BEVAE-181 PARISTHITIK TANTR

          पारिस्थितिक तंत्र

पारिस्थतिक तंत्र की परिभाषा 

  • पारिस्थितिक एक गतिज तंत्र है जिसमे सजीव और निर्जीव घटको के बिच परस्पर क्रिया समिमिलित होती है और ऊर्जा का निवेश , स्थानांतरण , भंडारण  और निर्गम तथा अनिवार्य पदार्थो का चक्रण होता है।    
  • इस तंत्र में होने वाली सभी  प्रक्रियाए  ऊर्जा पर निर्भर होती है। 

पारिस्थितिक तंत्र की विशेषताए

संरचनात्मक विशेषताए 

  • पारिस्थितिक तंत्र के  संरचनात्मक   आयाम का अर्थ उन सभी तत्वों  पारिस्थितिक  तंत्र को बनाते है -व्यक्ति और पादपों तथा जन्तुओ समुदाय तथा पारिस्थितिक  तंत्र   उपस्थित अजैविक कारक संरचनात्मक घटको में समिम्लित  है : / 
  1. अजैविक घटक : निर्जीव घटक 
  2. सजीव घटक : जैविक घटक 

क्रियात्मक विशेषताए : 

  • क्रियात्मक आयामों का अर्थ उन सभी प्रक्रियाओ और परस्परक्रियाओ से है जिन्हे पारिस्थितिक तंत्र में जीवो द्वारा किया जाता है :
  1. ऊर्जा चक्र 
  2. आहार श्रंखलाए 
  3. विविधता -जीवो के बीच  परस्परसंबध्दता  
  4. पोषक  चक्र - जैव भू-रासायनिक चक्र 
  5. अनुक्रमण 

पारिस्थितिक तंत्र का   आमाप 

पारिस्थितिक तंत्र  आमाप  में जल के छोटे से डबरे अथवा थलीय पर्यावास से लेकर भूदृश्य अथवा विशाल वन ; एक बोयोम  और यह  समग्र  भूमंडलीय जीवमंडल अथवा पारिस्थितिक मंडल तक विविध हो सकते है। 

सबसे बड़ा पारिस्थितिक तंत्र : जीवमंडल 

  • जीवमंडल  जिसे पारिस्थितिक मंडल कहते है , पृथिवी ,जल , वायुमंडल का वह  भाग है जिसमे अनेक अपेक्षाकृत छोटे पारिस्थितिक तंत्र होते है और प्राचलन करते है। 
  • जीवमंडल के तीन मुख्य अनुमंडल है :
  1. थलमंडल 
  2. जलमंडल 
  3. वायुमंडल 
  • इन तीनो  घटको  के मध्य सम्पर्क और परस्परक्रिया का क्षेत्र जीवन के लिए वाकई जैसे प्रकाश संशलेषण और स्वसन होती है। 
  • जीवमंडल का थलीय भाग अनेक क्षेत्रो में विभाजनीय है जिन्हे जीवोम  कहते  है , जो विशाल पारिस्थितिक  तंत्र बनाते है। 
  • जलवायु किसी भी बायोम  की सिमा  और उनमे  पाए जाने वाले पादपों और जन्तुओ जी प्रचुरता का निर्धारण करती है। 
  • सबसे महत्वपूर्ण जलवयवि  कारक  जो जीवोम  की सिमा का निर्धारण  करते है , वे तापमान और वर्षण है

  पारिस्थितिक तंत्र के घटक 

  • प्र्त्येक  जीवोम  अथवा जलीय क्षेत्र को छोटी इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है जिन्हे पारिस्थितिक तंत्र कहते है। अतः  एक  पारिस्थितिक तंत्र,जीवोम का एक उपमंडल  पारितंत्र भी कहा जाता   है। 
  • पारिस्थितिक में एक समषिट परस्पर जनन करने वाले जीवो का एक समूह  होता हैजो एक स्थान और काल  में एक साथ रहते है " एक समिष्ट  बनाने वाले जिव  जाति के सदस्य होते है। 
  • प्रकृति में , विभिन्न जातियो  की समिष्टयों  का किसी क्षेत्र में समूहन , जो परस्पर सहनशील और एक दूसरे के और अपने पर्यावरण के साथ लाभदायक परस्परक्रियाओ के  साथ रहती है , वे एक जैविक समुदाय बनती है। 

