BPSC-132 NAYAYAPALIKA

                       न्यायपालिका 

भारत में न्यायपालिका की उत्पत्ति 

  • भारत   न्यायपालिका की उत्पत्ति  ओपनैवेसिक  काल  से मानी  जाती है।  1773 में रगुलेटिंग एक्ट (अधिनियम)पारित होने के पश्चात भारत में प्रथम सर्वोच्च न्यायलय  स्थापना हुई। 
  • यह कलकत्ता में स्थापित किया गया जिसमे  एक मुख्य न्यायधिश एवं तीन अन्य जज थे। 
  • इनकी नियुक्ति ब्रिटिश क्राउन  के द्वारा की गयी थी। 
  • पहली बार सर्वोच्च न्यायलय की स्थापना मद्रास में हुई तथाइसके बाद बंबई में। इस कल में न्यायिक  व्यवस्था दो प्रकार की थी ,एक प्रसिडेंसी के अंदर सर्वोच्च न्यायालय तथा प्रांतों  के अंदर सदर न्यायायल। 
  • 1861 के उच्च न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत इन दोनों को मिलाकर एक क्र दिया गया। इस अधिनियम से सर्वोच्च न्यायायल को कस्बों में बदला गया। 
  • कोलकाता , बंबई  मद्रास में उच्च नयायलयो  की  स्थानपना  की गयी। लेकिन सबसे बड़ा अपील न्यायलय प्रिवी परिषद थी जोकि न्यायिक समिति के अधीन थी। 


सर्वोच्च न्यायायल 

  • सम्पूर्ण न्यायव्यवस्था तीन स्त्रो में विभाजित है। सबसे ऊपर न्यायलय है , इसके निचे उच्च न्यायालय तथा  सबसे निचे सत्र  न्यायालय स्थापित थी 
  • संविधान का मनना  है की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा  घोषित कानून सबके लिए बध्यकारी होगा  विशेषकर भारतीय क्षेत्र के सभी छोटे न्यायालयों में ,उच्च न्यायालय होते  है जो की राज्यों में स्थापित होते है। 
  • संघीय व्यवस्था में न्यायपालिका की महत्ता को देखते हुए  सर्वोच्च न्यायालयो को भारतीय संविधान की व्याख्या करने का अंतिम अधिकार प्राप्त है। 

संरचना एवं नियुक्तियों 

  • सर्वोच्च न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश आलावा 26 अन्य न्यायधीश होते है। जब सर्वोच्च न्यायलय  की गयी थी उस समय मात्र आठ न्यायाधीश थे। 
  • भारत के राष्ट्रपति द्वारा िंकजी नियुक्ति की जाती है। संविधान के अनुच्छेद 124 (2 ) में राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय  जजों की नियुक्ति मत्रिपरिस्द  ,प्रधानमंत्री की सलाह के पश्चात करते है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय  के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति रास्ट्रपति विभिन्न न्यायधिशो के साथ  विचार -विमर्श करने के बाद करते है। 
  • सर्वोच्च न्यायलयों के  जजों की नियुक्ति के लिए कुछ योग्यताएँ  निर्धारित की गई है। 
  • ये योग्यताए इस प्रकार है :-
  1. भारत का नागरिक  चाहिए। 
  2. उच्च न्यायलयों में पांच वर्ष तक कार्य किया हो या वः किसी उच्च न्यायायल के दस वर्ष तक वकालत की हो। 
  3. या फिर वह  राष्ट्रपति की रे में एक वरिष्ठ और प्रतिष्ठित विधिवक्ता हो. 

