BPSC-132 Udarvadi

                                      उदारवादी 

राजनीति 

  • राजनीती , राजनीतिक संस्थाओ , प्रक्रियाओ , तथा  समाज  के विभिन वर्गों के मुददो  को जानने के बारे में है।  
  • राजनीती का सबंधं  जनता को आपस में जोड़ने तथा राज्य एवं गैर - राज्य समूहों  एवं संगठनों को आपस में जोड़ने से सम्बधित  है। 
  • यह संबंध  लोगो के बिच पर्तिस्पर्धा विवाद  एवं सहयोग भी बढ़ता है।  
  • राज्य एवं संस्थाऐ  सभी वर्गों के हितो का ध्यान रखती है।  

भारतीय राजनितिक को समझने के लिए  विभिन  अवधारणाऐ  है , जैसे :-

  1. उदारवादी 
  2. मार्क्सवादी 
  3. गाँधीवादी  

उदारवादी  अवधारणा :-

यह अवधारणा राजनीति  को राजनितिक संरचना एवं राजनितिक प्रक्रिया या व्यवस्था की दिर्ष्टि से देखा  गया है। 


मार्क्सवादी अवधारणा  :- 

यह अवधारणा राजनीती को वर्ग सम्बंधो  की दृष्टि से देखती है तथा राज्य विभिन वर्गो का प्रतिनिधत्व करता है।  

गांधीवादी  अवधारणा :- 
राजनिति को नैतिक  एवं आचार संबंधि दृस्टि से देखता है।  
 उदरवादी अवधरणा 
  • उदरवादी परिप्रेक्ष्य (अवधारणा )  भारतीय  राजनीती को संचनात्मक कर्यात्मक या व्यवस्थावादी अवधारणा के रूप में देखता है।  
  • इसका प्रमुख संबंध राजनीतिक व्यवस्था में विरोधाभास प्रंबधंन पर आम समाती बनाने का अध्य्यन करना है।  
  • यह आपसी तालमेल एवं  आम सहमति में विश्वास  करती है बजाय  वर्ग संबंध या वर्ग संघर्ष के। 
  • यह एक गैर माक्सवादी  अवधरणा है। 

उदारवादी अवधारणा  के प्रमुख  त्तव  

1. संस्थाऐ  : राजनितीक  व्यवस्था  ,  राज्य नहीं 
  • उदरवादी अवधारणा  व्यवस्था के कुछ संस्थाए विद्यमान है जिसमे राजनैतिक दाल, हित  समूह या नागरिक समाज  संगठन शामिल है। 
  • ये सामजिक संरचना  जैसे जाती,  भाषा धर्म , क्षेत्र ,आदिवासी इत्स्यादि के साथ  विचार विमर्श करते है।
  •  विचार विमर्श के बाद कुछ प्रक्रिया उभर कर    सामने आती है जहां   संगठन के विभिन भाग आपस में  टकरते है, सहयोग करते  है , तथा आपस संहमति  पर पहुंचते है।   परिणाम स्वरुप एक व्यवस्था या संस्था कायम होती है।  
  • इनमे राजनितिक  संस्थाये  आमतौर पर रानीतिक साल , प्रभावी दबाबा समूह विद्याका एवं करपालिका  शामिल होती है।  
  • यह अवधारणा ही  भारतीय राजनीती में लगभग चार दशको  तक 1950 से लगातार कायम रही है। 
प्रक्रियाये  
  • प्रक्रियाओ के अंतर्गत यह अवधारणा विभिन संस्थाओ एवं संगठनों के कार्यो का  अध्य्यन करती है. इन्हे हम राजनितिक लामबंदी, हित  व्यक्त तथा हित  एकित्रिकरण के रूप में व्यक्त करते है।
  • 1960 के अंत तक, जनत्रीकरण    की प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी, जिसने निमन  वर्ग को प्रभावित किया तथा यह  प्रक्रिया अभी तक जारी है।  इसके परिणम सरूप , भारत की परम्परागत एवं सामंती सामाजिक व्यवस्था का पतन हुवा एवं स्वतंत्रता  तथा समानता का समावेश हुआ। 
  • इसके अतिरिक्त 1970 और 1980  में विभिन राजनितिक आंदोलनों , नागरिक समज के संस्थाओ का उदय, तथा  बहु - संस्कृतिवाद , ने देश की लोकतांत्रिक  व्यवस्था को मजबूत किया तथा सभी संस्थाओ  को भी मजबूती प्रदान की। 
मूल्य 
  • उदारवादी अवधारणा का तीसरा प्रमुख तत्व है मूल्य, अर्थात स्वतंत्रता , मानव , अघिकार एव समानता  यह मुख्य रूप से व्यक्ति एव सामुदायिक अघिकारो से सम्बन्घित है 
  • राज्य का यह कर्तव् है  की वह कमजोर वर्ग जातिवादी समूहों एव अनुसूचित जातिओ व जनजातियों तथा अलपसंखयक को सुरक्षा प्रदान करे 