अजैविक घटक 

  • भौतिक  अथवा अजैविक घटक पारिस्थितिक तंत्र  के अकार्बनिक और निर्जीव घटक होते है। 
  • इनमे से प्रत्येक अजैविक कारक  का अलग -अलग  अध्यन्न किया जा सकता है , यद्यपि  , इनमे   प्रत्येक  कारक  अन्य कारको द्वारा प्रभावित होता है अन्य कारको को प्रभावित करता है। 

जैविक घटक 

  • किसी  पारिस्थितिक तंत्र के जैविक घटक अजैविक पर्यावरण में परस्पर  किया करते है। 
  1. उत्पादक / स्वपोषी 
  • प्रकृति में पाए जाने वाले प्रमुख जैविक सदस्य , पर्णहरित  धारण करने वाले हरित पादप , हरित और निल जीवाणु  तथा शैवाल है , जो अपना  भोजन स्वम् ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सरल अकार्बनिक पदार्थो  से निर्मित  करते है। 
  • रसोसंश्लेषी  जीवाणु  भोजन स्वय बनाते है लेकिन सूर्य की ऊर्जा की बजायये पृथ्वी के भीतरी भागों  से निर्मुक्त होने वाले सामान्य रसायनों  से रसोसंश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अपना भोजन बनाते है।  जो जिव अपना भोजन स्वं निर्मित करने में सक्षम होते है , उन्हें स्वपोषी अथवा उत्पादक कहते है।  
2. उपभोक्ता /परपोषी 
  •  वे जीव  अपनी उत्तरजीविता के लिए ऊर्जा आवश्यकताओ को पूरा करने की खातिर भोजन के लिए अन्य जीवो पर निर्भर करते है , तथा परपोषी अथवा भक्षापोषी  अथवा उपभोक्ता कहलातेहै। 
  • जो जीव  किसी शाकभक्षी को खाता  ,है  जैसे पक्षी जो ग्रासहॉपर को खाता  है , मांसभक्षी कहलाता है। 
  • ऐसे मांसभक्षी जंतु जो द्वितीय उपभोक्ताओं को खाते  ,है  जैसे की बिल्ली जो पक्षी को खाती  है ,तृतीयक उपभोक्ता कहलाते है। 
  • बाघ , चिता  और गिद्ध जैसे जंतु जिन्हे अन्य जंतु मारते  या खाते  नहीं है शीर्ष उपभोक्ता कहलाते है। 
३. अपघटक अथवा मृतपोषी  अथवा विघटक 
  •  पारिस्थितिक तंत्र में म्रतिजीवो के कार्बनिक तत्व का सतत विखंडन अथवा अपघटन होता रहता है और पदार्थो का निरतर चक्रण होता  रहता है। 
  • कुछ जीवाणु जो सूक्ष्म जिव है और कुछ कवक इन पदार्थो के अपघटन और पुनचक्रण के लिए उत्तरदायी होते है। ये  जिव अपघटक अथवा मृतपोशी अथवा विघटक कहलाते है। 

