BPSC-132 GENDER

                                  जेन्डर 

प्रस्तावना  

  • समाज में लोगो की पहचान भाषा ,धर्म ,जाति  ,लिंग ,जेंडर ,आदिवासी इत्यादि के आधार पर की जाती है।
  • लिंग का संबंध किसी व्यक्ति की जैविक पहचान है , जबकि जेंडर का संबंध किसी समाज में समाजिक ,आर्थिक ,राजनितिक एवं अन्य कारको का निर्धारण है। 
  • जिस समाज में पुरुष महिलाओ से अधिक ताकत रखते है उसे पुरुष -प्रधान या पिरतसत्तात्मक समाज कहते है। 
  • जहाँ  महिलाये अधिक ताकत रखती है उसे मातृसत्तात्मक समाज कहते है। 
  • केट मिलेट ने अपनी पुस्तक लिंगीय राजनीती (1970 )में यह समझाने  की कोशिश की है की किस प्रकार शक्ति एवं पितृसत्ता जेंडर के संबंधो को निर्धारित करते है। 
  • केट मिलेट पर नारीवादी विचारक सिमोन दे बोउवर  की किताब ,"द  सेकंड लिंग "(1949 )का प्रभाव अधिक पड़ा था। 

जेंडर एवं मुददे 

  • 1980 से महिला आंदोलन बड़ी तेज गति से आगे बढ़ा  जिसने उनके मुद्दों को उठाया। लेकिन ये आंदोलन सभी जगह समान रूप से नहीं हुए। 
  • जेंडर की स्थिति महिलाओं ,पुरुषो एवं ट्रांसजेंडर की स्थिति पर निर्धारित होती है। केवल महिलाये ही निम्न स्थिति में होता है। 
  • उनके उत्थान एवं सशकितकरण के लिए कई चुनौतियां  सामने होते है। 
  • कई प्रकार के जेंडर आधारित भेदभावो पर कानूनन पाबंदी लगा दी गयी है ,तथा समाज का कोई गर्व इनको मान्यता नहीं देता है। बावजूद इसके , कुछ भेदभाव अभी भी जारी है। 
  • जेंडर आधारित भेदभाव के मुख्य उदहारण  है :- बलत्कार ,घरेलू हिंसा ,कार्य स्थल पर भेदभाव तथा परिवार में भेदभाव ,दहेज ,इत्यादि। 


जेंडर एवं विकास 

  • जेंडर और विकास एक -दूसरे के साथ जुड़े हुए है। क्योकि जेंडर का निर्धारण समाजिक , राजनितिक ,और आर्थिक परिस्थियों के आदर पर किया जाता है , विकास इन परिस्थितियों में सुधार  लाने  में मदद क्र सकता है।  यदि महिला या ट्रांसजेंडर को सही शिक्षा ,पोषण एवं स्वास्थ्य सुविधाए  मिल जाये तो ये उनके सशकितकरण में योगदान दे सकते है। 
  • अमर्त्य सेन ने "विकास एवं स्वत्रंत्रता " (2000 ) में यह दलील दे की विकास का मुख्य आदर स्वास्थ्य ,शिक्षा है जो की मनुष्य को स्वतंत्रता प्रदान करने में सहायक है। 

जेंडर और आंदोलन  

ऐतिहासिक पृष्ठ्भूमि 

  • भारत में महिला  शुरुआत स्वतंत्रता प्राप्ति  पूर्व हुई थी। 
  • कुछ समाज सुधारको ने महिलाओ के अधिकार एवं उनका सम्मान दिलाने के लिए समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने में बड़ी भूमिका निभाई। 
  • 19 वि सदी के प्रारम्भिक दशकों में राजा राम मोहन रॉय एवं विद्यासागर ने सती  प्रथा के विरुद्धा आवाज उठाई। 
  • 1817 में , ांडित मुर्तजंय  विद्यालंकार ने यह घोषणा कि की  सती  को शास्त्रों में मान्यता नहीं मिली है। इसी प्रकार 1850 में पंडित ईश्वर  चाँद विद्यासागर ने यह दलील दी की शास्त्र कभी भी विधवा का पुनर्विवाह का विरोधी नही है। 
  • एक साल बाद गवर्नर विलियम्म बैन्टिक  ने बंगाल प्रान्त में स्ति प्रथा पर पाबंदी लगा दी। 
  • 11 वर्ष बाद भारत के अन्य भागो में भी सती  प्रथा पर पाबंदी लगा एवं 1929 में सती  प्रथा निरोधक कानून  भी पारित किया गया। 
  • विधवा विवाह की रोकथाम के विरुद्ध भी 1871  में मद्रास में विधवा पुनर्विवाह संघ का गठन  किया गया। 
  • स्वामी दयानन्द सरस्वती ने बाहुविवाह एवं बाल  विवाह का भी विरोध किया था। 
  • उन्होंने लड़कियों एवं लड़को की शादी की आयु बढ़ाकर 16 वर्ष एवं 21 वर्ष क्र दी थी।  
  • कांग्रेस द्वारा समर्थित महिला नेताओ ने महिलाओ के लिए विधायी निकायों में समान मताधिकार एवं प्रतिनिधित्व की मांग की।  
  • अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना भी 1920 में की गयी जिसने महिलाओं  शिक्षा का प्रसार किया। 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का समय 

