थल एवं जल संसाधन
नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन
- प्राकृतिक संसाधन नवीकरणीय संसाधन और नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं।
- ऐसे संसाधन जो पुणे उत्पन्न होने या जल्दी से नविकरण करने की क्षमता यह सामर्थ्य रखते हैं नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। वे सूर्य ,पवन ऊर्जा ,पानी, मिट्टी ,जंगल इत्यादि को शामिल करते हैं।
- कुछ नवीकरणीय संसाधन और सावधानीपूर्वक प्रयोग करने के कारण नष्ट हो सकते हैं और अनवीकरणीय संसाधन प्रकृति में सीमित मात्रा में है और नवीकरणीय में हजारों वर्ष लग जाते हैं उदाहरण के लिए कोयला और पैट्रोलियम।
नवीकरणीय जल संसाधन
- जल जीवन का महत्वपूर्ण घटक है उपयोग योग्य जल संसाधन सीमित है मानव की उत्तरजीविता प्रारंभ से ही समाज के भूमि और जल संसाधनों के संबंध पर निर्भर है। हड़प्पा, इंका आदि अनेक प्राचीन सभ्यताएं नदी के तटों पर फली -फूली और नदियों की बाढ़ में नष्ट हो गई ।
- मनुष्य को जल और भूमि का चक्रीय संबंध समझ में आने पर उसने अभी आंतरिक तकनीकों के उपयोग द्वारा टंकियों को बनाने की शुरुआत की।
- मीठा पानी मानव जीवन के निर्वहन के लिए सबसे महत्वपूर्ण पदार्थों में से एक है क्योंकि पृथ्वी पर पाए जाने वाले जल का मात्र 1% मीठा जल उपलब्ध है जिसका लगभग 73 प्रतिशत कृषि, 20% उद्योग और शेष घरेलू तथा मनोरंजन आवश्यकताओं के लिए प्रयोग किया जाता है जल संसाधनों का वैश्विक वितरण दर्शाता है कि जल की कुल मात्रा का 3% से भी कम मीठा जल है।
जल चक्र
सुविधा के लिए जल चक्र को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
- वर्षण- वर्षा, हिम, ओला, हिमी वर्षा और औस सभी वर्षण में सम्मिलित है जल के वाष्पन के कारण वायुमंडल उत्पन्न तरल अथवा ठोस में परिवर्तित होकर धरती पर गिरती है जल की वास्तविक मात्र वायुमंडल से संघनन निक्षेपण और वर्षण के द्वारा भूमि और सागरों में वापस आ जाती है।
- संघनन -इस प्रक्रिया में जलवाष्प प्रवस्था से तरल अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
- निक्षेपण- इस प्रक्रिया में जल सीधे वाष्प से ठोस प्रवस्था में परिवर्तित हो जाता है। वायुमंडल में जल की नन्ही बूंदों और भीम कणों के निचे पर बादल बनते हैं सौर ऊर्जा जल का सागर और भूमि से वार्षिक करती है ।जलवाष्प वायुमंडल में संगठित होकर बादल बनाती है ,फिर वर्षा होती है वर्षा का जल पीघली बर्फ नदियों में जल की आपूर्ति करते हैं नदियां जल को वापस समुद्र में ले जाती है।
- वाहित जल- वर्षा का जो जल मृदा द्वारा अवशोषित नहीं हो पाता वह भूमि की सतह पर प्रवाहित क्षेत्र के प्राकृतिक ढाल से होकर बहता है वाहित जल झीलों और नदियों के लिए जल का मुख्य स्रोत है जो अंकिता सागर में चला जाता है।
- उर्ध्वपातन- इसमें ठोस जल सीधे वाष्प प्रवस्था में तरल प्रवस्था में जाए बिना ही परिवर्तित हो जाता है तापमान के हिम ई करण से काफी नीचे होने पर बर्फ के पत्र को का क्रमिक रूप से लुप्त होना, उर्ध्वपातन का उदाहरण है।
- वाष्पन- इस प्रक्रिया में तरल जलपरी वेशी तापमान पर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है महासागर की सतह से वाष्पन वायुमंडलीय जलवाष्प का सबसे बड़ा स्रोत है।
- वाष्पोत्सर्जन- यह पौधों की पत्तियों से वाष्प के रूप में जल की हानी है।
जल के प्रकार/ रूप