पोषी स्तर 

जटिल प्राकृतिक समुदाय अपना भोजन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पादपों के द्वारा एक , दो ,तीन ,अथवा चार चरणों  प्राप्त करते है। इसी अनुसार ये चरण आहार स्तर कहलाते है। 
  • हरे पादप (उत्पादक) : पोषी स्तर 1 - स्वपोषी   
  • शाकभक्षी ( प्राथमिक उपभोक्ता ): पोषीस्तर 2  परपोषी 
  • मांसभक्षी ( द्वितीयक उपभोक्ता ): पोषीस्तर ३  परपोषी 
  • मांसभक्षी (तृतीयक उपभोक्ता ):पोषीस्तर 4 परपोषी 
  • शीर्ष मांसभक्षी ( चतुर्थ उपभोक्ता ) : पोषीस्तर 5  परपोषी  


आहार श्रृंखला 

  •  पारिस्थितिक तंत्र में जीव  भोजन अथवा पोषी स्त्रो द्वारा संबंधित होते है , यानि  दूसरे का भोजन बन जाता है।  किसी  पारिस्थितिक तंत्र में खाघ ऊर्जा का एक पोषी स्तर से दूसरे स्तर पर खाने  खाए जाने की पुनरावर्ती प्रक्रिया द्वारा स्थानांतरण आहार श्रंखला कहलाता है। 

आहार श्रंखल  के प्रकार 

  1. चराई आहार -श्रंखला :इस प्रकार की आहार शृंखला में प्रथमिक उपभोक्ता शाकभक्षी होते है जो पादप अथवा पादप भागो का उपभोग   अपने भोजन के रूप  में करते है। यह आहार शृंखला हरे पादपों से आरंभ होती है। 
  2. अपरद डेट्रीट्स / आहार -श्रंखला : इस प्रकार की  आहार श्रंखला जंतु और पादप कयो के मृत कार्बनिक के अपक्षयी और उपापचयी अपशिष्ट। पदार्थो जिसे डिट्रीट्स  कहते है से आरम्भ होती है। उसके बाद अपरद खाने वाले जीवो तक जाती है जिन्हे अपरदभोजी अथवा अपघटक कहते है। 
  3. परजीवी आहार - श्रंखला : इस प्रकार  आहार - शृंखला हरे पादपों से आरम्भ होकर परजीवियों अथवा शाकभक्षियो तक जाती है जिनको परजीवी जिव कहते है इस परजीवी आहार -शृंखला का अंत परजीवी जीवो पर होता है जो   परभक्षियो के विपरीत परपोषी को मारते  नहीं है। 

पोषक चक्र 

  • पोषक चक्र  पूर्ण अथवा अपूर्ण चक्र  भी कहा  जा सकता है। 
  • वे पोषक जिनकी आवश्यकता जीवो को बड़ी मात्रा में होती है वे वृहद पोषक कहलाते है। 
  • वे जिनकी  आवश्यकता अलप या कम मात्रा में होती है सुक्ष्म  पोषक तत्व कहलाते है। 
  • ये पोषक अथवा खनिज तत्व सदैव चक्रण करते रहते जो  पारिस्थितिक तंत्र में निर्जीव  से सजीव और पुनः निर्जीव घटको में चक्रिक रूप में घूमते रहते है। यह जवभूरसायनिक चक्रण कहलाता है। 
  • मूलरूप से दो प्रकार के चक्र होते है , जो भंडार की प्रकृति पर निर्भर करते है। 
  1. गैसीय चक्र - जिनमे भंडारण स्थल वायुमंडल अथवा जलमंडल होता है। 
  • कुछ महत्वपूर्ण गैसीय चक्र जैसे ;-जलचक्र ,कार्बन चक्र भूमंडलीय कार्बन चक्र और नाइट्रोजन चक्र। 
अवसादी चक्र - जिनमे भंडारण स्थल भूपर्पट होता है। 
  • कुछ महत्वपूर्ण अवसादी चक्र जैसे :-सल्फर चक्र। 

