूवादी नीतियों के मॉडल को बदलने का प्रयास कर रही थी।
- चरण सिंह नेहरू के मॉडल की आलोचना तथा उन्होने कृषि क्षेत्र को प्रथिमिकता दी थी।
- उन्होने नेहरू पर यह आरोप लगाया की नेहरू ने भारत को गैर - औधोगिक बना है।
- गांधीवादी अवधारणा का प्रयोग करते हुए राहुल रामागुंडम (2008)ने जीवन भौतिकता एवं नैतिकता को महत्वपूर्ण माना।
- भौतिकता नेहरू की देना थी जबकि नैतिकता गांधी जी के देना ।
- गांधीवादी सामाजिक आर्थिक नीतियों के आकलन में सामान कमी है।
गांधीवादी परिप्रेक्ष्य एवं उत्तर - आधुनिकता
- अपनी पुस्तक पोस्ट- मॉडर्न गांधी एंड अदर एस्सेज़ में रुडोल्फ एवं रुडोल्फ ने गांधी को उत्तर - आधुनिकता का चिंतक बताया है।
- उन्होने गांधी पर परंपरागत नेता के सामान्य विचारो को भी चुनोती दी थी।
- उनकी राय में , गांधी जी एक उत्तर - आधुनिक थे।
- उत्तर आधुनिक की कुछ महत्वपूर्ण विशेस्ताए -किसी एक समुदाय को या उसके किसी एक भाग को प्राथमिकता , सत्य वस्तविक्ता है एवं संदर्भ है.
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