कार्यकाल 

  • एक बार नियुक्ति होने की बाद न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु पूरी होने तक अपने पद पर बने रहते है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश  या तो   इस्तीफा  दे  सकता है या फिर उन्हें दुर्व्यवहार या काबिल न   होने पर अपने पद से हटाया जा सकता है।  हटाने की प्रक्रिया को महाअभियोग   कहते है। 
  • संविधान के प्रावधानों के मुताबिक  इसके लिए संसद में एक प्र्ताव पारित करना पड़ेगा और  दो -तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। 
  • 1991 में न्यायाधीश वी. रामास्वामी ऐसे पहले जज थे जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की गयी थी।हलाकि बाद में जज रामास्वामी अपने पद से इस्तीफा।  

वेतन 

  • न्यायाधीशों का सबसे महत्वपूर्ण तत्व  उनकी स्वतंत्रता को निर्धारित करते है वह  है उनके द्वारा प्राप्त किया जाने वाला वेतन। 
  • उनका वेतन बहुत अधिक निर्धारित किया गया है ताकि वे स्वतंत्र ,कुशल एवं निष्पक्ष तरिके  के सके।   इसके अलावा  सभी जजों को आधिकारी आवा भी दिया  जाता है जो पूरी तरह से मुफ़्त 
  •  संविधान में  यह भी प्रावधान किया गया है की जजों की तन्खाव्ह बदली नहीं जाएगी , सिर्फ वित्तीय आपातकाल स्थिति में ही उनका वेतन बदला जा सकता है। 
  • जजों का वेतन भत्ते एवं अन्य सुविधाऐ  भारत की संचित निधि से दिया जाते है। 

अधिकार 

  • राजनितिक विवादों से बचने के लिए संसधान ने जजों को कुछ विशेष आशिकार दिए है ताकि उन्हें आलोचनाओ से  एवं  अपने आधिकारिक कार्यो की खामियों से बचाया जा सके। 
  • यायालय को यह अधिकार दिया गया है  की वह  ऐसे व्यक्ति के खिलाफ अवमानना की कटिवहि क्र सकता है जो जजों दे आधिकारिक कार्यो में बाधा उतपन्न करता है। 
  • यहां तक की संसद में भी जजों के बर्ताव  चर्चा नहीं हो सकती सिवाय उनको पद से हटाने वाले प्रसताव  को  छोड़कर। 

सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार 

  • संविधान के  अनुच्छेद 141 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है की उसके बनाये कानून भारत में सभी न्यायालयों पर लागु होने। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकारी  वर्गो में विभाजित किया 
  1.  प्राम्भिक क्षेत्रअधिकार 
  2. अपीलीय क्षेत्राधिकार 
  3. प्रंशवधि क्षेत्राधिकार 
  4. पुनरावलोकन संबंधी क्षेत्राधिकार। 

आरम्भिक क्षेत्राधिकार 

  • सर्वोच्च न्यायालय को प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार की शक्ति पूर्व में संघीय न्यायालय से प्राप्त हुई है। 
  • अनु.131 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अधिकार दिए गए  है।  यह विभिन राज्यों  मध्य या केंद्र एवं राज्यों के मध्य विवादों का निपटारा करती है। 
  • सर्वोच्च न्यायायल के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार का मतलब  विवादित पक्ष संघ की इकाई। है 
  • ऑस्ट्रेलिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका  भारत के सर्वोच्च  न्यायायल को विभिन्न राज्यों के बनिवासियों के बिच  करने का प्रारभिक अधिकार नहीं है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 32  अंतर्गत हर नागरिक को यह अधिकार है अपने  प्रवर्तन  करने के लिए समुचित करवाई द्वारा उच्चतम न्यायालय का द्वार खटखटा सके।  उच्चतम न्यायालय  अपनी आरभिक अधिकारिता में याचिका की सुनवाई क्र सकता है। 

अपीलीय क्षेत्राधिकार 

  • भारत   सर्वच्च न्यायालय सभी न्यायालयों  सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय है। 
  • अनुच्छेद 132 प्रावधान दिया  गया है सर्वोच्च  न्यायायल  में वे सभी केस जो की उच्च न्यायालय में विचाराधीन है उस पर अपील कर सकते है। 
  • यदि ऐसे केस  संविधान की व्याख्या से संबंधित हो  मामले अपीलीय अधिकार में आते है। 
  • अनु. 133  अंतर्गत सभी  सिविल केस की सुनवायी  सर्वोच्च न्यायालय में की हयेगी , संविधान में यह प्रावधान  उच्च  न्यायालय के अधीन सिविल कार्यवही की अपील न्यायलय  में  की जाती है। 
  • अनु 134 के अधीन किसी उच्च न्यायालय के निर्णय विरूद्व कोई अपील उच्चतम न्यायालय  में की जा सकती है।  अनु. 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के राज्य क्षेत्र  न्यायालय या न्यायाधिकरण द्वारा किसी वाद का मामले में पारित किये या दिय गे किसी निर्णय ,डिक्री , अवधारण ,दंगदेश  या आदेश की अपील के लिए विशेष इजाजत दे  सकेगा। 