 पारिस्थितिक अनुक्रम 

  • समुदाय एक जैविक समुदाय भी कहलाता है " जैविक समुदाय को किसी नियत स्थान परस्पर क्रिया करने वाली समिष्टियो  के एक  समूह के  परिभाषित किया जाता है। 
  • समय  के साथ किसी क्षेत्र में समुदाय की कुछ जीवो में अथवा प्रजातियों में अथवा निवासियों में परिवर्तन या फिर उनके विस्थपन  क्रमिक प्रक्रिया सामुदायिक विकास अथवा अधिक पारम्परिक रूप से पारिस्थितिक अनुक्रम कहलाती है। 

 पारिस्थितिक अनुक्रम के प्रकार 

  •  पारिस्थितिक अनुक्रम में सम्मिलित है : 
  1. प्राथमिक अनुक्रम 
  2. द्वितीयक अनुक्रम 

प्राथमिक अनुक्रम

  • प्राथमिक अनुक्रम  तब आरम्भ होता है जब कोई नया क्षेत्र जिसमे पहले कभी कोई  पारिस्थितिक समुदाय नहीं था।  में पादपों  जन्तुओ का समूहन हो जाता है। 
  • यह भूस्खलन या लावा के कारण नवउद्भासित शैल सतहों  पर हो सकता है। 
  • अतः  प्राथमिक अनुक्रम वहां  होता है जंहा पहले कोई समुदाय अस्तित्व में नहीं थी।  
  • लाइकेन अनावृत  शैलो पर अपने दृढ़  तथा जल की तलाश करने वाले कवकयी  घटक के द्वारा आश्रय कर  लेते हैऔर पहला समुदाय बनाते है , जिसे अक्सर बहुत उपयुक्त रूप से अग्रणी समुदय कहा जाता है। 

द्वितीयक अनुक्रम 

  • द्वितीयक अनुक्रम  तब होता है जब किसी क्षेत्र में समुदाय अत्यधिक उद्वेलित हो जाता है  जिससे वः नष्ट हो जाता है , इसके फ़लस्वरुप एक न्य समुदाय उस क्षेत्र में प्रवेश कर  जाता है। 
  • द्वितीयक अनुक्रम में मूल विशेषताए प्राथमिक अनुक्रम के समान ही होती है , लेकिन क्रमवस्थाए  अधिक तेजी से बदलती है। ऐसा इसलिए है क्योकि मृदा पहले ही बन चुकी होती है और उपलब्ध होती है। 

  
पारिस्थितिक तंत्र और मानवीय हस्तक्षेप 

  • मनुष्य प्राकृतिक समुदायों को परिवर्तित क्र सकता है  और करता है। हम अक्सर दुर्घटनावश  अथवा जानबूझकर उन जटिल और विविध कारको को परिवर्तित करने के दोषि होते है जो पारिस्थितिक तंत्रो के सूक्ष्म संतुलन को बनाए रखते है। 
  • अक्सर पूर्व में हुए हस्तक्षेपों को सुधारने  के लिए हम अच्छी नियत से लेकिन बगैर  उचित जानकारी के उपाय करते है , पर हमारे प्रयास मुलभुत जानकारी की कमी से त्रुटिपूर्ण अथवा असफल हो जाते है। 
  • हमारी प्र्द्धोयोगिक  ने हमारे मौलिक ज्ञान और पर्यावरण की समझ को पीछे छोड़  दिया है चूँकि हम वैज्ञानिक समुदाय की  ओर  इन समस्याओ के उतरो और समाधनो  के लिए अभिमुख है , तो   
    पारिस्थितिक विज्ञानी उन तरीको को परिवर्तित करने में निरंतर अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे , जिनके द्वारा हम प्राकृतिक जगत से परस्पर क्रिया करते है। 
  • हमसे  से प्रत्येक को  पारिस्थितिक तंत्रो के सूक्ष्म सतुंलन  को बिगाड़ने  के परिणामो के विषय में पता होना चहिए और ये प्रयास करना चहिए  की हम पारिस्थितिक तंत्रो को निम्नीकृत करने या क्षति पहुंचाने  में योगदान न करे। 

 


























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