उदारवादी
राजनीति
- राजनीती , राजनीतिक संस्थाओ , प्रक्रियाओ , तथा समाज के विभिन वर्गों के मुददो को जानने के बारे में है।
- राजनीती का सबंधं जनता को आपस में जोड़ने तथा राज्य एवं गैर - राज्य समूहों एवं संगठनों को आपस में जोड़ने से सम्बधित है।
- यह संबंध लोगो के बिच पर्तिस्पर्धा विवाद एवं सहयोग भी बढ़ता है।
- राज्य एवं संस्थाऐ सभी वर्गों के हितो का ध्यान रखती है।
भारतीय राजनितिक को समझने के लिए विभिन अवधारणाऐ है , जैसे :-
- उदारवादी
- मार्क्सवादी
- गाँधीवादी
उदारवादी अवधारणा :-
यह अवधारणा राजनीति को राजनितिक संरचना एवं राजनितिक प्रक्रिया या व्यवस्था की दिर्ष्टि से देखा गया है।
मार्क्सवादी अवधारणा :-
यह अवधारणा राजनीती को वर्ग सम्बंधो की दृष्टि से देखती है तथा राज्य विभिन वर्गो का प्रतिनिधत्व करता है।
गांधीवादी अवधारणा :-
राजनिति को नैतिक एवं आचार संबंधि दृस्टि से देखता है।
उदरवादी अवधरणा
- उदरवादी परिप्रेक्ष्य (अवधारणा ) भारतीय राजनीती को संचनात्मक कर्यात्मक या व्यवस्थावादी अवधारणा के रूप में देखता है।
- इसका प्रमुख संबंध राजनीतिक व्यवस्था में विरोधाभास प्रंबधंन पर आम समाती बनाने का अध्य्यन करना है।
- यह आपसी तालमेल एवं आम सहमति में विश्वास करती है बजाय वर्ग संबंध या वर्ग संघर्ष के।
- यह एक गैर माक्सवादी अवधरणा है।
उदारवादी अवधारणा के प्रमुख त्तव
1. संस्थाऐ : राजनितीक व्यवस्था , राज्य नहीं
- उदरवादी अवधारणा व्यवस्था के कुछ संस्थाए विद्यमान है जिसमे राजनैतिक दाल, हित समूह या नागरिक समाज संगठन शामिल है।
- ये सामजिक संरचना जैसे जाती, भाषा धर्म , क्षेत्र ,आदिवासी इत्स्यादि के साथ विचार विमर्श करते है।
- विचार विमर्श के बाद कुछ प्रक्रिया उभर कर सामने आती है जहां संगठन के विभिन भाग आपस में टकरते है, सहयोग करते है , तथा आपस संहमति पर पहुंचते है। परिणाम स्वरुप एक व्यवस्था या संस्था कायम होती है।
- इनमे राजनितिक संस्थाये आमतौर पर रानीतिक साल , प्रभावी दबाबा समूह विद्याका एवं करपालिका शामिल होती है।
- यह अवधारणा ही भारतीय राजनीती में लगभग चार दशको तक 1950 से लगातार कायम रही है।
- प्रक्रियाओ के अंतर्गत यह अवधारणा विभिन संस्थाओ एवं संगठनों के कार्यो का अध्य्यन करती है. इन्हे हम राजनितिक लामबंदी, हित व्यक्त तथा हित एकित्रिकरण के रूप में व्यक्त करते है।
- 1960 के अंत तक, जनत्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी, जिसने निमन वर्ग को प्रभावित किया तथा यह प्रक्रिया अभी तक जारी है। इसके परिणम सरूप , भारत की परम्परागत एवं सामंती सामाजिक व्यवस्था का पतन हुवा एवं स्वतंत्रता तथा समानता का समावेश हुआ।
- इसके अतिरिक्त 1970 और 1980 में विभिन राजनितिक आंदोलनों , नागरिक समज के संस्थाओ का उदय, तथा बहु - संस्कृतिवाद , ने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत किया तथा सभी संस्थाओ को भी मजबूती प्रदान की।
- उदारवादी अवधारणा का तीसरा प्रमुख तत्व है मूल्य, अर्थात स्वतंत्रता , मानव , अघिकार एव समानता यह मुख्य रूप से व्यक्ति एव सामुदायिक अघिकारो से सम्बन्घित है
- राज्य का यह कर्तव् है की वह कमजोर वर्ग जातिवादी समूहों एव अनुसूचित जातिओ व जनजातियों तथा अलपसंखयक को सुरक्षा प्रदान करे