परामर्श की अधिकारिता 

  • संविधान का अनु. 143  सर्वोच्च न्यायालय  को  अधिकारिता प्रदान करता है।  सार्वजनिक  महत्त्व की विधि या तथ्य के किसी ऐसे प्रश्न  पर उच्चतम न्यायालय की राय  राष्ट्रपति मांग सकता है जिसके बारे में उसका विचार हो की ऐसी राय  प्राप्त करना है 
  • परामर्षवादी  भूमिका सर्वोच्च न्यायालय की साधारण भूमिका से अलग है। 
  • इसके तीन प्रमुख कारण है :-
  1. यदि दो पक्षों में कोई मुकदमा न हो 
  2. परामर्षिय राय सरकार पर बाध्य नहीं होगी 
  3. कोर्ट का यह निर्णय लागु  जाये। 

न्यायिक समीक्षा का अधिकार  

  • सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी निर्णय को समीक्षा  अधिकार प्राप्त है। भारत में  सर्वोच्च  न्यायालय न केवलसंविधान की व्याख्या करता है बल्कि वह दीवानी एवं  फौजदारी जैसे मामलो  सुनवाई करता है। 
  • परामर्शवादी  अधिकार्तिता भी भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को शक्तिशाली  की अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय में नहीं है। 

उच्च न्यायालय 

  • संविधान में उच्च न्यायालय का भी प्रावधान  जो की राज्य का सर्वोच्च न्यायायल   होता है। 
  • संविधान के भाग 6  के अधयाय २१४  से 231 तक उच्च न्यायालय के संगठन एवं कार्यो के प्रावधान दिए गए है। 
  • अनुछेद 125 में यह कहा  गया है की  प्रत्येक राज्य का एक उच्च न्यायालय होगा। 
  • संसद को यह अधिकार है की वह  दो या इससे अधिक राज्यों का एक सामूहिक उच्च न्यायालय गठित कर   सकती है
  • संघ शासित प्रदेशो  किसी उच्च न्यायालय को इसके अधीन कर सकती है या फिर अलग से एक न्य उच्च न्यायालय सृजित क्र सकती है। 

उच्च न्यायालय का गठन 

  • सर्वोच्च न्यायालय से भिन्न ,उच्च न्यायालय के न्यायधिशो की कोई न्यूनतम संख्या नहीं होती है। 
  • राष्ट्रपति समय -समय पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों  संख्या निर्धारित करते है। 
  • रास्ट्रपति समय समय पर उच्च न्याययलो के  न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित करता है। 
  • उच्च न्यायालो के मुख्य न्यायधिश की नियुक्ति  राष्ट्रपति करते है।  राष्ट्रपति इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं रजो के राजपाल से सलाह लेते। है 
  • न्यायाधीशों की न्युक्ति के लिए राष्ट्रपति मुख्य न्यायधीश के सलाह लेते है। 
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का  कार्यकाल 62 वर्ष तक  होता है। 
  • वह  अपना इस्तीफा देकर पद से हट  सकता है। 
  • राष्ट्रपति  को दुराचार के आरोप में अपने पद से हटा सकता है। यह प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान है। 

