इकाई -1
हमारा पर्यावरण
जीवमंडल
हमारा जीवन पृथ्वी के बहुत ही संकीर्ण क्षेत्र में पाया जाता है जिसे जीवमंडल कहते है।
पर्यावरण
- शब्द ''एनवायरनमेंट '' फ़्रांसिसी शब्द " एन्वायरॉन " से व्युतपन्न है जिसका अर्थ है घेरे हुए अथवा ईर्दगिरद और मेन्ट जिसका अर्थ है क्रिया यानि पर्यावरण जीव और प्रकृति के बीच की क्रिया है।
- जिव पर्यावरण में हुए परिवर्तन को एक सीमा तक ही सहन कर पाता है जो उसका ' शहनशीलता विस्तार ' कहलाता है।
पर्यावरण के घटक
1 . जैविक घटक :- इस में सारे सजीव घटक आते है जैसे पादप , मनुस्यो इत्यादि।
2. अजैविक :- इसमें सारे निर्जीव व भौतिक घटक आते है जैसे प्रकाश , वर्षण , तापमान आदि।
मानव - पर्यावरण संबंध
- सभी जीवित जीव अपने निर्वाह और जीवन के लिए अपने तात्कलिन परिवेश पर निर्भर करते है।
- जैसे - जैसे मनुस्य का ज्ञान , कौशल का विकास हुआ , उनहोने अपने जीवन को अधिक सुविधजनक बना लिया है। और इससे पर्यावरण को अपूर्णनीयक्षति हुई और मानव समाज के साथ-साथ पृथ्वी गृह की उत्तरजीविता के लिए भी खतरा हो गया है।
- इसलिए , विकास और प्रकृति के संरक्ष्ण के बिच एक संतुलन होना चाहिये , इस अभिगम को श्रेष्ठ तरीके से 'सतत विकास ' के रूप में अभिव्यक्त किया गया है।
मानव पर्यावरण संबंध के विभिनं अभिगम
(क) निश्चयवाद
- निच्यवाद बताता है की मनुस्य प्राकर्तिक पर्यावरण के अधीन है क्येकि मनुस्य जीवन के सभी आयाम जैसे शारीरिक , सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक , नैतिक और सोन्दर्येबोधी भौतिक पर्यावरण पर न सिर्फ निर्भर बल्कि प्रभावी रूप से इसके द्वारा नियंत्रित होते है।
- यह संकल्पना जर्मनी के भूगोलविद रैजेल द्वारा विकसित की गई थी , जिसे बाद में एल्सवर्थ हंटिंगटन द्वारा विस्तारित किया गया था।
- यह अभिगम 'प्रकृति मनुस्य को नियंत्रित करती है ' अथवा 'पृथ्वी ने मनुस्य को बनाया है ' की संकल्पना पर आधारित है इसे पर्यावरणीय निर्धारणवाद भी कहते है।
(ख ) संभावनावाद
- यह शब्द फ्राँसिसी इतिहासकार , ल्यूसियन फेवरे द्वारा दिया गया था।
- संभवनवाद का अभिगम पर्यावरणीय निश्च्यवाद की आलोचना की प्रशाखा है।
- यह कहता कई की मनुसय में प्रकृति को पूर्णत: वश में क्र लेने की क्षमता नहीं है और न ही व सदैव इस पर विजय पा सकता है।
(ग) पर्यावरणवाद अथवा पारिस्तिथतिकी अभिगम
- यह पारिस्ठितीकि के मौलिक सिद्धांत पर आधारित है।
- इस अभिगम में मनुष्य को प्रकृति या पर्यावरण के अभिन्न भाग के रूप में वर्णित किया जाता है
- यह अभिगम प्रकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण और सिमित उपयोग पर बल देता है ताकि पहले से ही क्षीण हो रहे प्रकृतीक संसाधनों की पुनर्पुर्ति हो जाये और प्रकृति का स्वास्त और उत्पादकता बनी रहे।
संपोषणीयता और सतत विकास की संकल्पना
संपोषणीयता
- 'संपोषणीयता ' सहन करने/स्थयित्व की क्षमता है।
- माइकेल रेडकिल्फट द्वारा कहा गया है "मानव आवश्यकयता से हटकर लगभग अगोचर रूप से 'मानवाधिकरों ' पर चली गई है। इसलिए , संपोषणीयता वह प्रक्रिया है जो उस संसाधन आधार को क्षीण किऐ बगैर जिस पु वह निर्भर करती है अनंत काल तक जारी रह सकती है।
- इसलिए , प्रक्रितीक जगत के साथ हमारी पुष्पकरिया की और हमारे व्यवहारिक लक्ष्य निर्देशी होने चाहिए। संपोषणीयता के मार्गदर्शी सीधंत परस्थित आर्थिक ,सामाजिक और संस्क्रितिक आयागो तक विस्तारित है।
सतत विकास की संकल्पना
- सतत विकास की संकल्पना को 'आवर कॉमन फ्यूचर' नामक शीर्षक की रिपोर्ट में औपचारिक रूप से परिभाषित किया गया था।
- यह रिपोर्ट वर्ल्ड कमीशन ऑन एनवायरनमेंट एंड डवलपमेंट (पर्यावरण एवं पर विश्व आयोग ) द्वारा गठित दल के विचार -विमर्श का परिणाम थी।
