BPSC-131 ADHIKAR

         अधिकार  

अधिकार : अर्थ और प्रकृति 

  • व्यक्ति और राज्य की बीच  संबंधन प्र्त्येक  राजनितिक सिद्धांत के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न रहा है जैसा की इन दोनों में से अधिक महत्वपूर्ण  है और किसके ऊपर , किसका , क्या ऋण है। 
  • प्लेटो , यह विश्वास करते है की राज्य अकेले ही न्याय की स्थापना कर सकता है  और व्यक्ति का कार्य है की वह  अपनी क्षमता और योग्यता के अनुरूप अपने कर्त्वयों का निर्वहन करे। 
  • ऐसे दार्शनिको को हम आदर्शवादी कहते है। 
  • जॉन लॉक  , का मानना  है की राज्य साध्य की प्रप्ति  का साधन मात्रा है , और व्यक्ति साध्य है ; इसका अर्थ है की व्यक्ति के अधिकार अनुलंघनीय और अबाध्य  है। 
  • व्यक्तिगत  अधिकारों का सिद्धांत आधुनिक युग की परिघटना है , जिसका प्रारम्भ 15 वी -16 वी   शताब्दी में यूरोपीय देशो में हुआ।  
  • अधिकार व्यक्ति से संबधित होते है , इस कारण ये राज्य के पास नहीं होते। अधिकार व्यक्तियों के अधिकार है इस कारण व्यक्तियों के अधिकार है इस कारण व्यक्तियों के विकास के लिए ये अनिवार्य परिस्थितियां  है।

 

आधिकारो का अर्थ 

  • आधिकार दावे है , सामाजिक दावे व्यक्ति के व्यक्तित्व - विकास के लिए आवश्यक होते है। 
  • अधिकार और विशेषाधिकार में अंतर् होता है ; अधिकार वे दावे होते है जो वैसे ही हमे  हम पर ; जबकि विशेषाधिकार हमे दूसरो को नकार कर  मिलते है।  
  • अधिकार इस संदर्भ में सार्वभौमिक है की ये सभी को सुनिश्चित किये जाते है , जबकि  विशेषाधिकार सारभौमिक नहीं होते है  और कुछ निश्चित लोगो को ही दिए  जाते है , अधिकार व्यक्ति को हक के रूप में प्राप्त होते है ; जबकि  विशेषाधिकार संरक्षण के रूप में प्राप्त होते है.
  • अधिकार की उतप्ति  एक लोकतन्त्रतिक  समाज में होती है ; जबकि  विशेषाधिकार अलोकतांत्रिक समाज के लक्षण है। 
  • जैफ़रसन ने उद्घोषणा की थी की व्यक्ति  अपने निर्माता द्वारा कुछ अनुलंघनीय आधिकारो से प्रदत्त  है और यह दर्शाता है की अधिकार प्राकृतिक  होते है। 
  • होलांद परिभाषित करते है की समाज के ताकत से दूसरे के कार्यो को प्रभावित करने की एक व्यक्ति की क्षमता अधिकार कहलाती है। 
  • इसका आशय  यह है की होलांद अधिकार को सिर्फ सामाजिक दावे के रूप में परिभाषित  करते है। 
  • वाइल्ड ने अधिकारो की अपनी परिभाषा में खा है की अधिकार सामाजिक दावों के पक्ष को अनौपचारिक उपचार प्रदान करते है ; जब वे , ''  अधिकार , कुछ निश्चित गतिविधियों को करने के लिए आजादी हेतु औचित्यपूर्ण दावे है। ''
  • बोसांके कहता है '' अधिकार एक दावा  है  जिसे समाज मान्यता देता है और राज्य लागु। ''
  •  लास्की  के अनुसार   , '' अधिकार , सामाजिक जीवन की वे परिस्थितिया है जिनके बिना व्यक्ति सामान्य तौर पर अपने बेहतर स्वरूप को प्राप्त नहीं कर  सकता। ''
  • आधिकारो का एक अन्य पक्ष ' व्यक्तित्व का विकास 'है, जिसका आशय  है की अधिकार व्यक्ति से संबंधित होते है और ये व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के महत्वपूर्ण तत्त्व  होते है - आधिकारो का यह पक्ष व्यक्ति के व्यक्तित्व के विरुद्ध हो। 
  • अधिकार समाज द्वारा स्वीकृति दावे होते है  इस कारण ये व्यक्ति के समाज के सदस्य के रूप में कर्तव्यों का सनुसरण करते है। 