अधिकार क्षेत्र

  •  उच्च न्यायालय  का  प्रारम्भिक क्षेत्राधिकारों मौलिक  अधिकारोंको लागु  करना ,  केंद्र एवं  विधान सभा  चुनाव  संबंधित विवादों का निपटारा  करना ,तथा राजस्व मामले भी शमिल है।  
  •  अपीलीय क्षेत्राधिकारी दीवानी एवं फौजदारी दोनों मामलो में। है 
  • दीवानी मामलो में उच्च न्यायालय या तो प्रथम अपील कोर्ट है या दूसरी। जबकि फौजदारी मामलो में उच्च न्यायालय किसी विशेष केस की सुनवायी करता है
  •  इन दोनों  अतिरिक्त उच्च न्यायालय को चार अन्य शक्तियों भी प्राप्त है -
1 ) मौलिक अधिकारों को लागु करने के लिए याचिका दायर करने की शक्ति होती। है यह अधिकार सर्वोच्च न्यायालय से भी बड़ा है। यदि मौलिक  हनन हो  वह याचिका दायर कर  सकता है.
2 ) सभी न्यायाधिकरणों के कार्यो का निरिक्ष्ण  करना विशेषकर सशस्त्र सेना  संबंधित कार्यो को छोड़कर। यह समय -समय पर नियम एवं कानून बना सकता है तथा कुछ दिशा निर्देश भी जारी करता है ताकि न्यायालय के लार्यो को प्रभवशाली बनाया जा सके। 
३ ) संविधान की व्याख्या से संबंधित केसो को अधीनस्थ न्यायालय  पास स्थान्तरित करना। 
4 )उच्च न्यायालय  अधिकारों एवं नोकरो को नियुक्त करने का भी अधिकार है ।    
 

अधीनस्थ न्यायालय 

  • उच्च  न्यायालय  के अंतर्गत एक प्रकार की क्रमबध्दता है।  इसे संविधान  में भी दर्शाया गया है  जिन्ह हम अधीनस्थ न्यायालय कहते है। 
  • राज्य जिलों में विभाजित होता है। प्र्तेक  जिले  में एक जिला न्यायालय।   इन जिला न्यायालयों  के अधीन लघु न्यायालय होते है। 
  • जिला न्यायालय का प्रमुख कार्य है अधीनस्थ न्यायालयों की अपील को सुनना ।  
  •  संविधान अधीनस्थ न्यायालयों की स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करता है। 
  • जिला न्यायालयों के जजों की नियुक्ति राजयपाल करता है उच्च न्यायालय की सलाह पर। 
  • ऐसे जज के पास सात वर्षो  का  वकालत का अनुभव होना चाहिए। या फिर उसे उच्च किसी भारतीय न्यायालय सेवा प्रदान करने का अनुभव होना चाहिए। 
  • उच्च न्यायालय इन जिला न्यायालयों पर नियंत्रण रखता है। 

न्यायिक समीक्षा 

  • न्यायिक पुरवलोकन का अर्थ है  निर्णय की  समीक्षा करना। 
  • न्यायिक पुनरावलोकन इस अर्थ में माना  जाता  है की इससे किसी विधायिका की शक्तियों की मान्यता कहाँ  तक उचित है तथा सरकार  वैधता  कहाँ  तक है। 

न्यायिक सुधार 

  • न्यायपलिका ने नागरिको के अधिकारों  रक्षा के लिए सम्मान अर्जित किया है। लेकिन बड़ी संख्या  अभी लटके पड़े है इसने  प्रतिष्ठा में आँच  लगाई तथा यह इसकी सबसे बड़ी कमजोरी  भी है। 
  • 2010 में अखिल भारतीय न्यायिक सुधार  कार्यशाला में मुख्य न्यायाधीश एस. एच. कपाड़िया  ने यह इंगित किया की देश  करीब एक करोड़ केस पिछले  एक साल से आदूरे  पड़े है।  इसका प्रमुख कारण है न्यायपालिका के ढांचे एवं प्रक्रिया में कहीं  कुछ दोष  कमी है। 
  • कुछ कारण ऐसे भी है जो की न्यायपालिका के अंदर शक्तियों  का दुरूपयोग कर रहे है। 
  • न्यायपालिका की एक और कमजोरी है ,वह है इसकी बोझिल प्रक्रिया व्यवस्था तथा न्याय की अनिष्ट प्रक्रिया। 
  • न्यायिक सुधार के सुझाव सामने आ रहे है। ताकि एक नयी समाजिक , आर्थिक ,राजनितिक व्यवस्था कयाम की  जा सके  एवं सामाजिक न्याय प्राप्त किया जा सके।  

  
 


























                       

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