भूमि पर जल तीन रूपों में पाया जाता है मीठा जल, खारा जल और समुद्री जल।
- मीठा जल -मीठे जल में अनिवार्य रूप से अनेक विलय लवण होते हैं मीठे जल में लवण की कुल मात्रा 1.5 प्रतिशत से कम रहती है।
- खारा जल - खारे जल में घुले हुए लवणों की मात्रा मीठे जल से अधिक होती है और यह 0.5 से 3.5 प्रतिशत के बीच होती है।
- समुद्री जल- समुद्री जल अत्यधिक लवणीय होती है जो भाड़ा अनुसार 35 भाग लव प्रतिशत 1000 भाग जल है और इसे 3.5 प्रतिशत लिखा जाता है।
सतह और भूजल का अत्यधिक दोहन
- भूजल हमें विभिन्न कार्यों के लिए निरंतर जल पूर्ति करता है और प्रकृति स्थितियों में इसके सूख जाने की संभावना नहीं होती है तथा जल्द से सरिता ए ताल जिले मानव निर्मित जलाशय और नेहरे तथा मीठे जल की आद्र भूमि संबंधित है।
- कृषि में जल का सर्वाधिक उपयोग होता है लगभग 70% उपयोग जल प्रतिवर्ष विश्वव्यापी रूप से कृषि उत्पादन में खर्च हो जाता है भाभी कृषि उत्पादन के निहितार्थ जल प्रभावी उपाय विकसित करना है जो प्रति इकाई जल के निवेश पर अधिक उत्पादकता प्रदान कर सके जल के प्रभावी उपयोग के लिए सिंचाई प्रणालियों के प्रभावी प्रचलन जल और मृदा संरक्षण के उचित तरीकों फसलों के पैटर्न और फसलों को गाय जाने के तरीकों में परिवर्तन आदि की आवश्यकता है।
जल स्रोतों का निम्नीकरण
जल स्रोतों का निम्नीकरण और उनका संदूषण एक गंभीर समस्या है आज संगठन कृषि शहरीकरण औद्योगिकरण और वनों रोपड़ के कारण न दिए झील महासागर दर्द मुख और भूजल दिखाएं गंभीर प्रदूषण का सामना कर रहे हैं सुरक्षित पेयजल की कमी की स्थिति का सामना लोग और सबसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्र और प्रचार जल निकाय वाले क्षेत्र दोनों में कर रहे हैं वाहित मल और औद्योगिक वाही श्रवण का जल निकायों में विश्व जल को प्रदूषित करने के साथ चलिए पादप और सहवाग प्रफुल्ल अनु की वृद्धि भी बढ़ा देता है जिससे सेहत अता जल निकाल लुप्त हो जाते हैं।
बाढ़ और सूखा
बाढ़ जल का वह विसर्जन है जो नदी की नहर क्षमता से अधिक का होता है बड़े विभिन्न कारणों से आती है बांधों और जलाशयों का निर्माण नदियों और नहरों पर तट बंधुओं को मजबूत करना जलाशयों की धारणा क्षमता को गाली निकाल कर और उन्हें गहरा करके बेहतर बनाना बाढ़ के जल का प्रवर्तन बार मैदान प्रबंधन तकनीकों को अपनाना तलाब जलाशयों टंकियों को बनाना और जल मार्गों के अवरोधों को दूर करके उन्हें बढ़ाना आदि उपायों द्वारा बालों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना संभव है।
जल संचयन के उपाय
जल संरक्षण सूखे से और उसके कारण होने वाली जल की कमी से लड़ने का एक प्रभावी उपाय वर्षा जल संचयन के तरीकों को अपनाना है जल संरक्षण के तरीके हैं-
- छतों से वाहिद जल को एकत्रित करना ।
- जल ग्रहण क्षेत्र से वाहित जल को एकत्रित करना।
- तालाब और जलाशयों में स्थानीय सरिता ओं से बाढ़ के मौसमी जल को एकत्रित करना
- जल भर प्रबंध के द्वारा जल का संरक्षण करना।
जल संसाधनोंं का संरक्षण और प्रबंध
जल निरंतर एक कमी वाला उत्पाद बनता जा रहा है इसकी कमी हमारी आजीविका और कभी-कभी हमारे जीवन के लिए भी खतरा हो सकती है मीठे पानी की कमी के साथ गुणवत्ता भी खराब होती जा रही है 2001 की संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष यूनाइटेड नेशन पापुलेशन फंड की रिपोर्ट के अनुसार अगले 25 वर्षों में विश्व की एक तिहाई जनसंख्या उज्जवल की गंभीर कमी को जलेगी विकासशील देशों की एक समस्या फुल सीरीज का 90% से अधिक थल और जल में अनुपात शार्यत वापस लौट आना है अतः जल संसाधनों का उचित प्रबंधन आवश्यक है की जनसंख्या के अनुपात में जल संसाधनों के उत्पादन नियंत्रण आवंटन और उपयोग के लिए दीर्घकालीन नीतिगत निर्णय लिए जाने चाहिए।