आधिकारो की प्रकृति 

  • अधिकार केवल दावे नहीं है ; अपितु वे दावों की प्रकृति में होते है। 
  • अधिकार , वे दावे होते है जिन्हे समाज के द्वारा अधिकार के रूप में मान्यता मिलती है। 
  • हॉब  हॉउस के अनुसार : " अधिकार वे है जो  हम  दुसरो से मन सकते है तथा दूसरे है हमसे , एवं सभी मौलिक वास्तविक अधिकार समाज कल्याण की शर्ते है। 
  • अधिकार , एक सामाजिक दावे की तरह समाज में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करते है जो एक मनुष्य के सम्पूर्ण विकास के लिए आवश्यक है। 
  • अधिकार एक प्रतिक्रीया है , उस समाज के प्रति जहा  उनकी उतपति हुई है। 
  • हम जो कुछ करते है, अधिकार उसकी प्रतिक्रिया है।  आधिकारो का स्वाभाव पारितोषिक तथा प्रप्ति  का होता है। 
  • अधिकार केवल हमारे कर्तव्यों के परिणाम नहीं है , परन्तु इस पर भी निर्भर करते है की हम अपना कार्य कैसे कर रहे है। 
  • आधिकारो की सूचि को यहअवश्य  संज्ञान में रखना चाहिए की ऐसी कोई भी वस्तु निरकुंश और अनियंत्रित नहीं हो सकती , क्योकि इससे समाज में  अराजकता और अव्यवस्था उतपन्न हो सकती है। 

विभिन्न अधिकार 

  • अधिकार , व्यक्ति के व्यकितत्व विकास के लिए एक आवश्य परिस्थिति है। 
  • विभिन्न राजव्यव्स्थाए विभिन्न आधिकारो को मान्यता देती है। 
  • इस कारण से हमारे पास आधिकारो का एक वर्गीकरण है : नैतिक , विधिक , नागरिक , राजनितिक , आर्थिक और सामाजिक। 
  • वह  अधिकार जिन्हे किसी देश के संविधान  सम्मिलित किया जाता है वे मुलभुत अधिकार होते है।  
  • भारत  का संविधान  अपने नागरिको के लिए आधिकारो की एक सूचि प्रदान है।  इनको मूलभुत  अधिकार कहा  गया है और ये इस तरह से है :  समनता का अधिकार , स्वतंत्रता का अधिकार , शोषण के विरुद्ध अधिकार ,धर्म की स्वंत्रता का अधिकार , सांस्कृतिक तथा शैक्षिक अधिकार , संवैधानिक उपचारो का अधिकार। 
  • अंतिम अधिकार एक बहुत ही महत्पूर्ण अधिकार है क्योकि यह अधिकार दूसरे सभी अधिकारो के मिलने का दायित्व लेता है। 
  • एक समाजवादी समाज में इससे बिलकुल विपरीत किया जाता है , वहां पर सर्वपर्थम आर्थिक फिर सामाजिक तथा उसके पश्चात राजनितिक अधिकार आते है। 

आधिकारो के सिद्धांत 

  • उतपत्ति  , अर्थ और प्रकृति की व्याख्या के संदर्भ में आधिकारो के अनेको सिद्धांत है। 
  • विधिक अधिकारों का सिद्धांत अधिकारो  की पहचान विधि  रूप में करता है। 
  • अधिकारो  का ऐतिहासिक सिद्धांत अधिकारो की उतपति रीतियों और परम्पराओ से मानते है। 
  • सामाजिक कल्याण सिद्धांत के अनुसार आधिकारो का प्रयोग व्यक्ति और समाज दोनों के हित  में किया  जाता है। 

