नागरिक समाज और राज्य
राज्य के सिद्धांत
- राज्य की संकल्पना राजनीतिक सिद्धांत में प्रमुख स्थान रखती है
- प्लेटो और अरस्तू की दृष्टि और विचार में राज्य प्रकृति, आवश्यक और नैतिक संस्था था ।
- राज्य अथवा नगर राजनीतिक आचरण और अच्छे जीवन का सर्वोत्तम माना गया था
- समकालीन परिभाषा की उत्पत्ति सिद्धांत विद्वान निकोलो मैकियावेली से है जो अपने विचार व्यक्त करते हुए इसकी परिभाषा प्रस्तुत करते हैं कि शक्ति जो कि मनुष्य पर प्राधिकृत है।
- इसी परिभाषा को स्वीकार करते हुए मैक्स वेबर द्वारा भी राज्य का स्पष्टीकरण करते हुए इसकी परिभाषा प्रस्तुत की गई है जो बहुत ही प्रसिद्ध और स्वीकृत भी है।
- वेबर राज्य की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि मानव समुदाय जोगी (सफलतापूर्वक ) दिए गए भुवा गया प्रदेश के अंदर भौतिक बल का विविधता प्रयोग करने के एक अधिकार का दावा करता है।
पुरातन
प्लेटो के अनुसार
- प्लेटो ने अपनी पूरी शोध कार्य द्वारा आदर्श राज्य की स्थापना की है ।
- उनके अनुसार जिस राज्य पर दर्शनिक शासक शासन करेगा, व राज्य आदर्श होगा या राज्य किसी दिव्य संस्थान से कम नहीं होगा, जिसका सब अनुकरण करना चाहेंगे।
- उन्होंने अपने आदर्श राज्य का वर्णन कालातीत और अपरिवर्तनीय सिद्धांत पर आधारित बताया है। उन्होंने सुझाव दिया है कि एक आदर्श राज्य की मौजूदगी बुराइयों को समाप्त करके बीमा राजनीति में सुधार कर सकेगी और उसको एक अति सुंदर रूप प्रदान कर सकेगी ।
- प्लेटो का विश्वास था कि आदर्श राज्य के संचालन के लिए तीन अलग-अलग वर्गों के लिए लोग सम्मिलित होंगे जैसे कि शासक, सेना और लोग या नागरिक ।इसलिए आदर्श राज्य की चार प्रमुख योग्यताएं होंगी बुद्धिमता ,साहस , अनुशासन तथा न्याय।
- प्लेटो इस बात पर विशेष जोर देते थे कि एक अच्छा राजनीतिक समुदाय समान रूप से लोगों की भलाई के लिए अपने सभी नागरिकों को समान रूप से उनका कल्याण व हितलाभ करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहेगा।
- इस प्रकार के समाज की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि समुदाय की भावना दृढ़ होंगी किस समुदाय के लोग सदस्य और भागीदार हैं।
- दर्शन का शासक एक अच्छे प्रकार का शासक होगा क्योंकि वह सत्ता हथियाने और पैसे बनाने की तरफ सबसे कम ध्यान देगा।
अरस्तु के अनुसार
- अरस्तु ने राज्य को एक समुदाय के रूप में परिभाषित किया है ,राज्य के अस्तित्व का लक्ष्य एक व्यक्ति की अधिकतम भलाई होना चाहिए ।
- अरस्तु ने राज्य के विकास की तीन अवस्थाओं की पहचान की है:
- प्रथम दो मूल प्रवृत्तियां है जो कि लोगों को एक साथ लाने में उपकरण अथवा उपाय का काम करते थे प्रजनन मूल प्रवृत्तियां है जो कि पुरुष और महिलाओं को संगठित किया एकत्रित करता है और दूसरी प्रगति हैं स्वयं संरक्षण।
- परिवार राज्य की रचना में प्रथम अवस्था है ।
- द्वितीय अवस्था थी जब बहुत सारे परिवार मिलकर या संगठित होते हैं और इस संस्था का उद्देश्य दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति से अधिक कार्य करने का होता है।
- तृतीय अवस्था को इस तरह से परिभाषित किया गया है कि जब अनेक गांव मिलकर एक संपूर्ण समुदाय के रूप में संगठित हो जाते हैं ',व्यापक रूप से लगभग आत्मनिर्भर होते हैं तब इसके परिणाम स्वरूप राज्य की स्थापना हो जाती है या राज्य का उद्गम होता है