उदारवादी अवधारणा का परिवर्तित क्षेत्र
- 1950 से उदारवादी उपागम में काफी महत्वपर्ण परिवर्तन देखने को मिला हे
- पिछले कुछ समय में १९५० -६० के इसके प्रमुख तत्वों का मकरसवादी उपागम के कुछ तत्वों के साथ भी अभिसण हुआ है
- अब यह राज्य के अवघारणा का प्रयोग करने से भी हिचकिचाती नहीं है तथा यह सामाजिक परिवर्तन के गतिविधियों का भी अध्य्यन करती है
- यह अवघारणा अब जनता को लामबंद करने बहु - संस्कृतिवादी , सामाजिक पूंजी या चुनावी राजनीती का भी अध्ययन करती है
नागरिक समाज
- उदरवादी उपागम का प्रमुख तत्व व्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन जब हम राष्ट्र या रे के बारे में बात करते है तो इसमें समुदाय म जाती समूह वंचित वर्ग एवं उनके जब एवं उनके अधिकारों की रक्षा भी शामिल है।
- उदरवादी अवधारणा वयक्तिओ के लोकतंत्रिक अधिकार से संबंधित है।
- नागरिक समाज संगठन नागरिक समाज से अलग है। जैसा की नीरा चंडोक ने व्याख्या की है, नागरिक समाज वह स्थान ह जो की राजये एवं परिवार के बिच में होता है।
- यह संगठनो एवं वयक्तियो के अधिकाओ की व्याख्या करता है। यह व्यक्ति की अभिवयक्ति के अधिकार ,विरोध जताने का अदिकार , तथा जन राये बनाने से संबंधित है।
- यह हमे राज्य एवं समाज के बिच संबंधो को बताने करता है।
बहुसंस्कृतिवाद
- उदरवादी उपगम न केवल व्यक्तिोयो के अघिकारो के पहचान करता है बल्कि वह समूह के अघिकारो को भी पहचानता है
- पारेख 2006 ने बताया की कोई भी बहुसांस्कृतिक समाज विभिन्न समूहों के मांगो के अनदेखी नहीं कर सकता है
- बहुसन्कृत्वाद वयक्तिगत उदारवाद के आलावा व्यक्तियो को सांस्कृतिक परिप्रेश्य में देखता है
- महाजन (2002 )ने यह बताया की बहुसंस्कृतिवाद का सम्बन्ध समानता के प्रसन से है
- बहुसंस्कृतिवाद बहुवाद एव विविध्ता से अलग है बहुवाद का सम्बंध विभिन्न समुदयो के आपसी मेलजोल से है ,यही पर बहुसकृतिवाद का सबंध जनतंत्र है
- यह विभिन्न समुदयो को सांस्कृतिक अधिकार प्रदान करने के बात करता है ताकि ये समुदय अपनी संस्कृति , भाषा , लेखनी को कायम कर सके
सामाजिक पूँजी
- 1990 से सामाजिक पुँज की अवधारण का प्रयोग विभिन्न समुदययो के बिच सबंधो को जानने के लिए किया जा रहा है
- यह अवधारणा टोक्वेलि के सिद्धांतो से ले गयी है तथा इटालियन राजनीतिक विचरक रोबर्ट पुटनम ने इसे अपनी पुस्तक मेकिंग डेमोकारस्य वर्क में भी प्रयोग किया है
- नविन सामाजिक आंदोलन के उदय के कारण , इस परिप्येष की महत्ता को भी इसमें शामिल किया गया है
अवधारणाओं का अभिसरण
- भरता में सवतंत्रता प्रति के बाद राजनीती के अध्यन्न के लिए दो प्रमुख उपागमों का प्रयोग किया जाता है ;गैर - मार्क्सवादी
- 1980 के बाद उदारवादी एव मार्क्सवादी उपागमों के बिच अभ्सारण हुआ है
- फेरेंसिं फ्रेकल ने एतहासिक मभेदो का जिक्र किया है विशेस्कर विकासनत्मक योजना एव संसथातमक राजनीति के बिच में उनोहोने राजनीतिक एव सामाजिक मुद्दों बिच अंतर् बताया है
- भारतीय राज्य माँग और कमांड राजनीतिक के बिच कार्य करता है मांग के राजनीति में यह विभिन्न वर्ग की मांग का सामना करता है
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