BPSC-132 MARKSAVADI AAVDHARNA

                       मार्क्सवादी   अवधारणा 

मार्क्सवादी अवधारणा का अर्थ  एवं क्षेत्र 

  • भारतीय राजनिति में मार्क्सवादी अवधारणा के कुछ प्रमुख आधारभूत तत्व है।  ये आधारभूत तत्व समाज को बदलेने  में तथा समाज की वयाख्या करने में मदद करता है।  
  • मार्क्सवादी अवधारणा समाज की प्रक्रिया को समझने का प्रयास करती है तथा सामाजिक संबंधो वर्गो को परिभाषित  करता है एवं संसाधनों के वितरण एवं उत्पादन के साधनों  पर नियंत्रण की भी  बात करता है। 
  • मार्क्सवादी दृश्टिकोण का प्रमुख सिद्धंद्ध इस आधार एवं मुलभुत आधार के बीच  संबंधो की वयाख्या करता है 


  • मार्क्सवादी आवधारण के दो  प्रमुख समूह है।    
  1. एक समूह मनता  है की वर्ग कभी भी  मूल आधार को निधार्रित   करता है , इस समूह को हम क्लासिकल या यांत्रिक मार्क्सवादी अवधारणा के रूप में जानते है। 
  2. दूसरा समूह मनाता है की वर्ग कभी भी गैर वर्गीय आधार को निर्धारित नहीं करता है, इस समूह को हम नव - मार्क्सवादीआवधारण के  जानते है। 
  • नव -मार्क्सवादी आसाधारण ग्राम्सी से प्रभावित है जो की प्रेंकफ़र्ट स्कूल से  संबंधित है तथा राल्फ मिलिबैंड से भी प्रभावित है। 
  •  मार्क्सवादी दृश्टिकोण किसी देश की आतंरिक  राजनीती को  अंतररास्ट्रीय  राजनीती के संबंध में देखती है।  

मार्क्सवादी दृस्टि कोण  एवं भारत में राजनीती विज्ञा


 भारतीय राजनीती को समझने के लिए क्लासिकल एवं नव -मार्क्सवादी सोनो अवधारणाऔ  का प्रयोग किया जाता है।  
  • मार्क्सवादी अवधारणा की तुलना में  उदारवादी धारणा  भारतीय राजनीती को जानने के लिए  ज्यादा प्रयोग में लायी जाती है। 
  •  मार्क्सवादी अवधारणा का प्रयोग सामाजिक विज्ञानो में कई विद्वानों द्वारा किया गया है।  
  • 1980 से एक नयी अवधारणा , नव - मार्क्सवादी इतिहसकार  रणजीत   गुहा द्वारा जोड़ी गई है जिनके ऊपर ग्रसिक  का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था।  
  • जो मार्क्सवादी विचारक है उन्होने इस अवधारणा की आलोचना की है क्योकि उनके अनुसार यह गैर - मार्क्सवादी अवधारणा है। 

वर्ग संबंध  

  • मार्क्सवाद दृश्टिकोण का महत्वपूर्ण पहलू  वर्ग संबंध है।  
  • वर्ग संबंध उत्पादन का सामाजिक संबंध है।  इनमे उपादन कके साधन , कार्य  करने के तरिके, उनका वितरण इस्त्यादी शामिल है। 
  • अर्थववस्था के  तीन प्रमुख क्षेत्रो 
  1. कृषि क्षेत्र 
  2. सेवा क्षेत्र  
  3. अनौपचारिक अर्थव्वस्था क्षेत्र 

  • मार्क्सवादी अवधारण भारत में , मुख्य रूप से वर्ग संबंध को स्थापित करने के लिए प्रयोग किया जाता है खासकर कृषि और उद्योग  में। 
मार्क्सवादी दृश्टिकोण और ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ग 