- अरस्तु का मानना है कि राज्य एक प्रकृतिक समाज है मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य अच्छा जीवन जो कि केवल राज्य में ही प्राप्त हो सकता है ।
- अरस्तु के अनुसार राज्य राजनीतिक संघ का उच्चतम स्वरूप है क्योंकि वह सामाजिक विकास के शिखर का प्रतिनिधित्व करता है।
- अरस्तु और प्लेटो दोनों के लिए राज्य और इसके कानून किसी परंपरा के परिणाम से अधिक महत्व रखते थे।
सिसरो केे अनुसार
- सिसरो के अनुसार यह एक राष्ट्रीय मंडल है।
- उसके लिए, राष्ट्रीय मंडल लोगों का एक संयोजन है जिसके असंख्य सदस्य एकता समझौता करते हुए न्याय का सम्मान करते हुए, तथा सामान्य अच्छे कार्यों के लिए परस्पर भागीदारी करते हैं।
- उन्होंने राष्ट्रमंडल की रचना के लिए तीन कारणों की पहचान की है ।ऐसी संस्था का प्रथम कारण यह है कि मनुष्य एक कल वैराग्य और सामाजिक प्राणी नहीं है बल्कि वह ऐसी प्रकृति के साथ पैदा होता है कि या उसके पास हर प्रकार की समृद्धि भी है ,तो भी वह अपने साथियों से अलग नहीं होना चाहेगा ।
- दूसरा उसका राज्य एक अनुबंध पर आधारित है किया सबा निहित को साझा करेगा।
- तृतीय समूह के सभी सदस्यों को इस बात पर एक दूसरे से सहमत होना चाहिए कि राष्ट्रीय मंडल में कौन से कानून का शासन होगा।
- सिसरो सरकार के तीन प्रकारों का वर्णन करता है, सरकार - राजसी सत्ता ,कुलीन तंत्र और लोकतंत्र।
- परंतु सरकार के प्रतीक स्वरूप में भ्रष्टाचार तथा स्थिरता के कीटाणु हैं ।जो सरकार को गिराने का काम करते हैं ।
- सिरोसा सरकार के गणतंत्र स्वरूप को प्राथमिकता देते हैं जो की निगरानी और संतुलन द्वारा स्थाई तथा राजनीतिक व्यवस्था का भला करती है।
उदार वैैयक्तक
- राज्य के सिद्धांत पर मध्यकालीन समय में रोमन चर्च की उक्ति का प्रभाव रहा है ।
- पांचवीं शताब्दी में रोमन साम्राज्य का पतन हो गया और इसके बाद पश्चिमी में एक भी शक्तिशाली धर्मनिरपेक्ष सरकार नहीं थी ।
- रूम में शासन कैथोलिक चर्च के पादरियों पर केंद्रित हो गया था अर्थात वहां पर चर्च का शासन प्रमुख था।
- 15वीं शताब्दी में आधुनिक पश्चिमी यूरोप की शुरुआत के साथ ही राज्य का विचार पर अत्यधिक महत्वपूर्ण बन गया और अनेक विद्वानों द्वारा बहुत सारी परिभाषा दी गई इनमें सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण सिद्धांत वादी निकोलो मैकियावेली थे
- प्लेटो और अरस्तू से लेकर मध्यकालीन समय के सभी विद्वान ,इस केंद्रीय प्रश्न पर ध्यान लगाए हुए थे कि राज्य का लक्ष्य क्या है ।उनका मानना था कि राज्य की शक्ति नैतिक लक्ष्य की प्राप्ति का एक साधन है ।
- परंतु मैकियावेल्ली ने अपनी एक अलग विचारधारा बनाई उनका मानना था कि राज्य की शक्ति ही राज्य का साधन है अर्थात प्रत्येक राज्य को अपनी शक्ति का अधिकतम स्तर तक बढ़ाना चाहिए ।
- उनके सिद्धांत राज्य का तर्क के अनुसार राज्य को अपने लोगों का भला करने से पहले खुद को संरक्षित कर लेना चाहिए।
- मैकियावेली का मानना है कि राज्य मानव संस्था का सबसे उत्तम स्वरूप है राज्य की एकता की तरह से पूजा करनी चाहिए चाहे व्यक्ति को अपना बलिदानी क्यों ना देना पडे ।