- इसकी अध्यक्षता तत्कालिनी नोवोर्जिअन प्रधानमंत्री ग्रो हालेरम बुरंटलेण्ड द्वारा ली गई थी
- ब्रून्ट्लैंड आयोग ने अट्ट विकास को परिभषित किया था "जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्य्कता को भावी पीढीयो द्वारा अपनी निजी आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता में कोई सामझोता किये बगैर पूरा करता है। ''
- की संकल्पना को अंतराष्ट्रीय राष्ट्रीय और स्थानीय स्त्रो भली प्रकार स्वीकार कर लिए गया है।
- सतत विकास अर्थ है भिन्न जनो के लिए भिन्न चीजे।
- सतत विकास की संकल्पना को साकार करने में पांरपरिक तीन प्रमुख विषयो की प्रक्रियाऔ से सरोकार है
- अर्थशास्त्र का विषय मुख्य रूप सेवृद्धि
- सक्ष्मता
- संसोधन के इष्टतम संबंधित है।
- समाजिकविज्ञानी मुख्यरूप से मानवीय आवश्यकताओ और समता, सशक्तिकरण तथा कहा सामाजिक मेलमिलाप जैसी अवधारणाओं पर केंद्रित करता है।
- परिस्थितिकी विद प्राकृतिक तंत्रो संरक्षण से सर्वाधिक सरोकार रखते है और पर्यावरण की धारण क्षमता के भीतर रहने और परदूषण से प्रभावी रूप की बात करते है।
सतत विकास के तीन स्तम्भ
- ऐसा कहा जाता है सतत विकास एक आदर्श है जिसे आज के किसी भी समाज द्वारा इससे मिलते -जुलते किसी रूप में नहीं प्राप्त किया जा सका है। किन्तु इसे एक आदर्श के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए।
- एक जनसंख्याकिय परिवर्तनों - निरन्तर विर्धि करती जनसंख्याँ में एक ऐसी जनसख्या की ओर जो स्थिर हो।
- एक संसाधन परिवर्तन ; ऐसी अर्थवयवश्था की और जो पुर तरह से विर्धि अभिभूत न हो, बल्कि प्रकृति की सृजनात्मक पर अधिक भरोसा करे और पारिस्थितिक तंत्र की पूंजी को क्षीण होने से बचाए।
- एक प्रोधोगिकिय परिवर्त्तन : प्रदूषण - गहन आर्थिक उत्पादन से पर्यावरण -हितैषी प्रक्रियाओ की ओर
- एक राजनैतिक /सामाजिक परिवर्तन
- एक सामुदायिक परिवर्तन
सतत विकास को प्राप्त करने के लिए प्रथमिकता के क्षेत्र
- जनसंख्या विर्धि को मंदित करना
- गरीब म असमानता और तीसरी दुनिया (अल्पविकसित और विकाशील देशो ) के श्रेणों को ख़त्म करना
- कृषि को दीर्घोपयोगी बनाना
- वनो तथा अन्य पर्यावासों का संरक्षण
- जल और ऊर्जा के उपयोग को दीर्घोपयोगी बनाना
- जल का दीर्घा उपयोग संभव बनाना
- अपशिस्ट उत्पादन काम करना
पर्यावरणीय अध्ययन की बहु विषयी प्रकृति
- पर्यावरण अध्ययन ,अध्ययन की वह शाखा है जिस में पर्यावरण के नैसगरीक अथाव प्रेरित परिवर्तनों और साजियो पर उनके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है।
- मानवीय दृष्टि कोण से इसका अर्थ है की यह एक अनुप्रयुक्त विज्ञान है जिसमे उन सभी संभावित उतरो को जानने का परयास किया गया है जो मानव को पर्थिव पर उसकी असभ्य सिमित संस्धानों के साथ दीर्घ उपयोग बनाते है
- पर्यावरण और विकास पर सयुक्त राष्ट्र समेलम्म जो 1992 में रियो डी जेनेरियो में हुआ था और 2002 में सतत विकास पढ़ुआ विशव सम्मेलन ने दुनियाभर के आमजन का धयान अपने पर्यावरण की निम्नीकृत होती स्थिति की और आकर्षित किया है
- इसे पुनः संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में सत्रह सतत विकाश लक्ष्यों को अपना क्र पूण परिभाशित किया गया है।
सतत विकास के लक्ष्य
- भारत जैवविविधता से समृद्ध है जो आमजन को विविध संसाधन प्रदान करते है
- सिर्फ लगभग 17 लाख जीवित जीवो को वेसाविक रूप से वर्णित और उनका नामकरण किया जगाया है
- उनको यथास्थल और बही:स्थल में संरक्षित करने का प्रयास किया गया
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