जल संसाधनों के प्रबंधन का अर्थ है- जल के भंडार अथवा स्रोत के जीवन को खतरे में डाले बिना विभिन्न उपयोगों के लिए अच्छी गुणवत्ता के जल की पर्याप्त आपूर्ति प्रदान करना भूजल के भंडारों का पुनर्भरण और अधिकता वाले क्षेत्र से कमी वाले क्षेत्र में आपूर्ति प्रदान करना भी जल प्रबंधन में सम्मिलित है।
अपशिष्ट जल
- घरेलू और नगरपालिका विशिष्ट जल कार्बनिक पोशाकों से समृद्ध होता है यदि इस प्रकार के जल को रोग पैदा करने वाले रोगाणु और विषैले तत्वों से मुक्त कर दिया जाए तो इसका उपयोग खेतों बागी और अन्य वनस्पतियों की सिंचाई के लिए किया जा सकता है।
- रोगाणु और विषाक्त तत्वों को निकालने के लिए अपशिष्ट जल अथवा वाहित मल को टर्न की अथवा तलाब में अनेक दिनों के लिए औपचारिक किया जाता है शहर अथवा जलकुंभी जल प्रदूषण को जैसे पोस्ट को और नाइट्रीटो को साफ कर देती है बायोगैस बनाने के लिए भी इन पदकों का प्रयोग किया जा सकता है।
अनवीकरणीय थल संसाधन
भूमि खनिज महासागरीय संसाधन और नवीकरणीय संसाधन है इन संसाधनों का पुरउत्पादन और विस्तार नहीं किया जा सकता
भूमि संसाधन
भूमि हमारे लिए एक मौलिक संसाधन है भूमि सभी के लिए पादप और जंतुओं के लिए जीवन स्थल है भूमि की जीवन और मनुष्य तथा जंतुओं के विभिन्न क्रियाकलापों को सहारा देने की क्षमता से अधिक उत्पादकता एवं मृदा और चट्टानों दोनों की भाग-1 करने की क्षमता पर निर्भर करती है भूमि पर जनसंख्या वृद्धि के कारण अत्यधिक दबाव है वृक्षों की अंधाधुंध कटाई अथवा वन अप रोपण के परिणाम स्वरूप भू संसाधनों के प्रबंधन से मृदा और भूतों की गुणवत्ता को काफी क्षति हुई है।
मृदा संसाधन
मृदा भूमि की सबसे ऊपर की परत है और यह समूचे जीवन तंत्र को सहारा देती है वनस्पतियों के रूप में भोजन और चारा प्रबंधन करती है और जीवन के लिए अनिवार्य जल का भंडारण करती है इसमें बालू और मृतक के साथ वायु और आद्रता मिश्रित होती है उर्वरता निदा की जल और ऑक्सीजन को धारण करने की क्षमता पर भी निर्भर करती है भारतीय उपमहाद्वीप मैं निम्नलिखित प्रकार की मृदा पाई जाती है-
- पठारो और पूर्वी बिहार, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के निकली भूमि क्षेत्रों में गहरी लाल मृदा पाई जाती है।
- पश्चिमी और मध्य भारत के ढक्कन और मालवा के पठार ओ पर पाई जाने वाली मृदा पर मृतिका का आवरण है ।
- पश्चिमी भारत के मरुस्थली क्षेत्रों की मृदा में कार्बनिक तत्वों की कमी के कारण कम उर्वर होती है।
- हिंद- गंगा के मैदानों में बंगाल उड़ीसा आंध्र प्रदेश तमिलनाडु केरल और गुजरात के डेल्टा नदी मुख्य क्षेत्रों में दमोह मृदा पाई जाती है।
- गंगा, गोदावरी, कृष्णा ,कावेरी के डेल्टा में निचले भागों की भूमि अथवा दलदली भूमि और केरल में घटित खेत की खाद गोबर और पादप सामग्री से भरपूर उर्वर मृदा पाई जाती है।
- पर्वतीय हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली मृदा जो धुसर से हल्के पीले रंग की होती है।
मृदा का निर्माण
मृदा के निर्माण में निम्नलिखित प्रक्रिया से संबंधित होती हैं-