- मैकियावेली के राज्य का स्वरूप धर्मनिरपेक्ष और उसका चर्च से कोई संबंध नहीं है इनका मानना था कि अच्छे कानून धर्म तथा नागरिकों की सेना एक शक्तिशाली व स्थाई राज्य की स्थापना में मदद करते हैं ।
- राज्य के इस विचार पर सिद्धांत कार्यों के बीच मतभेद है होब्बस का मानना है कि प्राकृतिक स्थिति की विशेषता यह है कि "इसमें हर व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध लड़ाई करता है" ।
- होब्बस के अनुसार ,प्राकृतिक स्थिति में अस्तित्व की विशेषताएं हैं "अकेला, गरीब, बुरा पाशविक तथा अल्पकालीन"।
- प्राकृतिक स्थिति मैं सिर्फ प्राकृतिक कानून होते हैं जिनका निर्माण लोग मिलजुलकर नहीं करते बल्कि यह आत्मा शरण पर आधारित सिद्धांत है ।
- प्रकृति के प्रथम कानून के बारे में होब्बस कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपनी आशा अनुरूप शांति बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास करें और जब वह इसे प्राप्त नहीं कर सकता है तो इस स्थिति में उस से युद्ध करने के लिए सभी तरीकों का प्रयोग करना चाहिए ।
- होब्बस के अनुसार, संप्रभु की सत्ता डीएम कुछ है और उसकी मर्जी ही कानून है ।
- जॉन लॉक का कहना है कि प्राकृतिक स्थिति का मतलब सरकार भी ही स्थिति किंतु आप की कर्तव्य भी विहीनता नहीं ।
- होब्बस इसके विपरीत, लोक विश्वास कहते हैं कि व्यक्ति प्रकृतिक रुप से संपन्न है और यह अधिकार उसको जन्मजात मिले हुए हैं और प्राकृतिक स्थिति शांतिपूर्वक भी हो सकती है।
- व्यक्ति राष्ट्रमंडल का निर्माण करने के लिए सहमति देते हैं क्योंकि वह एक ऐसी निष्पक्ष शक्ति की स्थापना करना चाहते हैं कि जो उनके झगड़े सुलझाएं और उनकी क्षति का निवारण करें ।
- रूसो के दृष्टिकोण में प्राकृतिक स्थिति नैतिक रूप से तटस्थ हैं और शांतिपूर्ण स्थिति होती है जिसमें एकाकी व्यक्ति अपनी बुनियादी इच्छाओं के अनुसार कार्य करते हैं और साथ ही आत्मरक्षा की प्राकृतिक इच्छा के आधार पर भी ।
- रूसो ने इसको अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ,डिस्कोर्स ऑफ द ओरिजिन ऑफ इनिक्वालिटी (1775) मे कहा है कि व्यक्ति प्रकृतिक स्थिति को सभ्य होने के बाद छोड़ देते हैं - इसका मतलब है कि वे एक - दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं ।
- हेगेल के लिए "राज्य का अर्थ पृथ्वी पर ईश्वर का आगमन है ।"वे कहते हैं कि यह दिव्य शक्ति का पृथ्वी पर अवतरण है ।
- राज्य नैतिक जीवन का तीसरा पल है ,यह परिवार और नागरिक समाज को चलाने वाले सिद्धांतों का संश्लेषण है ।
- विशेषकर वह अपने समय के राष्ट्रीय राज में वह दो अवधारणाओं का मिलन देखते हैं - राज्य की नैतिक समुदाय रूपी संकल्पना जो पुराने समय में भी तथा राज्य की समकालीन संकल्पना जो स्वतंत्रता तथा व्यक्तिवाद का समर्थन करती है।
- उन्होंने राज्य के विचार को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया है-
- राज्य की तत्काल वास्तविकता, एक स्वयं निर्भर प्राणी के रूप में यह संवैधानिक कानून
- अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत राज्य का दूसरे राज्यों के साथ संबंध
- दिमाग या आत्मा का सर्व भौमिक विचार जो विश्व इतिहास की प्रक्रिया मैं अपने आपको अस्तित्व में लाता है ।