उदारवादी अवधारणा का परिवर्तित क्षेत्र 

  • 1950 से उदारवादी उपागम में काफी महत्वपर्ण परिवर्तन देखने को मिला हे 
  • पिछले कुछ समय में १९५० -६० के इसके प्रमुख तत्वों का मकरसवादी उपागम के कुछ तत्वों के साथ भी अभिसण हुआ है 
  • अब यह राज्य के अवघारणा का प्रयोग करने से भी हिचकिचाती नहीं है तथा यह सामाजिक परिवर्तन के गतिविधियों का भी अध्य्यन करती है 
  • यह अवघारणा अब जनता को लामबंद करने बहु - संस्कृतिवादी , सामाजिक पूंजी या चुनावी राजनीती का भी अध्ययन करती है 

नागरिक समाज 

  • उदरवादी उपागम का प्रमुख  तत्व व्यक्ति  की स्वतंत्रता है लेकिन जब हम राष्ट्र या रे के बारे में बात करते है तो इसमें समुदाय म जाती समूह वंचित  वर्ग एवं उनके जब एवं उनके अधिकारों की रक्षा  भी शामिल है।  
  • उदरवादी अवधारणा वयक्तिओ के लोकतंत्रिक अधिकार  से संबंधित है।  
  • नागरिक समाज संगठन नागरिक समाज से अलग है।  जैसा की नीरा चंडोक ने व्याख्या की है, नागरिक समाज वह  स्थान ह जो की राजये एवं परिवार के बिच में होता है।  
  • यह संगठनो  एवं वयक्तियो  के अधिकाओ की व्याख्या करता है।  यह व्यक्ति की अभिवयक्ति के अधिकार ,विरोध  जताने का अदिकार , तथा जन राये बनाने से संबंधित है।  
  • यह हमे राज्य एवं समाज के बिच संबंधो को बताने करता है। 

 

बहुसंस्कृतिवाद 

  • उदरवादी उपगम न केवल  व्यक्तिोयो के अघिकारो के पहचान करता  है बल्कि वह समूह के अघिकारो को भी पहचानता है 
  • पारेख 2006  ने बताया की कोई भी बहुसांस्कृतिक समाज विभिन्न समूहों के मांगो के अनदेखी नहीं कर सकता है 
  • बहुसन्कृत्वाद वयक्तिगत उदारवाद के आलावा व्यक्तियो को सांस्कृतिक परिप्रेश्य में देखता है 
  • महाजन (2002 )ने यह बताया की बहुसंस्कृतिवाद का सम्बन्ध समानता के प्रसन से है 
  • बहुसंस्कृतिवाद बहुवाद एव विविध्ता से  अलग है  बहुवाद का सम्बंध विभिन्न समुदयो के आपसी मेलजोल से है ,यही पर बहुसकृतिवाद का सबंध जनतंत्र है 
  • यह विभिन्न समुदयो को सांस्कृतिक अधिकार प्रदान करने के बात करता है ताकि ये समुदय अपनी संस्कृति , भाषा , लेखनी को कायम कर सके 

सामाजिक पूँजी 

  • 1990 से सामाजिक पुँज की अवधारण का प्रयोग विभिन्न समुदययो   के बिच सबंधो को जानने के लिए किया जा रहा है  
  • यह अवधारणा टोक्वेलि के सिद्धांतो से ले गयी है तथा इटालियन राजनीतिक विचरक रोबर्ट पुटनम ने इसे अपनी पुस्तक मेकिंग डेमोकारस्य वर्क में भी प्रयोग किया है 
  • नविन सामाजिक आंदोलन के उदय के कारण , इस परिप्येष की महत्ता को भी इसमें शामिल किया गया है 

अवधारणाओं  का अभिसरण 

  • भरता में सवतंत्रता प्रति के बाद राजनीती के अध्यन्न के लिए दो प्रमुख उपागमों का प्रयोग किया जाता है ;गैर - मार्क्सवादी 
  • 1980 के बाद उदारवादी एव मार्क्सवादी उपागमों के बिच अभ्सारण हुआ है 
  • फेरेंसिं फ्रेकल ने एतहासिक मभेदो का जिक्र किया है विशेस्कर विकासनत्मक योजना एव संसथातमक राजनीति के बिच में  उनोहोने राजनीतिक एव सामाजिक मुद्दों  बिच अंतर् बताया है 
  • भारतीय राज्य माँग और कमांड राजनीतिक के बिच कार्य करता है मांग के राजनीति में यह विभिन्न वर्ग की मांग का सामना करता है 
जैसे : किशन और विधार्थी 







 

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