  • जेंडर आधारित भेदभाव पर 1975 -85 के भींच सामाजिक विद्वानो में बहुत शोध हुआ ,यह  अंतर्राष्ट्र्य महिला दशक के रुप में भी जाना जाता है। 
  • कई संगठन कार्यकर्ता ,एवं  विद्वान् , बुद्विजीवी  एवं नेता जेंडर आधारित भेदभाव एवं असमानताओं को समाप्त करने का प्रयास क्र रहे है। 
  • वास्तव में , जेंडर आधारित भेदभाव को समाप्त करने एवं महिलाओं के सम्मान के लिए महिला आंदोलन बह सक्रिय रूप से आगे आ रहे है , जिसमे एल. जी. बी. टी. क्यू.  आंदोलन भी प्रमुख है। 
  • वैचारिक आदर पर जेल ओमवेट ने महिला आंदोलन को दो भागो में बाँटा  है।  
  1. महिला समानता आंदोलन 
  2. महिला मुक्ति आंदोलन 
  • महिला समानता आंदोलन का लक्ष्य पितृसत्तात्मक असमानता को  ख़त्म करना है। ये प्रत्यक्ष रूप से परिवार एवं सामाजिक तथा आर्थिक ढांचे को निशाना नहीं बनातेहै। 
  • महिला मुक्ति आंदोलन प्रत्यक्ष  से सामंती वर्गीकरण को चुनौती देते  है एवं लिंगआधारित श्रम  विभाजन को भी चुनौती देते है। 

एल. जी. बी. टी. क्यू.  या ट्रांसजेंडर 

  • जेंडर आधारति आंदोलन नवीन सामाजिक आनदोलनो  का हिस्सा है।  नवीन सामाजिक आंदोलन वे  आंदोलन  है जो 1980 के पहले आंदोलनों से अलग है , 
  • ये वे आंदोलन है जो सामाजिक समूहों या वर्गो को सामूहिक तौर पर आंदोलनो में शामिल करते है।  
  • इन समूहों में ट्रांस्जेंडर भी शामिल है।  उन्हें एल. जी. बी. टी.क्यू. के रूप में भी जानते है। 
  • 2016 , के अनुसार  ट्रांसजेंडर वह  व्यक्ति है जो :-
  1. न तो पूरी तरह नारी  पुरुष है। 
  2. पुरुष एवं नारी का जोड़ है। 
  3. न तो  नारी है न ही पुरुष। है 
  • ट्रांजेंडर  के साथ उनकी जेंडर स्थिति की वजह के भेदभाव होता है।  उनेह रोजगार प्राप्त करने में सामाजिक भेदभाव होता है। 
  • एल. जी. बी. टी.क्यू. समूह भारत में अपने आप को संगठित के रहे है एवं कानून बनाने वालो पर दवाब डालकर उनके खिलाफ हो रहे भेदभाव के खिलाफ कानून बनाने की मांग के रहे है।  उनकी आत्म पहचान  अधिकार उनकी प्रमुख मांग है। उनके आंदोलन के जवाब में , त्रिची शिवा ने राज्य सभा में दिसम्बर 12 ,2014 को एक प्राइवेट विधेयक प्रस्तुत किया था। 
  • राजयसभा में 24 अप्रैल 2015 को यह विधेयक सर्वसम्मित से पारित गए। 
  • 6 सितम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक को वैध घोषित क्र दिया।  ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की रक्षा विधेयक ,2019 ) लोक 5 अगस्त 2019 को पारित हो गया। 
  • यह विधेयक ट्रांसजेंडरो के विरुद्ध हो रहे भेदभाव पर रोकथाम लगाता है ,
  • यह बिल ट्रांसजेंडर की आतम -पहचान के अधिकार  सुरक्षित रखता है। 
  • यह ट्रांसजेंडर पर निर्भर करता है की वह  किस प्रकार की पहचान रखना चाहता है ,अर्थात पुरुष ,महिला या ट्रांसजेंडर। 
  • यह बिल ट्रांसजेंडर के कल्याण के लिए भी कुछ कदम उठाने का सरकार को सुझाव देता है।  
































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