- राज्य पूर्ण रूप से तर्कसंगत था तथा इतिहास के दौरान स्वयं को स्थापित करने के लिए इसके पास मौलिक इच्छाशक्ति की तथा इस वजह से राज्य अविनाशी है ।
- हेगेल का मानना है कि राज्य अपने आप में ही एक ध्येय है यह एक दिमाग है जो इतिहास के द्वारा स्वयं को वास्तविकता में लाता है।
मार्क्सवादी
- राज्य का मार्क्सवादी सिद्धांत राजनीति विज्ञान के सबसे प्रमुख सिद्धांतों में से एक है ।
- मार्क्सवादी विचार उदार राज्य की मूल संकल्पना को चुनौती देता है, वह कहते हैं कि जब तक उधर राज्य का उन्मूलन नहीं होगा तब तक आम आदमी का उद्धार होना कभी भी संभव नहीं होगा।
- कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक अपनी पुस्तक "कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो" में राज्य की परिभाषा देते हुए लिखते हैं कि "राजनीतिक शक्ति , ठीक से कहा जाए तो यह एक संगठित वर्ग की सकता है जो दूसरे वर्ग ,को दबाती व दमन करती है ।
- नव मार्क्सवादी इस विचार से पूरी तरह से सहमत नहीं है कि राज्य एक विशेष वर्ग का साधन है या औजार है। वह तर्क देते हैं कि यह विचार विशेषकर रूस के मौलिक समाज में सच हो सकता है, परंतु वर्तमान समय के लिए इसे सामान्य रूप से ठीक नहीं माना जा सकता है।
- वह यह भी तर्क देते हैं कि राज्य का धीरे-धीरे समाप्त होने की मार्ग द्वारा की गई घोषणा अब धूमिल हो चुकी है ।
- रेल्फ मिलिबैंड ने कहा है कि राज्य के संबंध में एक प्रारंभिक समस्या है जिसके समाधान की नितांत आवश्यकता है ,यदि आप इसकी प्राकृतिक तथा भूमिका पर चर्चा करना चाहते हैं
- मिलिबैंड कहते हैं कि राज्य की वास्तविक प्रकृति को समझने के लिए इससे संबंधित सभी संस्थाओं का अध्ययन करना अनिवार्य है जो कि पूंजीपति राज्य का हिस्सा है वे यह भी कहते हैं । वे यह भी कहते हैं कि ये संस्थाएं राज्य के विभिन्न तत्व है।
नागरिक समाज की संकल्पना
- नागरिक समाज का विचार राजनीतिक सिद्धांत में काफी महत्वपूर्ण है नागरिक समाज का विचार बहुत ही पुराना है किंतु यह पिछले कुछ दशकों से बहुत ही महत्वपूर्ण बन कर उभरा है क्योंकि संपूर्ण विश्व में राजनीतिक स्थितियों का भरपूर विकास हुआ है विशेषकर पूर्वी यूरोप में भूतपूर्व कम्युनिस्ट देशों के पतन के बाद यह स्थिति सामने आई है।
- जॉन लॉक थॉमस पेन से लेकर हेगेल तक के राजनीतिक सिद्धांतों ने नागरिक समाज की अवधारणा का पोषण किया है। उनके अनुसार ,नागरिक समाज वह क्षेत्र है, जो राज्य के समांतर है पर इससे अलग है।
- अमेरिका और फ्रांस की क्रांति द्वारा दिए गए स्वतंत्रता के विचार ने भी इस पर असर डाला ।नागरिक समाज के विचार को 19वीं शताब्दी के मध्य में आघात लगा और इसका स्तर दूसरे स्थान पर पहुंच गया था क्योंकि राजनीतिक सिद्धांत कारों का विशेष ध्यान उद्योग क्रांति के परिणाम स्वरूप जो राजनीतिक और सामाजिक बदलाव आए उन पर केंद्रित हो गया था ।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मार्क्सवादी लेखक व सिद्धांत कर एंटोनियो ग्रामस्क ने अपने कार्यों में इसका इस्तेमाल किया ।उनके अनुसार नागरिक समाज स्वतंत्र राजनीतिक गतिविधि का विशेष केंद्र है और अत्याचारी शासन के विरुद्ध महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