प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत 

  • प्राकृतिक अधिकारो  के सिद्धांत  समर्थन मुख्य रूप से थॉमस हॉब्स , जॉन लॉक  और जे. जे. रूसो ने किया। 
  • प्राकृतिक अधिकारो के सिधान्तो की विभिन्न आधारों पर आलोचना की जाती है।  
  • बेंथम के अनुसार , प्राकृतिक अधिकारो का सिद्धांत 'शब्दाडंबरपूर्ण बकवास' है। 
  • लास्की ने भी प्राकृतिक अधिकारो के सम्पूर्ण विचार को अस्वीकार कर  दिया है।  प्राकृतिक अधिकार के रूप में अधिकारो की अवधारणा झूठी मान्यताओं पर आधारितहै। 

विधिक अधिकारो  का सिद्धांत 

  • विधिक अधिकारो  का सिद्धांत और  आधिकारो का विधिक सिद्धांत दोनों का अर्थ  एक ही है। विधिक अधिकारो  का आदर्शवादी सिद्धांत जो की आधिकारो को राज्य की उतपत्ति  के रूप में मानता  है , कम या अधिक रूप में विधिक आधिकारो के दूसरे रूप , में माना  जा सकता है। इन सिधान्तो के समर्थको में लास्की , बेन्थम , हीगल और ऑस्टिन का नाम लिया  सकता है।  सिद्धांत के महत्तपूर्ण लक्षण निम्न है : 
  1. राज्य अधिकार को परिभाषित करता है और अधिकारों  पर बिल लेकर आता है। अधिकार न तो राज्य से पूर्व आते है  और न ही पूर्वकालिक है।  क्योकि की राज्य ही  स्रोत है। 
  2.  आधिकारो के क़ानूनी स्वरूप  निर्धारण करता है , आधिकारो  गारंटी देता है और राज्य ही विधिक अधिकारो  के उपभोग को लागु करता है। 
  3. कानून ही अधिकारो का  निमार्ण  करते है और उन्हें बनाये रखते है , इसलिए जब कानून की सामग्री में परिवर्तन होता है तो   आधिकारो के तत्व भी बदल जाते है। 
  • हेरोल्ड लास्की के पास  अधिकारों  की व्यवस्था को लेकर एक निर्धारति  दृश्टिकोण है जिसकी व्याख्या उन्होंने अपनी पुस्तक ' ए ग्रामर ऑफ़ पॉलिटिक्स ' में पस्तुत है। आधिकारो की प्रकृति के संदर्भ में लास्की के विचार निम्नलिखित है :
  1. अधिकार वे सामाजिक प्रिसिथितिया है जो एक व्यक्ति को समज के सदस्य के रूप में प्रदान की जाती है। 
  2. वे व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहयोगी होते है। या फिर कहा  जा सकता है की व  सामाजिक  परिस्थितया जिनके बिना कोईभी व्यक्ति अपने सर्वोत्तम स्वरूप को नहीं पा  सकता। 
  3. वे सामाजिक इसलिए है की वे कभी सामाजिक कल्याण के विरुद्ध नहीं हो सकती। समाज की उतपति के पूर्व इनका कोई अस्तित्व नहीं था। 
  4. राज्य इसने बनाए रखते हुए , इन्हे पहचान देता है और इनकी रक्षा करता है। 
  5. अधिकार कभी निरपेक्षनहीं होते।  निरपक्ष नहीं होते।  निरपेक्ष्य अधिकार विरोधाभाषी शब्द है। 
  6. ये प्रकृति से परिवर्तनशील है , अंतः  समय , काल  और परिस्थितिके अनुरूप उनमेपरिवर्तन  होता रहता है।
  7. ये कर्तव्यों के सहगामी है। 
  • लास्की का तर्क यह है की आर्थिक आधिकारो को पहले दिय बिना कोई व्यक्ति अपने राजनितिक आधिकारो का उपयोग नहीं कर  सकता। 