  • 1986 में उत्सा पटनायक ने अपनी पुस्तक (कृषक वर्ग अंतर ) में कृषि क्षेत्र में वर्गो की पहचान की है।  
  • इनमे ग्रामीण अमीर  वर्ग (जमींदार वर्ग ) , आमिर  किसान और मध्यम किसान , तथा ग्रामीण गरीब ,  छोटे एवं गरीब किसान तथा भूमिहीन किसान है।  
  • सामंती जमींदार , जो जमीं  मालिक है तथा वो अपनी जमींन  पर दुसरो से काम सरवटे है या साझीदार है तथा उनकी स्त्थिती आर्थिक उत्पीड़न से भी प्रभावित होती है तथा गैर - आर्थिक प्रभुतत्व की होती है।  
  • मार्क्सवादी परिपेक्ष्य सामान्तया वर्गो दी पहचान में जाति  की भूमिका  को नजरंदाज  करते है।  इस प्रवृति  आगे  बड़कर एक अन्य मार्क्सवादी विचार गेल ओमवेट ने अपनी पुस्तक (जमी , जाती एवं भारतीय राज्य में राजनीती )के अंतगर्त यह दर्शाता की  ग्रामीण समाज में वर्ग विभाजन जाती वर्चस्व  से प्रभावित होता है।  

आंदोलन 

  • मार्क्सवाद निमन वर्गो के प्रति सहानुभूति रखता है , जिनमे , खेती ,मजदूर ,मजदूर या किसान शामिल है।  इसका उदेश्य वर्ग शोषण को समाप्त करना है , 
  • मार्क्सवाद  आवधारणा वर्गो की भौतिक स्थिती  के अध्ययन पर   विशेष जोर देता है तथा उनके संबंधो पर भी जोर भी जोर देता है एवं उनकी स्थिति  में सुधर करने का प्रयास करता है 
  • उनके   प्रयासों मे सहमूहिक कार्यवाही एवं आंदोलन शामिल है।  
  • इसका प्रमुख प्रयोग किसान आंदोलन  पर विशेष तौर  पर किया जाता है।  
  • ये आंदोलन औपनिवेशिक एवं उत्तर  औपनिवेशिक कल के समय के है , 
कुछ उदहारण  यहाँ प्रमुख रूप से दिया जा रहा है जिसे मार्क्सवादी परिप्रेक्ष में प्रोयग किया गया :-

किसान एवं कृषक  आंदोलन 

  • कृषक एक सामान्य वर्ग या श्रेणी है जबकि किसान खेती  करने वाले लोग है जिनके पास अपनी जमीं और संसाधन है। 
  • कृषक अध्ययन का प्रमुख  उदेश्य कृषि वर्गों का पहचान करना , वर्ग घठन की प्रक्रिया , समजिक एवं आर्थिक संबंध , कर्ज ,सामाजिक उत्पीड़न की प्रकृति तथा आर्थिक शोषण की प्रकृति इत्यादि का पता लगाना है 
  • ओपनिवेशिक भारत में कृषक आंदोलन में मार्क्सवादी परिपेक्ष्य ने निमन  वर्गो की पहचान की है :- वो किसान जो जमींदारों की जमीन काश्तकारी करते हो, जमींदार साहूकार  एवं ओपनिवेशिक  सरकार  के अफ़सर।  इसने यह भी समझाया  की किस तरह से काश्तकारो  का शोसण किया जाता है। 
  • स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद मार्क्सवादी अवधारण का धयान भूमि सुधार की तरफ हो गया था।  
  • भूमि सुधर के लिए आंदोलन तथा भूमि सुधर का प्रभाव इसका प्रमुख केन्द्र -बिंदु था। 
  • भूमि सुधारो के अध्ययन के लिए इसने काश्तकारो को भूमि का मालिकाना हक़ दिलाने का प्रयास कियाथा, जमींदारी प्रथा का उन्मूलन तथा भूमि का वितरण किया।  
  • जिन विद्वानों ने मार्क्सवादी उपागम  का अध्ययन किसान आंदोलन के लिए किया वे ये है - धनाग्रे  ,सुनील सेन ,माजिद  सिददकी , गिरीश मिश्रा इत्यादि। 
  • भारत में मार्कसवादी  उपागम का प्रयोग करते हुए रंजीत गुआ ने यह दलित दी की ओपनिवेशिक काल  में , किसानो ने जमींदारों के खिलाफ विरोध नहीं जताया तथा ब्रिटिश ,सरकारने उसका उत्पीड़न  किया। 
  • अपनी पुस्तक "कृषिको का विद्रोह " में कपिल कुमार ने शोषित वर्गो के ऊपर अपना धयान केंद्रित किया। 
  • उन्होंने "निचे से हितिहास ":-परिप्रेक्ष्य का उपयोग किया जिसमे यह कहा गया की उत्तर परदेस के उध  क्षेत्र में किसानो ने विद्रो किया था।  उन्होंने किसानो के आंदोलनों को वर्ग संबंधो  संदर्भ में भी देखा था। 
  • 1980 के दौरान , भारत के विभन्न भागो में किसानो का आंदोलन देखने को मिला जो की कृषक आंदोलन से अलग रूप  में था 
  • ये आंदोलन मुख्याता अमीर किसानो के है या अमीर  ग्रामीण वर्ग के है जिन्होंने पूंजीवादी विय्वस्था को अलग लिया है 