- होब्बस का मानना है कि राज्य की सबसे बड़ी भूमिका यह है कि वह अपने नागरिकों को शांति और उनके स्वयं के संरक्षण की गारंटी प्रदान करता है ।
- होब्बस के अनुसार ,यदि बहुत ही महत्वपूर्ण तर्क है कि व्यक्तियों के बीच अनुबंध के माध्यम में संस्थाओं का निर्माण हुआ और इन संस्थाओं के द्वारा सरकार की स्थापना की गई परंतु संप्रभु मूल अनुबंध का हिस्सा नहीं है ।
- लॉक का मानना है कि सामाजिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू व्यक्ति की स्वतंत्रता है। जॉन लॉक अपनी पुस्तक "दि सेकंड ट्रीटाइज ऑफ गवर्नमेंट" में कहते हैं कि संपत्ति के संरक्षण की जरूरत के कारण ही नागरिक समाज के लोग संगठित होते हैं और सरकार बनाने का कार्य करते हैं।
- फग्यूरसन के अनुसार नागरिक समाज शिष्टाचार की स्थिति है जिसका अर्थ स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि राजनीतिक समाज में नागरिक भाव की गिरावट हुई है, जहां पर सफल वेबसाइट वर्ग प्रशासनिक राज्य का गुलाम बन जाता है ।
- स्मिथ का मानना है कि नागरिक समाज की मध्यस्थता निजी संपत्ति ,अनुबंध और श्रम के मुक्त विनियम पर आधारित सामाजिक क्रम द्वारा की जाती है तथा राज्य का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वह इस विशेष प्रकार की व्यवस्था को सुरक्षित करें।
- हेगेल ने राज्य और नागरिक समाज के बीच संबंधों की और आगे स्पष्ट किया है ।
- उनके अनुसार नागरिक समाज की रचना करना आधुनिक विश्व की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।
- इनके अनुसार ,नागरिक समाज विभिन्न तीन चीजों को प्रस्तुत करता है जो अलग-अलग होते हुए भी एक -दूसरे से परस्पर संबंध है :
- आवश्यकता ओं की व्यवस्था
- न्याय का प्रशासन
- पुलिस और सहयोग की आवश्यकता है।
- हेगेल के अनुसार राजनीतिक समाज की तुलना में नागरिक समाज को जो नागरिक बनाता है, वह विभिन्न वर्गों और संपदा में इसका विभाजन ,जिनका अपना अलग दृष्टिकोण, रुचि तथा जीने का तरीका है ।
- ये संपदाएँ- एक वर्ग व्यापारी और राज्य के कार्यकर्ताओं का सर्व भौमिक वर्ग यह परिवार तथा राज्य के बीच मध्यस्थ करते हैं ।
- हेगेन के विपरीत कार्ल मार्क्स ने नागरिक समाज की संकल्पना के कड़े शब्दों में आलोचना की है ।
- उनके अनुसार राज्य पूंजीपति वर्ग के राजनीतिक एकत्रीकरण का होना है जैसे कि नागरिक समाज में भी था ।
- मार्क्स के अनुसार नागरिक समाज की रचना पूंजीपति समाज ने की है इसलिए यह पूंजीपति समाज के हितों का प्रतिनिधि करने के अलावा और कुछ नहीं है।
- ग्रामसी के अनुसार, नागरिक समाज की संकल्पना इस विचार पर आधारित है कि राज्य की शक्तियों का विविध प्रयोग करने के लिए एक संघर्ष करने का स्थान है ।
- वे तर्क देते हैं कि नागरिक समाज ना तो एक प्राकृतिक स्थिति है और ना ही यह उद्योग इक समाज का एक परिणाम परंतु या नेतृत्व करने का कार्य है जो कि राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों प्रकार का हो सकता है ।
- ग्रामसी के अनुसार ,कोई भी राज्य चाहे उसमें किसी भी प्रकार की सरकार हो यदि अपने नागरिकों को नागरिक और राजनीतिक अधिकार नहीं देता है तो उसे आशा करनी चाहिए कि नागरिक और प्रतिनिधित्व की संरचनाओं द्वारा बाहर छोड़े गए लोगों के असंतोष को विस्फोट होगा।