आधिकारो का ऐतिहासिक सिद्धांत 

  • आधिकारो के ऐतिहासकि सिद्धांत को निदेशात्मक सिद्धांत भी कहा  जाता है। 
  • इस बात को मानकर चलता हिअ की राज्य एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है। 
  • रूढ़िवादी बर्क का मानना है की लोगो के पास अन्य सभी चीजों से ऊपर एक अधिकार होता है , जिसका प्रयोग वे समय की लम्बी यात्रा के बावजूद अबाध्य  रूप से प्रयोग में लेते है। 
  • अठारहवीं शताब्दी में एडमंड बर्क की लेखनी के मध्य से इस सिद्धांत की आलोचना करता है। 
  • ऐतिहासिक सिद्धांत के समर्थको का तर्क है की जो लम्बे समय तक प्रयोग में होते है राज्य द्वारा उन्हें ही आधिकारो के रूप में मान्यता दे दी जाती  है। 
  • ऐतिहासिक सिद्धांत की भी अपनी सीमाए है कियोकि हमारी सभी परम्पराए अधिकार का स्वरूप धारणा  नहीं कर  सकती जैसे सती - प्रथा और भूर्णहत्या। 

आधिकारो का समाज - कल्याण सिद्धांत 

  • समाज - कल्याण सिद्धांत  मानना है की अधिकार समाज - कल्याण की परिस्थितियों होते है। 
  • इस सिद्धांत का तर्क यह है की राज्य को केवल उन्ही आधिकारो को मान्यत देनी चाहिए जो समाज - कल्याण को बढ़ावा देने में सहयता प्रदान करते है। 
  • समाज - कल्याण सिद्धांत के आधुनिक समर्थको में रोस्को पोण्ड  और चाफी  का नाम लिया जा सकता है , जबकि बेंथम को अठारहवीं शताव्दी के समर्थको में गिना जा सकता है।  
  • इस सिद्धांत की मान्यता है की समाज द्वारा उतने ही अधिकारो का निर्माण किया जाता है जितना की समाज - कल्याण के अंतगर्त शामिल किया जाता है। 
  • अधिकार सामाजिक - हित  की परिस्थितिया है , अर्थात ऐसे दावे जो सामान्य - हित  से नहीं जुड़े है और इस कारण समाज द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। 
  • वाइल्ड जैसे आलोचकों का मानना है की यदि अधिकार सामाजिक - लाभ को ध्यान में रखकर ही बनाये गए है , तो एक अक्षम और असहाय  व्यक्ति आततायी इच्छा पर निभर्र हो जाएगा। 

आधिकारो का मार्क्सवादी सिद्धांत 

  • आधिकारो के मार्क्सवादी सिद्धांत ने इस्तिहस के विशेष काल  को आर्थिक - व्यवस्था के संदर्भ में समझा। 
  • मार्क्स के अनुसार  जो वर्ग समाज की आर्थिक - संरचना को नियंत्रित करता है वह  राजनितिक -शक्ति पर भी  नियंत्रण रखता है, और यह वर्ग इस राजनितिक शक्ति का प्रयोग सर्व -समाज के हित  में करने के बजाय अपने हितो की रक्षा करने और उसे बढ़ाने में करता है। 
  • मार्क्सवादी कहते है की राज्य जोकि सामाजिक , आर्थिक और राजनितिक परिवर्तन का उपकरण है , समाजवाद की स्थापना करेगा , जो की 'सभी के लिए आधिकारो की व्यवस्था इस स्वरूप का अनुपालन करेगी : पहले आर्थिक अधिकार , उसके बाद सामाजिक अधिकार और राजनितिक अधिकार। 
  • आधिकारो  का मार्क्सवादी सिद्धांत आर्थिक कारको पर ज्यादा जोर देता है। 

  मानवाधिकार 

  • एस. रामफल ने कहा  है की मानवध्यक्रो का जन्म मनुष्य के लिए नहीं बल्कि मनुष्य के साथ हुआ है। 
  • ये मानवाधिकार इसलिए है क्योंकि ये मनुष्य को इसलिए प्राप्त है। 
  • मानवधिकार सभी गढ़ने के मूल में अवस्थित होते है 
  • वे सयुक्तराष्ट्रा के सम्पूर्ण चार्टर कमें स्थित है। 
  • चार्टर में मानवधिकरो के सार्वभौमिक विस्तार के संदर्भ में कुछ अनुछेद है यथा - 13 , 55  62 , 68  और 76।
  •  10 दिसंबर   1948 को सयुक्तराष्ट्रा की महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वजनिक उद्घोसणा को अनुमोदित किया तथा 10 दिसंबर को मानवधकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।   















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