- चट्टानों का क्षरण- भौतिक, रासायनिक और जैविक क्षरण मृदा के निर्माण की प्रक्रिया में सम्मिलित होते हैं।
- भौतिक क्षरण- तापमान में उतार-चढ़ाव से चट्टान की सतह का विस्तार और संकुचन होता है जिससे दरारें और रणधीर बनती है ठंडे मौसम में पत्थरों की दरारों में उपस्थिति जल जाने से इसका विस्तार हो जाता है जिसके बल से चट्टान टूट जाती है।
- रसायनिक क्षरण- जल चट्टानी पदार्थों के एक या अधिक घटकों के खुलने से अथवा उनके साथ अभिक्रिया करके रसायनिक परिवर्तन करता है घुले हुए पदार्थों की उपस्थिति और गर्म तापमान रसायनिक क्षरण को बढ़ावा देते हैं।
- खनिजीकरण और हुम्सीकरण- भौतिक शरण से चट्टान छोटे कणों में टूट जाती है लेकिन यह वास्तविक वृद्धि नहीं होती मृदा के आगे विकास के लिए अर्थात खनिजीकरण और हुम्सीकरण की प्रक्रिया में जैविक कर्मक सम्मिलित होते हैं।
कृषि एवं अतिचराई के कारण हुए परिवर्तन
कृषि और पशु चारी क्रियाओं द्वारा होने वाले पर्यावरण में परिवर्तन परम पारीक खेती और आधुनिक कृषि के कारण हुए परिवर्तन होते हैं परम पारीक कृषि की विशेषताओं में भूमिका विरूपण विनो रोपण के साथ ही मृदा संरचना की हानि मृदा अपरदन और मृदा पोशाकों की कमी आधुनिक कृषि के तरीकों से अत्यधक सिंचाई से लवणीकरण और जल प्लावन दोनों समस्याएं होती है जिससे भू जलस्तर के बढ़ने के साथ ही भूजल संसाधनों का न्यूनीकरण होता है।
भूमि निम्नीकरण
- यह भूमि की गुणवत्ता मे कमी की प्रक्रिया है उनमें वनो रोपण खेती नदियों पर बांध बनाना उद्योगी की करण खनन विकास कार्य जैसे मानव बस्तियों सड़कों राजमार्गों परिवहन तथा संचार के छालों का निर्माण इत्यादि मानवीय क्रियाओं के कारण भूमि निम्नीकरण होता है।
- सूखा बाढ़ भूस्खलन तथा भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी भूमि निम्नीकरण करती है भूमि उपयोग में सदियों से मानव समुदायों में हुए विकास से परिवर्तन हुआ है।
भूमि और मृदा
पर्यावरण निम्नीकरण से ना सिर्फ भूजल करो में कमी आई है बल्कि इससे भूमि निम्नीकरण मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण भी हुआ है भारत में 30 से 50% के बीच निजी और सार्वजनिक भूमि का आकलन परिस्थिति के रूप से इन स्तरों तक दिल्ली कृत के रूप में किया गया है और इसे समानता वेस्टलैंड बंजर भूमि कहा जाता है वेस्टलैंड विकास में अनेक मृदा और जल प्रबंधन तरीकों को अपनाना उपयुक्त पादप प्रजाति को उगाना उनका संरक्षण करना और हितों को साझा करना सम्मिलित है।
भूमि उपयोग योजना और प्रबंधन
- भूमि और नवीकरणीय संसाधन है और यह जलवायु परिवर्तन तथा भौतिक प्रकरणों से अत्यधिक प्रभावित होती है बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन के लिए और खेती के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता है अतः उर्वर कृषि भूमि का गैर कृषि कार्य में कम से कम होना चाहिए पहाड़ी क्षेत्रों को जहां तक संभव हो सके वनाच्छादित रखना चाहिए क्योंकि वह इंधन, चारे और इमारती लकड़ी के संसाधन का कार्य करते हैं, पशुपालन के लिए स्थान प्रदान करते हैं और भूजल को बढ़ाने में सहायक होते हैं
- मृदा प्रबंधन मृदा को बढ़ाने में करोड़ों वर्ष लगते हैं और इसलिए मृदा का उचित प्रबंधन बेहद आवश्यक है मृदा का प्रबंधन मृदा अपरदन को कम करके और मृदा की उत्पादकता को पुनः प्राप्त करके किया जा सकता है।
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