- सारांश में यह कह सकते हैं कि अनेक राजनीतिक सिद्धांत कारों ने नागरिक समाज के संबंध में अपनी अपनी परिभाषाएं प्रस्तुत की है ।
- हेगेल के लिए नागरिक समाज राज्य के निर्माण के लिए एक आवश्यक अवस्था है, मार्क्स के लिए नागरिक समाज राज्य की शक्ति का एक स्रोत व साधन है ,तथा ग्राम नागरिक समाज को वह स्थान बताते हैं जहां पर राज्य प्रभावी वर्गों के साथ मिलकर नेतृत्व का निर्माण करता है।
राज्य और नागरिक समाज के बिच संबंध
- नागरिक समाज और राज्य यद्यपि एक -दूसरे से अलग यही , ये कभी भी एक - दूसरे के साथ संबंधो में पूणतय स्वायत्त नहीं रहे है।
- राज्य और नागरिक समाज के लिए डेविट हेल्ड तर्क देते है की यह एक- दूसरे के साथ कार्य करने की आवश्यक शर्त है।
- प्रायः एक राज्य को समाज के राजनीतिक रूप से संगठित होने के कारण वर्णित करते हैं ।
- समाज मानव जाति की एक संस्था है जिसमें उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है ।
- राजनीतिक संस्था की विशेष जरूरत को राज्य पूरा करता है उन पर अनिवार्य कानून लागू करता है तथा उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है ।
- राज्य की पहचान के संगठित औपचारिक संरचना जिसमें शक्ति के विभिन्न संगठन सम्मिलित होते हैं ,विशेषकर विधानपालिका ,कार्यपालिका और न्यायपालिका है ।
- दूसरी और, नागरिक समाज सहित नागरिकों के खुले संगठन होते हैं जो जनहित के कार्यों को पूरा करने का प्रयास करते हैं।
- राज्य के पास सर्वोच्च कानून सत्ता संप्रभुता है जबकि नागरिक समाज के पास औपचारिक या कानून सकता नहीं है ।
- राज्य के पास अपने नागरिकों और राज्य क्षेत्रों पर अनिवार्य अधिकार क्षेत्र की शक्ति है, जबकि नागरिक समाज के पास इस तरह का कोई अधिकार नहीं होता है।
- राज्य पर कानून व्यवस्था और आंतरिक और बाहरी शक्तियों से अपने नागरिकों की सुरक्षा करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है ।
- सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि राज्य का अस्तित्व अधिकतर सर्वभोमिक है किसी प्रकार की राजनीतिक संस्था हर आधुनिक समाजों में पाई जाती है।
- अनेक विभिनताओ के बावजूद इस बात का खंडन नहीं किया जा सकता है कि एक सक्रिय विविध नागरिक समाज पर्याय लोकतंत्र को उन्नत बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
- यह राज्य को अनुशासित कर सकता है ,ताकि नागरिकों के हितों को गंभीरता से लें और अधिक नागरिक तथा राजनीतिक भागीदारी को पोषित करता है।
- संबंधों की धारणा एक का लाभ दूसरे की हानि ,सिद्धांत पर आधारित है यानी शक्तिशाली राज्य का मतलब कमजोर नागरिक समाज ।
- राज्य और नागरिक समाज के बीच संबंध पर स्थित है यह समग्र प्राकृतिक का होना चाहिए ,जिसमें एक- दूसरे के हित के लिए काम करें।
- यह राज्य का उत्तर दायित्व है कि वह एक मंच और एक संरचना उपलब्ध कराएं ,जिसके अंतर्गत नागरिक समाज अपने कार्यों को कर सके।
- नागरिक समाज की प्रगति राज्य की प्रगति पर निर्भर करती है।
- राज्य और नागरिक समाज की संकल्पना का विकास समान रूप से एक साथ हुआ है।
- नागरिक समाज के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती और इसी तरह से ,कोई भी नागरिक समाज राज्य के बिना वैधता हासिल नहीं कर सकता।
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