मजदूर वर्ग आंदोलन 

  • मजूर वर्ग के आंदोलन का अध्ययन करने के लिए मार्क्सवादी परिपरीक्षा निम्नन मुद्दों को उठाता : मजदुर वर्ग वृद्धि उनकी सामिजिक और आर्थिक स्थिति , उनकी न्यूनतम आवश्यकतों को पूरा करना 
जैसे : रोटी , कपड़ा और मकान ,शिक्षा , आदि 

  • रणजीत दास गुप्ता (1996 ) ने यह बिंदु उठाया की मार्क्सवादी लेखकों ने मजदूरो वर्ग के कुछ प्रमुख मददो को नहीं उठाया जैसे :मजदुरो का संगठन ,मज़दूरो पर नियंत्रण ,वर्ग गठन , नेतृत्व का तरीका , कार्य्यसथल एव समुदाियक जीवन के बिच संबंध इत्यादि 

भारतीय राज्य 

  • राज्य किसी भी देश में स्वतंत्र एव सार्वभौम - राजनितिक संस्था है 
  • मार्क्सवादीयो का मानना है की राज्य पूंजीपति वर्ग का हथियार है 
  • उदारवादी अवधारणा राजनितिक व्यवस्था स्थायी रहती है 
जबकि मार्क्सवदि अवधारणा राज्य  निम्नन मानदंडों पर विश्लेषित करती है 

  1. यह राज्य को वर्ग हितो का प्रतिनिधि मानती है की किस प्रकार से राज्य पर विभन्न वर्ग का नियंत्रण रहता है 
  2. यह इस बात को भी देखने का प्रयास करती है की किस प्रकार से राज्य अपनी नितियां इन वर्ग के लिए बनाती है 
  3. यह राज्य  के विकास को पता लगाने प्रयास   करती है 
यह राज्य के वैचारिक आधार का भी पता लगाती है 
  1. यह राज्य  नीतियों को अंतर्रास्त्रय राजनितिक अर्थव्यवस्था  जोड़कर देखती है जैसे :  विश्व बैंक अंतररास्त्र मुद्रा कोष इत्यादि।  
  • मार्क्सवादी अवधारणा का प्रयोग मार्क्सवादी राजनितिक दलों एवं शिक्षाविदों द्वारा किया गया है।  
  • भारत में प्रमुख रूप  प्रकार की कम्युनिस्ट पार्टियाँ  है  मार्डस्वादि विचारधारा का अनुसरण करती है। 
  1. सी.पी.आई.
  2. सी.पी.आई (एम )
  3. अन्य नक्सलवादी पार्टियां 
  • इनका मानना  है की भारतीय रे के अंदर विभिन्न  आंतरिक संबंध  तथा इसका संबंध विदेशी पूंजी या सम्रज्य्वाद के साथ भी , है जो  अंतर्राष्ट्रीय वितीतीय संस्थाओ का प्रतिनिधि  करती  है।  
  • सी.पी.आई (एम ) .के अनुसार भारतीय रे बुर्जुआ ,  अर्थात  पूंजीपति एवं जमींदारों के हितो  करने के लिए है एवं इसका संबंध विदेशी पूंजी से  है। 
  • सी.पी.आई.  के अनुसार , भारतीय राज्य  एक राष्ट्रीय बुर्जुआ रे ,है  जो विदेशी पूंजी के साथ गठजोड़  करता है। 
  • अन्य नक्सलवादी पार्टियां  के अनुसार रे को पूंजीपतियों का प्रतिनिधि मानते है जो की विशेसी पूंजी के हितो की रक्षा करती है। 






  

   

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